Monday, June 27, 2011

छंद मन व तन में सकारात्मक संवाद करवाता है---श्याम सखा श्याम



                                            छंद  आनन्द का प्रतीक होता है।.
                                                           छंद का उल्लेख सबसे पहले वेदों में हुआ है। छंद से जुड़कर साधारण बातें  में गति व यति का आर्विभाव होने लगता है।
                      गति व यति से रस उत्पन्न होता है। यह रस ही आनन्द कहलाता है।
               संसार भर की सभी भाषाएं छंद में ही जीवित रह पाईं हैं- जैसे इजराइल के देश बनने से पहले हिब्रु भाषा ,दुनिया भर में बिखरे यहुदियों की प्राथना भजनो में ही बची थी। 
          आज देवभाषा संस्कृत भी उसी ओर जा रही है। कुछ दिनो बाद यह केवल वेद उपनिषदों, पौराणिक श्लोकों में ही बच पाएगी

                                         छंद, भाषा, संस्कृति, कविता या सभ्यता जितना ही पुराना है।

                                          छंद है क्या?
              आइये!  देखें \

     भारतीय  समय गिनने की प्रकिर्या को समझने का प्रयास करने से छंद को समझने में सहायक होगा।

   दस दीर्घमात्रिक शब्द बोलने पर जितना समय लगता है==== १ सासं या प्राण कहलाता है

                                  ६ प्राण=== १ पल

                                 ६० पल === १ घड़ी

                                ६० घड़ी==== १ दिन

                               २.५ घड़ी====== १ घंटा  === ९०० सांस या प्राण

                                 १ मिनट== १५ सांस

                    छ्ंद के उच्चारण से सांस की गति एक तान हो जाती है। 

                   मन स्थिर हो जाता है एवम्‌ ध्यान की क्षमता पा जाता है।

                    ध्यान से चेतना में नवांतर हो हो जाता है और फ़िर मस्तिष्क का अणु-अणु जीवंत हो उठता है।

                                             छंद  जब अन्तर्मन से उठता है तो जीवन अर्थवान होने लगता है।

                                       इस प्रकार छंद की पुनरावृति [ जाप ]नये अर्थ का वाहक बनकर प्रगट होती है।


                                    छंद की पुनरावृति से मानव की नकारात्मकता, सकारात्मकता में बदलने लगती है।

                                      इस अवस्था को ही समाधि कहा जाता है। 
    
                                  शरीर में प्राण व मन ही निर्णय करने वाले होते हैं।

                                जब मन गलत निर्णय लेता है तो प्राण [ सांस ] की गति बढ जाती है,

                               गुस्से व झूठ बोलते वक्त- [यही तथ्य लाई-डिक्टेटिंग मशीन का आधार है] 

                                 छंद के उपयोग से ही शरीर में सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है- जो मन को नवान्तर या समाधि की अवस्था में ले जाता है

                                   लिपिबद्ध छंद ही मन्त्र कहलाता है। मन्त्र का शाब्दिक अर्थ है-- मन की बात

                                         छंद मन व तन में सकारात्मक संवाद करवाता है

                                            छंद [ मन्त्र ] के सस्वर उच्चारण से वातावरण में ऊर्जा उत्पन्न होकर वायुमंडल में फ़ैलती है।, जिससे तरंगे उत्पन्न होकर आसपास को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लेती हैं। ऐसा अनुभव सभी को, किसी संगीत के महफ़िल या भजन संध्या पर अकसर हुआ होगा।

                         छंदो के जाप से उत्पन्न ध्वनि ऊर्जा व तरंगे साफ़ अनुभव की जा सकती हैं। इस अनुभव की सतत अनूभूति ही समाधि की अवस्था कहलाती है।

     य़ही नही  इस अवस्था प्राप्त व्यक्ति के समीप भी इस ऊर्जा को अनुभव किया जा सकता है।

                 इसी वजह से संसार के सभी धर्मों में जाप का प्रचलन हुआ है








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Friday, June 24, 2011

जिन्दगी-भर उदास रहना था ?-- gazal shyam skha shyam


24


जिन्दगी-भर उदास रहना था
फिर तो मेरे ही पास रहना  था

थे यहाँ तो महज अँधेरे ही
तुझको लेकर उजास रहना था


आमों मे वो तो हो गये हैं बबूल
उनको तो बन के खास रहना था




सब थे नंगे हमाम में फ़िर भी
तुमको तो बालिबास रहना था


देख कर तेरे हुस्न का जल्वा
किसको होशो-हवास रहना था

फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन




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Thursday, June 16, 2011

गुल गुलामी करे है मौसम की-----gazal shyam skha shyam

   जब कि हर दिल में प्यार रहता है
   दिल क्यों फिर बेकरार रहता है


  गुल गुलामी करे है मौसम की
 मस्त हर वक्त खार रहता है


 भूल जाते हैं दोस्त को हम लोग
 दिल पे दुश्मन सवार रहता है


वक्त तो लौटकर नहीं आता
शेष बस    इन्तजार रहता है



 ‘श्याम’ अहसान चीज है जालिम
   जिन्दगी भर उधार रहता है


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Friday, June 10, 2011

जिन्दगी-भर उदास रहना था ?-- gazal shyam skha shyam


24 .

जिन्दगी-भर उदास रहना था
फिर तो मेरे ही पास रहना  था

थे यहाँ तो महज अँधेरे ही
तुझको लेकर उजास रहना था

आमों मे वो तो हो गये हैं बबूल
उनको तो बन के खास रहना था



सब थे नंगे हमाम में फ़िर भी
तुमको तो बालिबास रहना था

देख कर तेरे हुस्न का जल्वा
किसको होशो-हवास रहना था

फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन



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Monday, June 6, 2011

खुद से आखिर कितना बोलूं मैं-- gazal shyaam skha shyam

खुद से आखिर कितना बोलूं मैं
क्या बस अपना चेह्‌रा  देखूं मैं

अपने भी दिखते हैं बेगाने
दोस्त किसे अपना समझूं मैं

आईनो की तन्हा मह्फ़िल में
खुद में खुद को कब तक ढूंढूं मैं

देख तुझे यह हाल हुआ है
जब भी सोचूं तुझको सोचूं मैं

‘श्याम’सखा गर हो जाये मेरा
निशिदिन रास-रचाऊं, नाचूँ मैं





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Wednesday, June 1, 2011

कुछ न करने से तो जाये है हुनर-- gazal shyam skha shyam


23
आज कुछ नर्म-सी बातें कर लें
बैठ तो मर्म की बातें कर लें

हो चले ठण्डे सभी रिश्ते तो
आओ कुछ गर्म-सी बातें कर लें

ज्ञान की खुल ही न जाये कलई
आओ कुछ धर्म की बातें कर लें

कुछ न करने से तो जाये है हुनर
मुफ़्त ही कर्म की बातें कर लें

है न कोई कि जो फ़ेंके पत्थर
चुपके-से शर्म की बातें कर लें



फ़ाइलातुन फ़इलातुन,फ़ेलुन ४.४.९२ गोहाना ५ पी एम


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