
हकीम ने तो कह दिया,दवा नहीं मरीज की
दुआ भी गर करे नहीं करे भला क्या आदमी
gazal
बुझी-बुझी सी चाँदनी करे भला क्या आदमी
चिराग जब न जल सकें जले भला क्या आदमी
तुम्हीं ने दर्द था दिया,तुम्हीं न गम समझ सके
कि ऐसे हाल में कहो,जिये भला क्या आदमी
भरी-भरी सी दोपहर में आफ़ताब गुम हुआ
मशाल हाथ में लिये चले भला क्या आदमी
स्वयम् किया तो भोग ले,वो पुन्य हो कि पाप हो
किया जो दूसरों ने हो भरे भला क्या आदमी
हैं साँसे तो गिनी-चुनी,घटें-बढें कभी नहीं
तो मौत की सदा को सुन,डरे भला क्या आदमी
हकीम ने तो कह दिया,दवा नहीं मरीज की
दुआ भी गर करे नहीं करे भला क्या आदमी
नसीब ने नसीब में जो लिख दिया सो लिख दिया
न कोई भी मिटा सके करे भला क्या आदमी
है जिन्दगी तो चार दिन,कभी खुशी कभी है ग़म
बिला वजह ही दुश्मनी करे भला क्या आदमी
कहो जरा तो श्याम’अब किधर चलें कहां चलें
कि हर तरफ़ है आग जब करे भला क्या आदमी
मफ़ाइलुन,मफ़ाइलुन,मफ़ाइलुन,मफ़ाइलुन,72