Monday, January 17, 2011

इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ.......गज़ल

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मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी

हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती को ही
खुद मौत माँगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी

हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी

सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी

नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी

हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी


मुस्तफ़इलुन= चार बार 


मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

4 comments:

  1. जीवन का फलसफा निखर कर आया है. लाजवाब....

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  2. ‘सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें’

    किसी सुंदरी के पेंचोखम से कम नहीं है ज़िंदगी :)

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  3. वाह साहब वाह।
    एक एक शेर दमदार।

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  4. हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती को ही
    खुद मौत माँगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी

    नमस्कार श्याम जी ...
    बहुत खूब ... लाजवाब तेवर हैं इस ग़ज़ल में ... कमाल का शेर ....

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