Saturday, November 28, 2009

दिल की बस इतनी खता है

दिल की बस इतनी खता है
वो तुझे ही चाहता है

जिन्दगी है, या सजा है
वक्त कितना बेवफ़ा है

दिल की बस इतनी खता है
वो तुझे ही चाहता है

प्यार जब ग़म की दवा है
रूह फिर क्यों ग़मजदा है

सिर्फ़ सच ही तो कहा था
हो गया वो क्यों खफ़ा है

जुल्म सहना, मुस्कराना
आपकी बेढ़ब अदा है

याद तेरी आ रही है
यानी करना रतजगा है


एक बच्चा रो रहा है
क्या कहीं फिर बम फटा है

दर्दे-दिल की`श्याम’जी अब
क्या कहीं कोई दवा है


फ़ाइलातुन.फ़ाइलातुन25/112





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Tuesday, November 24, 2009

घर आपका टूटा नहीं होता ---गज़ल


उसको अगर परखा नहीं होता सखा
घर आपका टूटा नहीं होता सखा


मैने तुझे देखा नहीं होता सखा

फिर चाँद का धोखा नहीं होता सखा


हर रोज ही तो है सफर करता मगर

सूरज कभी बूढ़ा नहीं होता सखा


इजहार है इक दोस्ताना प्यार तो
इसका कभी सौदा नहीं होता सखा


उगने की खातिर धूप भी है लाजमी

बरगद तले पौधा नहीं होता सखा


मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन

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भारत से श्याम सखा की कहानी: एनकाउंटर-a love story

Tuesday, November 17, 2009

तेरा सलोना बदन-है --कि है ये राग यमन -गज़ल



तसुव्वरात में लाऊँ तेरा सलोना बदन
भला मै कैसे भुलाऊँ तेरा सलोना बदन


मगन यूँ होके तुझे मैं निहारूँ, मेरे बलम

पलक-झपक मैं छुपाऊँ तेरा सलोना बदन


नयन तेरे हैं ये मस्ती के प्याले मेरी प्रिया
मैं दिल में अपने बसाऊँ तेरा सलोना बदन

ढलकती-सी तेरी पलकें, ये बांकपन तेरा
नजर से जग की बचाऊँ तेरा सलोना बदन



किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन

किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन



बड़े कुटिल हैं इरादे जनाब ‘श्याम’ के तो

भला मैं कैसे बचाऊँ तेरा सलोना बदन


मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन




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Friday, November 6, 2009

दीवाने की कब्र खुदी तो-गज़ल

५२
लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले

बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले

याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले

पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले

आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले

दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले

सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने नि·ले

'श्या्म’ उमंगें ले्कर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले



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अब घर कहां ?-कविता यहां पढें