Friday, March 27, 2009

मन ढोलक की थाप हुआ



कुछ भी कहना पाप हुआ
जीना भी अभिशाप हुआ

मेरे वश में था क्या कुछ ?
सब कुछ अपने आप हुआ

तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ

कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ

दर्द सुना जिसने मेरा
जब तक ना आलाप हुआ

शीश झुकाया ना जिसने
वो राना प्रताप हुआ

पैसा- पैसा- पैसा ही
सम्बन्धों का माप हुआ

इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ

Wednesday, March 25, 2009

वो सुधरने भी नहीं देता मुझे

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दर्द तो जीने नहीं देता मुझे
और मैं मरने नहीं देता उसे

रूठने का गर मुझे होता पता
क्या न मैं खुद ही मना लेता तुझे

धड़कनों पर सख्त पहरा उसका है
खुदकुशी करने नहीं देता मुझे

पर कतर देता है मेरे इस तरह
वो कभी उडऩे नहीं देता मुझे

ख्वाब दिखलाता तो है उनमें मगर
रंग भी भरने नहीं देता मुझे

मैं अगर तुझको न करता प्यार तो
दिल ही तेरा खुद बता देता तुझे

थाम लेता है मुझे मेरा ज़मीर
शर्म से झुकने नहीं देता मुझे

खुद ही था जब चोर मेरे मन में तो
फिर भला कैसे गिला देता तुझे

याद आ-आकर उड़ा जाता है नींद
खुशनुमा सपने नहीं देता मुझे

मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
वो सुधरने भी नहीं देता मुझे

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
गैर-मुर्द्द्फ़ गज़ल

Saturday, March 21, 2009

**** दर्द को दिल से लब पे आना था

दर्द को दिल से लब पे आना था
बेवफ़ाई तो इक बहाना था

उनका रुख से नकाब हटाना था
देखता रह गया जमाना था

प्यार था प्यार का बहाना था
प्यार लेकिन किसे निभाना था

ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था

हां वो मेरा रकीब था लेकिन
कातिलों से उसे बचाना था

आज कहते वो खराब हैं मुझको
कल तलक तो मै खानखाना था

राज़ उजागर हुआ अचानक ही
लाख चाहा जिसे छुपाना था

प्यार करना पड़ा था मजबूरन
दोस्त मौसम बड़ा सुहाना था

तुमसे मिलकर झुकी नजर मेरी
चूकता कब तेरा निशाना था

मैं तो था तेरी कफ़स में महफ़ूज
और मुझपर तेरा निशाना था

रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था



राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था

ग़म चुराकर चला गया मेरे
श्याम’सचमुच बहुत सयाना था

या
दिल चुराने में‘श्याम' था माहिर
दिल उसी से हमें बचाना था

फ़ाइलातुन, मफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 ,1212,211 [22]

Wednesday, March 18, 2009

शुक्रिया जिन्दगी- गज़ल

गम दिये , दी खुशी
शुक्रिया जिन्दगी

तम हुआ खत्म तब
जब दिखी रोशनी

यूं जतन लाख थे
बात पर कब बनी

मर मिटे हैं सभी
वाह री सादगी

दर्द ज्यों-ज्यों बढ़ा
बढ़ गई बन्दगी


हर घड़ी बज रही 
धड़कने हैं सखा 
ध्यान से सुन ज़रा 
मौत की   दुंदभी 

सभ्यता खा गई
ये नई रोशनी


दे गई , मौत को 
मात फिर जिन्दगी 


है नहीं 'श्याम' क्या
सिरफ़िरा आदमी

Saturday, March 14, 2009

रोज़ हथेली पर उसकी -गज़ल

गीत, गज़ल या गाली लिख
बात मगर मतवाली लिख

गहमा-गहमी खूब हुई
अब तो खामखय़ाली लिख

काँटे लिख चाहे जितने
फूलों की भी डाली लिख

लिख तू अमावस ही चाहे
लेकिन दीपों-वाली लिख

लिख मुस्कानें अधरों पर
असली लिख या जाली लिख

मौसम खूब सुहाना है
कोई गजल निराली लिख

पूरा गुलशन चहकेगा
पत्तों पर खुशहाली लिख

रोज़ हथेली पर उसकी
गजलें मेंहदी-वाली लिख

स्वागत किया बहारों का
मौसम ने, हरियाली लिख

अपने कल पर मत इतरा
आज को गौरवशाली लिख

'श्याम अलग तू दुनिया से
बातें भी अनियाली लिख

फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा

Monday, March 9, 2009

जिसने औढ़ा,प्रीत का पल्ला

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यारो मैने खूब ठगा है
खुद को भी तो खूब ठगा है
पहले ठगता था औरों को
कुछ भी हाथ नहीं तब आया
जबसे लगा स्वयं को ठगने
क्या बतलाऊं,क्या-क्या पाया
पहले थी हर खुशी पराई
अब तो हर इक दर्द सगा है
किस-किस को फांसा था मैने
कैसे-कैसे ज़ाल रचे थे
अपनी अय्यारी से यारो
अपने बेगाने कौन बचे थे
औरों के मधुरिम-रंगो में
मन का कपड़ा आज रंगा है
जबसे अपने भीतर झांका
क्या बेगाने या क्या अपने
इक नाटक के पात्र सभी हैं
झूठे हैं जीवन के सपने
दुश्मन भी प्यारे अब लगते
इतना मन में प्रेम-पगा है
ऋषियो-मुनियों ने फरमाया है
माया धूर्त,महा ठगनी है
उनका हाल न पूछो हमसे
जिनको लगती यह सजनी है
जिसके मन में बसती है यह
उसके दिल में दर्द जगा है
जग की हैं बातें अलबेली
जन्म-मृत्यु की ये अठखेली
जिसने औढ़ा,प्रीत का पल्ला
पीर-विरह की उसने झेली
जीवन तो है सफर साँस का
मौत साँस के साथ दगा है

मित्रो आज होली की पूर्व संध्या पर एक गीत लेकर हाजिर हूं

Sunday, March 8, 2009

औरत ने कभी कोई धर्म ईजाद नहीं क्या क्यों भला ?

औरत को
कभी कोई धर्म ईजाद करने की जरूरत महसूस नहीं हुई।
100
औरत के बहुआयामी जीवन एवम्‌ व्यक्तित्व पर केन्द्रित एक गज़ल-
मेरा मानना है के स्त्री पृकृति की सबसे पूर्ण कृति है,पुरुष उसके सामने स्वय़ं को बौना पाता है,अधूरा महसूस करता है,इसीलिये वह कभी एट्म बम,कभी चंद्र्यान ,कभी किले,महल तो कभी नये-नये धर्म ईजाद करता दिखता है,
जबकि स्त्री शिशु को जन्म देकर, उसका पालन-पोषण कर जीवन की पूर्णता, पाकर संतुष्ट् हो जाती है इसीलिए उसे कभी कोई धर्म ईजाद करने की
जरूरत महसूस नहीं हुई।
श्याम सखा ‘श्याम’


काँच का बस एक घर है लड़कियों की जिन्दगी
और काँटों की डगर है लड़कियों की जिन्दगी

इस नई तकनीक ने तो है बना दी कोख भी
आह कब्रिस्तान भर है लड़कियों की जिन्दगी

बाप मां के बाद अधिकार है भरतार का
फर्ज का संसार भर है लड़कियों की जिन्दगी

किस धरम, किस जात में इन्साफ इसको है मिला
जीतती सब हार कर है लड़कियों की जिन्दगी

हो अहल्या या हो मीरा या हो बेशक जानकी
मात्रा चलना आग पर है लड़कियों की जिन्दगी
15
द्रोपदी हो, पद्मिनी हो, हो भले ही डायना
रोज लगती दाँव पर है लड़कियों की जिन्दगी
16
एक रजिया एक लक्ष्मी और इन्दिरा जी भला
क्या नहीं अपवाद-भर है लड़कियों की जिन्दगी

कर नुमाइश जिस्म की क्या खुद नहीं अब आ खड़ी
नग्नता के द्वार पर है लड़कियों की जिन्दगी
24
प्यार करने की खता जो कहीं करलें ये कभी
तब लटकती डाल पर है लड़कियों की जिन्दगी
25
जानती सब, बूझती सब, फिर भला क्यों बन रही
हुस्न की किरदार भर है लड़कियों की जिन्दगी
26
ठीक है आजाद होना, हो मगर उद्दण्ड तो
कब भला पायी सँवर है लड़कियों की जिन्दगी
ले रही वेतन बराबर,हक बराबर, पर नहीं
इतनी सी तकरार भर है लड़कियों की जिन्दगी
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आदमी कब मानता इन्सान इसको है भला
काम की सौगात भर है लड़कियों की जिन्दगी
31
शोर करते हैं सभी तादाद इनकी घट रही
बन गई अनुपात भर है लड़कियों की जिन्दगी

32

ठान लें जो कर गुजरने की कहीं ये आज भी
पिफर तो मेधा पाटकर है लड़कियों की जिन्दगी
33
क्यों नहीं तैतीसवां हिस्सा भी इसको दे रहे,
आधे की हकदार गर है लड़कियों की जिन्दगी
34
देवता बसते वहाँ है पूजते नारी जहाँ
क्यों धरा पर भार भर है लड़कियों की जिन्दगी
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हाँ, कहीं इनको मिले गर प्यारा थोड़ा दोस्तो
तब सुधा की इक लहर है लड़कियों की जिन्दगी
36
मैंने तुमने और सबने कह दिया सुन भी लिया
क्यों न फिर जाती सुधर है लड़कियों की जिन्दगी

तू अगर इसको कभी अपने बराबर मान ले
फिर तो तेरी हमसपफर है लड़कियों की जिन्दगी
37
माफ मुझको अब तू कर दें ऐ खुदा मालिक मेरे
हाँ यही किस्मत अगर है लड़कियों की जिन्दगी
38
‘कल्पना’ को ‘श्याम’ जब अवसर दिया इतिहास ने
उड़ चली आकाश पर है लड़कियों की जिेन्दगी

Friday, March 6, 2009

***उसकी किस्मत किसने लिक्खी ?

****उसकी किस्मत किसने लिक्खी ?

वो तो जब भी खत लिखता है
उल्फ़त ही उल्फ़त लिखता है

मौसम फूलों के दामन पर
ख़ुशबू वाले ख़त लिखता है

है कैसा दस्तूर शहर का
हर कोई नफ़रत लिखता है

बादल का ख़त पढ़कर देखो
छप्पर की आफ़त लिखता है

अख़बारों से है डर लगता
हर पन्ना दहशत लिखता है

यार मुहब्बत का हर किस्सा
अश्कों की उजरत लिखता है

रास नहीं आता आईना
वो सबकी फ़ितरत लिखता है

मन हरदम अपनी तख़्ती पर
मिलने की हसरत लिखता है

उसकी किस्मत किसने लिक्खी
जो सबकी क़िस्मत लिखता है

”श्याम’अपने हर अफ़साने में
बस, उसकी बाबत लिखता है

फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन

श्याम’अपने हर अफ़साने में
श्यामपने हर अफ़साने में,
इस प्रक्रिया को गज़ल छंद में अलिफ़-वस्ल होना या मदगम होना कहा जाता है

Wednesday, March 4, 2009

ये भी क्या दिलबरी हुई साहिब ?


घर
जला,रोशनी हुई साहिब
ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब
तू नहीं और ही सही साहिब
ये भी क्या दिलबरी हुई साहिब
है मुझको हुनर इबादत का
सर झुका, बन्दगी हुई साहिब
भूलकर खुद को जब चले हम ,तब
आपसे दोस्ती हुई साहिब
खुद से चलकर तो ये नहीं आई
दिल दुखा,शायरी हुई साहिब
जीतकर वो मजा नहीं आया
हारकर जो खुशी हुई साहिब
तुम पे मरकर दिखा दिया हमने
मौत की बानगी हुई साहिब
श्यामसे दोस्ती हुई ऐसी
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब

फ़ा इलातुन,मफ़ाइलुन, फ़ेलुन
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब
२ १ २ २ १ २
२ २ २

**भटका पल भर था

घर से बेघर था, क्या करता
दुनिया का डर था, क्या करता

जर्जर कश्ती टूटे चप्पू
चंचल सागर था, क्या करता

सच कहकर भी मैं पछताया
खोया आदर था, क्या करता

चन्दा डूबा, तारे गायब
चलना शब भर था, क्या करता

ठूंठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था, क्या करता

ख़ुद से भी तो छुप न सका वो
चर्चा घर-घर था, क्या करता

आख़िर दिल मैं दे ही बैठा
बाँका दिलबर था, क्या करता

ना थी धरती पाँव तले, ना
सर पर अम्बर था, क्या करता

मेरा जीना मेरा मरना
तुम पर निर्भर था, क्या करता

सारी उम्र पड़ा पछताना
भटका पल भर था, क्या करता

बादल बिजली बरखा पानी
टूटा छप्पर था, क्या करता

सब कुछ छोड़ चला आया मैं
रहना दूभर था, क्या करता

थक कर लुट कर वापिस लौटा
घर आख़िर घर था, क्या करता


यह भी फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन वज़्न पर आधारित गज़ल है
सुमित भारद्वाज के अनुरोध पर एक शे की तक्तीअ
सब कुछ छोड़ चला आया मैं
२१ १२
रहना दूभर था, क्या करता

Monday, March 2, 2009

इस घर पर बमबारी मत कर

हम जैसों से यारी मत कर
ख़ुद से यह गद्दारी मत कर

तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर

रोक छ्लकती इन आँखों को
मीठी यादें ख़ारी मत कर

हुक्म-उदूली का ख़तरा है
फ़रमाँ कोई जारी मत कर

आना-जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर

ख़ुद आकर ले जाएगा वो
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

‘श्याम’निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर

फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन