हैं बहुत नाजुक मगर डरते नहीं हैं आइने
फ़र्क शाहो बांदी में करते नहीं हैं आइने
टूट जाते हैं बिखर जाते है फ़िर भी दोस्तो
अक्स दिखलाने से तो हटते नहीं हैं आइने
i
ईता दोष गज़ल में दूर कर लिया है
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Tuesday, December 29, 2009
Wednesday, December 23, 2009
मै भला कब सुधरने वाला हूँ
आज कुछ कर गुजरने वाला हूँ
बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ
तोड़ दो कसमें, दो भुला वादे
मैं तो खुद भी मुकरने वाला हूँ
टूटकर बिखरा हूं इस तरह यारो
अब कहाँ मैं संवरने वाला हूँ
जिन्दगी कर दे हसरतें पूरी
खुदकुशी अब मैं करने वाला हूँ
देख लो तुम मुझे सजा देकर
मै भला कब सुधरने वाला हूँ
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ
तोड़ दो कसमें, दो भुला वादे
मैं तो खुद भी मुकरने वाला हूँ
टूटकर बिखरा हूं इस तरह यारो
अब कहाँ मैं संवरने वाला हूँ
जिन्दगी कर दे हसरतें पूरी
खुदकुशी अब मैं करने वाला हूँ
देख लो तुम मुझे सजा देकर
मै भला कब सुधरने वाला हूँ
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Wednesday, December 16, 2009
दुश्मन यार जमाना है
खुद को ही समझाना है
यानि पहाड़ उठाना है
प्यार कभी होता होगा
अब तो यार फ़साना है
केवल शक के कारण ही
उलझा तान-बाना है
नाचे है, क्यों दिल मेरा
मौसम खूब सुहाना है
उसका बचना मुश्किल है
दुश्मन यार जमाना है
आज नहीं तो कल यारा
लौट सभी को जाना है
तुमसे दूर ‘सखा’जाना
जीते जी मर जाना है
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
यानि पहाड़ उठाना है
प्यार कभी होता होगा
अब तो यार फ़साना है
केवल शक के कारण ही
उलझा तान-बाना है
नाचे है, क्यों दिल मेरा
मौसम खूब सुहाना है
उसका बचना मुश्किल है
दुश्मन यार जमाना है
आज नहीं तो कल यारा
लौट सभी को जाना है
तुमसे दूर ‘सखा’जाना
जीते जी मर जाना है
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Saturday, December 12, 2009
पुराना शे‘र नई बहर में--श्याम सखा
दिल आज फ़िर फ़साद करने लगा है
उस बेवफा को याद करने लगा है
बेताब रूह थी कभी मिलने को ‘श्याम’
अब जिस्म भी जिहाद करने लगा है
मुस्तफ़इलुन,मफ़ाइलुन,फ़ाइलातुन
२ २ १ २, १२ १ २. २ १२ २
klik here for
रकीबों से उधार
Monday, December 7, 2009
-फ़ुटकर शे‘र-नं १०
Saturday, November 28, 2009
दिल की बस इतनी खता है
वो तुझे ही चाहता है
वक्त कितना बेवफ़ा है
दिल की बस इतनी खता है
वो तुझे ही चाहता है
प्यार जब ग़म की दवा है
रूह फिर क्यों ग़मजदा है
सिर्फ़ सच ही तो कहा था
हो गया वो क्यों खफ़ा है
जुल्म सहना, मुस्कराना
आपकी बेढ़ब अदा है
याद तेरी आ रही है
एक बच्चा रो रहा है
क्या कहीं फिर बम फटा है
दर्दे-दिल की`श्याम’जी अब
क्या कहीं कोई दवा है
फ़ाइलातुन.फ़ाइलातुन25/112
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Tuesday, November 24, 2009
घर आपका टूटा नहीं होता ---गज़ल
उसको अगर परखा नहीं होता सखा
घर आपका टूटा नहीं होता सखा
मैने तुझे देखा नहीं होता सखा
फिर चाँद का धोखा नहीं होता सखा
हर रोज ही तो है सफर करता मगर
सूरज कभी बूढ़ा नहीं होता सखा
इजहार है इक दोस्ताना प्यार तो
इसका कभी सौदा नहीं होता सखा
उगने की खातिर धूप भी है लाजमी
बरगद तले पौधा नहीं होता सखा
मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन
click and enjoy
भारत से श्याम सखा की कहानी: एनकाउंटर-a love story
Tuesday, November 17, 2009
तेरा सलोना बदन-है --कि है ये राग यमन -गज़ल
तसुव्वरात में लाऊँ तेरा सलोना बदन
भला मै कैसे भुलाऊँ तेरा सलोना बदन
मगन यूँ होके तुझे मैं निहारूँ, मेरे बलम
पलक-झपक मैं छुपाऊँ तेरा सलोना बदन
नयन तेरे हैं ये मस्ती के प्याले मेरी प्रिया
मैं दिल में अपने बसाऊँ तेरा सलोना बदन
ढलकती-सी तेरी पलकें, ये बांकपन तेरा
नजर से जग की बचाऊँ तेरा सलोना बदन
किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन
किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन
बड़े कुटिल हैं इरादे जनाब ‘श्याम’ के तो
भला मैं कैसे बचाऊँ तेरा सलोना बदन
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Friday, November 6, 2009
दीवाने की कब्र खुदी तो-गज़ल
५२
लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने नि·ले
'श्या्म’ उमंगें ले्कर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
http://katha-kavita.blogspot.com/
अब घर कहां ?-कविता यहां पढें
लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने नि·ले
'श्या्म’ उमंगें ले्कर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
http://katha-kavita.blogspot.com/
अब घर कहां ?-कविता यहां पढें
Tuesday, October 27, 2009
पहले देंगे जख्म और फिर--- गज़ल
हैं अभी आये अभी कैसे चले जाएँगे लोग
हमसे नादानों को क्या और कैसे समझाएँगे लोग
है नई आवाज धुन भी है नई तुम ही कहो
उन पुराने गीतों को फिर किसलिए गाएँगे लोग
नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी जरूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग
फेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराहे पर खुद ही लगा जाएँगे लोग
हादसों को यूँ हवा देते ही रहना है बजा
देखकर धूआँ, बुझाने आग को आएँगे लोग
हमको कुछ कहना पड़ा है आज मजबूरी में यूँ
डर था मेरी चुप से भी तो और घबराएँगे लोग
इतनी पैनी बातें मत कह अपनी ग़ज़लों में ऐ दोस्त
हो के जख्मी देखना बल साँप-से खाएँगे लोग
कौन है अश्कों का सौदागर यहाँ पर दोस्तो
देखकर तुमको दुखी, दिल अपना बहलाएँगे लोग
है बड़ी बेढब रिवायत इस नगर की ‘श्याम’ जी
पहले देंगे जख्म और फिर इनको सहलाएँगे लोग
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
16-शुक्रिया जिन्दगी -गज़ल संग्रह से
मेरे एक और ब्लॉग पर आज -सूरज का गब़न---कविता
http://katha-kavita.blogspot.com/
Monday, October 19, 2009
तेरी मेरी बात चलेगी-गज़ल
तेरी मेरी बात चलेगी
सारी-सारी रात चलेगी
दुल्हा होगा चाँद गगन में
तारों की बारात चलेगी
ढाई अक्षर प्यार के होंगे
फिर क्या कोई जात चलेगी
यादों के बादल के सँग-सँग,
अश्को की बरसात चलेगी
सेज सजेगी पलकों की जब
सपनों की सौगात चलेगी
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Wednesday, October 14, 2009
फुटकर शे‘र नं-9- श्याम सखा‘श्याम’
Wednesday, September 30, 2009
हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां-गज़ल श्याम सखा
हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां
जब भी तुझको याद करते हैं सनम
खुद को ही बरबाद करते हैं सनम
आपके पहलू में निकले अपना दम
बस यही फरियाद करते हैं सनम
हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां
टूटे दिल आबाद करते हैं सनम
कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहें
पर तुझे आजाद करते हैं सनम
खेल अपनी जान पर ही तो शलभ
इश्क जिन्दाबाद करते हैं सनम
कोशिशे नाकाम सारी जब हुईं
तब भला इमदाद करते हैं सनम
‘श्याम’ था दरवेश,था खानाखराब
पर उसे सब याद करते हैं सनम
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन shu zin b-23/110
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Saturday, September 26, 2009
फ़ुटकर शे‘र नं-८-श्याम सखा
Monday, September 21, 2009
खेल मुहब्बत का है जारी- गज़ल
कैसे बीती रात न पूछो
बिगड़े क्यों हालात न पूछो
दिल की दिल में ही रहने दो
दिल से दिल की बात न पूछो
ज्ञान ध्यान की सुन लो बातें
जोगी की तुम जात न पूछो
देखा तुमको दिल बौराया
भड़के क्यों जज़बात न पूछो
खेल मुहब्बत का है जारी
किस की होगी मात, न पूछो
प्रेम-नगर में 'श्याम सखा’ जी
क्या पायी सौगात, न पूछो
47dbgm
बिगड़े क्यों हालात न पूछो
दिल की दिल में ही रहने दो
दिल से दिल की बात न पूछो
ज्ञान ध्यान की सुन लो बातें
जोगी की तुम जात न पूछो
देखा तुमको दिल बौराया
भड़के क्यों जज़बात न पूछो
खेल मुहब्बत का है जारी
किस की होगी मात, न पूछो
प्रेम-नगर में 'श्याम सखा’ जी
क्या पायी सौगात, न पूछो
47dbgm
Monday, September 14, 2009
खुद से यह गद्दारी मत कर- gazal shyam skha shyam
हम जैसों से यारी मत कर
खुद से यह गद्दारी मत कर
तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर
हुक्म उदूली का खतरा है
फरमां कोई जारी मत कर
आना जाना साथ लगा है
सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर
'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर
खुद से यह गद्दारी मत कर
तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर
रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें खारी मत करहुक्म उदूली का खतरा है
फरमां कोई जारी मत कर
आना जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर
खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत करसच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर
'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर
Sunday, September 13, 2009
Saturday, September 5, 2009
फ़ुटकर शे‘र-नं -6-श्याम सखा श्याम
Monday, August 31, 2009
चुप भी तो रह पाना मुश्किल-gazal
अपनों को समझाना मुश्किल
चुप भी तो रह पाना मुश्किल
खोना मुश्किल पाना मुश्किल
खाली मन बहलाना मुश्किल
मौन रहें, तो बात बने कब
कहकर भी सुख पाना मुश्किल
बैरी सावन बरसे रिमझिम
रातों का कट पाना मुश्किल
सुलझों को उलझाना आसां
उलझों को सुलझाना मुश्किल
3-dbkgm se
चुप भी तो रह पाना मुश्किल
खोना मुश्किल पाना मुश्किल
खाली मन बहलाना मुश्किल
मौन रहें, तो बात बने कब
कहकर भी सुख पाना मुश्किल
बैरी सावन बरसे रिमझिम
रातों का कट पाना मुश्किल
सुलझों को उलझाना आसां
उलझों को सुलझाना मुश्किल
3-dbkgm se
Sunday, August 23, 2009
फ़रिश्ता खुद्कुशी करने लगा-श्याम सखा
बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है गज़ल के बारे में। मुझे लगता है कि हिन्दी भाषा में गीत एक पारम्परिक छंद होने के कारण आम साहित्य अनुरागी गीत की परिभाषा जानता समझता है अत: हिन्दी गज़ल क्षेत्र के नवांगन्तुक को पहले गीत व गज़ल में क्या अन्तर है समझ लेना चाहिये तब गज़ल लेखन में आगे बढ़्ना चाहिये। संक्षिप्त आलेख इस ओर एक कदम है कुछ उदाहरणों से आरम्भ करते हैं इस अन्तर को समझने के लिये ,
अ
१- बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
२-बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या
ब
१ मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की
२
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता
स
१ जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां
२ उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है
अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर १ या नीले रंग से अंकित पंक्तियां गीतांश हैं और अंकितनं २ या गेरूए रंग से पंक्तियां शे‘र हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं
कि गीत में स्त्रैण कोमलता है
,जबकि गज़ल कहने में पुरुषार्थ झलकता है।
या गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,
वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा इसी तरह शे’र के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता किअगले मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता और यह चमत्कृत करने का अन्दाज ही ग़ज़ल की खसूसियत है-इसे और महसूस करें
और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र वसीम बरेलवी साहिब के हैं।
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ खुद
[अब थोड़ा रुक कर सोचिये कि आगे क्या कहा जा सकता है ?]
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
[अब थोड़ा रुक कर सोचिये कि आगे क्या कहा जा सकता है ?]
जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
[यहां भीथोड़ा रुक कर सोचिये कि आगे क्या कहा जा सकता है ?]
अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की शर्तों पे जीता नहीं
जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं
एक और बात
यति और गति या ग्त्यात्मकता और लयात्मक्ता के बिना गज़ल का अस्तित्व ही नहीं हो सकता।क्योंकि गज़ल की बुनियाद सरगम की तरह संगीत के आधार पर[और कहें तो गणित के आधार पर] टिकी है।गज़ल का हर शे‘र अपने आप में सम्पूर्ण तो होता ही है,
वह श्रोता या पाठक को अद्भुत,आकर्षक,अनजाने और एक निराले अर्थपूर्ण अनुभव तक ले आने में सक्षम होता है।
देखें कुछ उदाहरण
चाँद चौकीदार बनकर नौकरी करने लगा
उसके दरवाजे के बाहर रोशनी करने लगा
चाँद को चौकीदार केवल गज़ल का शायर ही बना सकता है
बाल खोले नर्म सोफ़े पर पड़ी थी इक परी
मेरे अन्दर एक फ़रिश्ता खुद्कुशी करने लगा
अब बतलाएं फ़रिश्ते को खुद्कुशी करवाना शायर ,गज़ल के शायर् के अलावा और किसके वश में है।
ऐसा विचित्र एवम चमत्कृत करने वाला अनुभव साहित्य की किस विधा में मिल सकता है
कुछ और उदाहरण देखें
तुझे बोला था आँखे बंद रखना
खुली आँखों से धोखा खा गया ना
मेरे मरने पे कब्रिस्तान बोला
बहुत इतरा रहा था आ गया ना
(जनाब-दिनेश दर्पण)
मित्रो एक बात और गज़ल की सारी कमनीयता,सौष्ठव व चमत्कृत करने की क्षमता बहर या छंद पर ही टिकी है.
हम कह सकते हैं कि गज़ल शब्दों की कलात्मक बुनकरी है ।
अगर हम उपरोक्त शेर को बह्र के बिना लिखें
मरने पे मेरे कब्रिस्तान बोला
इतरा रहा था बहुत आ गया ना
आप ही कहें सारे शब्द वही हैं ,केवल उनका थोड़ा सा क्रम बदलने से क्या वह आनन्द जो पहली बुनकरी में था,गायब नहीं हो गया।बस इसी लिये बहर का ज्ञान आवश्यक है।
[ मित्रो ! मैं अपनी यूरोपिय यात्रा के अन्तिम चरण में व्यस्त होने के कारण नई गज़ल पोस्ट नहीं कर पा रहा था अत: यह संक्षिप्त आलेख जो ब्लॉग जगत व अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ और पसन्द किया गया ,यहां दोबारा पोस्ट कर रहा हूं ३० अगस्त को भारत लौटकर नई ग़ज़ल नियमित पोस्ट होगी वादा रहा तब तक इस का लुत्फ़ उठाएं ]
अ
१- बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
२-बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या
ब
१ मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की
२
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता
स
१ जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां
२ उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है
अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर १ या नीले रंग से अंकित पंक्तियां गीतांश हैं और अंकितनं २ या गेरूए रंग से पंक्तियां शे‘र हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं
कि गीत में स्त्रैण कोमलता है
,जबकि गज़ल कहने में पुरुषार्थ झलकता है।
या गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,
वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा इसी तरह शे’र के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता किअगले मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता और यह चमत्कृत करने का अन्दाज ही ग़ज़ल की खसूसियत है-इसे और महसूस करें
और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र वसीम बरेलवी साहिब के हैं।
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ खुद
[अब थोड़ा रुक कर सोचिये कि आगे क्या कहा जा सकता है ?]
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
[अब थोड़ा रुक कर सोचिये कि आगे क्या कहा जा सकता है ?]
जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
[यहां भीथोड़ा रुक कर सोचिये कि आगे क्या कहा जा सकता है ?]
अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की शर्तों पे जीता नहीं
जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं
एक और बात
यति और गति या ग्त्यात्मकता और लयात्मक्ता के बिना गज़ल का अस्तित्व ही नहीं हो सकता।क्योंकि गज़ल की बुनियाद सरगम की तरह संगीत के आधार पर[और कहें तो गणित के आधार पर] टिकी है।गज़ल का हर शे‘र अपने आप में सम्पूर्ण तो होता ही है,
वह श्रोता या पाठक को अद्भुत,आकर्षक,अनजाने और एक निराले अर्थपूर्ण अनुभव तक ले आने में सक्षम होता है।
देखें कुछ उदाहरण
चाँद चौकीदार बनकर नौकरी करने लगा
उसके दरवाजे के बाहर रोशनी करने लगा
चाँद को चौकीदार केवल गज़ल का शायर ही बना सकता है
बाल खोले नर्म सोफ़े पर पड़ी थी इक परी
मेरे अन्दर एक फ़रिश्ता खुद्कुशी करने लगा
अब बतलाएं फ़रिश्ते को खुद्कुशी करवाना शायर ,गज़ल के शायर् के अलावा और किसके वश में है।
ऐसा विचित्र एवम चमत्कृत करने वाला अनुभव साहित्य की किस विधा में मिल सकता है
कुछ और उदाहरण देखें
तुझे बोला था आँखे बंद रखना
खुली आँखों से धोखा खा गया ना
मेरे मरने पे कब्रिस्तान बोला
बहुत इतरा रहा था आ गया ना
(जनाब-दिनेश दर्पण)
मित्रो एक बात और गज़ल की सारी कमनीयता,सौष्ठव व चमत्कृत करने की क्षमता बहर या छंद पर ही टिकी है.
हम कह सकते हैं कि गज़ल शब्दों की कलात्मक बुनकरी है ।
अगर हम उपरोक्त शेर को बह्र के बिना लिखें
मरने पे मेरे कब्रिस्तान बोला
इतरा रहा था बहुत आ गया ना
आप ही कहें सारे शब्द वही हैं ,केवल उनका थोड़ा सा क्रम बदलने से क्या वह आनन्द जो पहली बुनकरी में था,गायब नहीं हो गया।बस इसी लिये बहर का ज्ञान आवश्यक है।
[ मित्रो ! मैं अपनी यूरोपिय यात्रा के अन्तिम चरण में व्यस्त होने के कारण नई गज़ल पोस्ट नहीं कर पा रहा था अत: यह संक्षिप्त आलेख जो ब्लॉग जगत व अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ और पसन्द किया गया ,यहां दोबारा पोस्ट कर रहा हूं ३० अगस्त को भारत लौटकर नई ग़ज़ल नियमित पोस्ट होगी वादा रहा तब तक इस का लुत्फ़ उठाएं ]
Sunday, August 16, 2009
फ़ुटकर शे' र- 5
दोस्त तो सिर्फ़ दोस्त होता है
दोस्त खोटा खरा नहीं होता
संजीव गौतम said... अच्छा शेर है. पूरी ग़ज़ल भी कह डालिये
भाई संजीव गौतम जी ,फ़ुटकर शेर के अन्तर्गत मैं अपने वे शेर भर पोस्ट कर रहा हूं जो कम से कम १०-१५ वर्ष पूर्व हुए और जिन पर मैं आगे और कुछ नहीं लिख पाया,और मैने आमतौर पर कोई शब्द भी नहीं लिखता जब तक वह मन में आकर बगाव्त न करे बाहर आने की ३-४ अच्छी नामीगिरामी पत्रिकाओं ने समसामयिक लेख लिखने पत्रों ने फ़ीचर या कॉलम हेतु भी आमन्त्रण दिया पर मै नही कर पाया अत: गजल कभी पूरी हुई तो हो मैं कोशिश करने का वादा नहीं कर सकता और अब तो भाई दीक्षित दनकौरी ने इस जमीन पर एक बेहतर गज़ल लिख दी है अत; यह शेर लेकर गज़ल पूरी करना बेमानी व गल्त होगा,भाई दीक्षित दनकौरी का शेर देखें
या तो होता है या नहीं होता
शे’र अच्छा बुरा नहीं होता
Monday, August 10, 2009
सबका हिसाब रखता है/गज़ल
26
लिख के सबका हिसाब रखता है
दिल में ग़म की किताब रखता है
कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या
खुद को खानाखराब रखता है
आग आँखों में और मुट्ठी में
वो सदा इन्किलाब रखता है
जो है देखें जमाने की सीरत
खुद को वो कामयाब रखता है
उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
मुटठी में माहताब रखता है
बाट खुशियों की जोहता है तू
दिल में क्यों फिर अजाब रखता है
आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
कब किसी का हिजाब रखता है
उससे क्या गुफ़्तगू करोगे तुम
वो सभी का जवाब रखता है
श्याम’ चितचोर, है नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लाग
http://katha-kavita.blogspot.com/
Tuesday, August 4, 2009
मुझे दे के थपकी सुलाने लगी है-gazal
मुझे दे के थपकी सुलाने लगी है
हवा देखिये मुस्कराने लगी है
समन्दर मिला आसमां से उफ़नकर
नदी आज फ़िर खिलखिलाने लगी है
लिपटते जो देखा भंवर को कली से
नवेली सी दुल्हन लजाने लगी है
कभी दूर जाकर कभी पास आकर
मुहब्बत ग़ज़ल गुनगुनाने लगी है
न कोई रहा है,न कोई रहेगा
घड़ी हर घड़ी यह जताने लगी है
महकती,बहकती हवा कह रही है
मिलन यामिनी पास आने लगी है
हुई बन्द धड़कन,रुकी सांस मेरी
'सखा' याद तेरी यूं आने लगी है
गज़ल गीत सुनकर सखा जी[मेरी जां] तुम्हारे
जमाने पे मस्ती सी छाने लगी है
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन
--
इस वादे के साथ कि आप का समय व्यर्थ न होगा
आप यहां भी आमन्त्रित हैं
http://katha-kavita.blogspot.com/
Sunday, August 2, 2009
एक फ़ुटकर शे'र/ श्याम सखा
Wednesday, July 29, 2009
गज़ल - श्याम सखा श्याम
बने फिरते थे जो जमाने मे शातिर
पहाड़ों तले आये वे ऊंट आखिर
छुपाना है मुश्किल इसे मत छुपा तू
हुई है सदा ही मुह्ब्बत तो जाहिर
बना क़ैस ,रांझा बना था कभी मैं
मेरी जान सचमुच मैं तेरी ही खातिर
खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
हुआ है खिताब अपना तब से ही काफिर
बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
कहें लोग हरफ़न में उस को तो माहिर
मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर
तेरी खूबियां 'श्याम' सब ही तो जाने
खुशी हो कि हो ग़म तू हरदम है शाकिर
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन
शाकिर _ शुक्रगुजार,हरबात पर गम या खुशी देने पर खुदा का शुक्र करने वाला
Friday, July 24, 2009
Monday, July 20, 2009
गज़ल श्याम सखा
तू आर हो जा या पार हो जा
पर इक तरफ मेरे यार हो जा
या तो सिमट कर रह मेरे दिल में
या फैल इतना, संसार हो जा
जो जुल्म बढ़ जाये हद से ज्यादा
तजकर अहिंसा हथियार हो जा
गुल था शरारत करने लगा जब
तितली ने कोसा जा खार हो जा
सूखा है मौसम, सूखी हूँ मै भी
अब प्यार की तू रसधार हो जा
गर थी तुझे धन की कामना तो
किसने कहा था फनकार हो जा
राधा भी तेरी, मीरा भी तेरी
तू ‘श्याम’ मेरा इस बार हो जा
मुस्तफ़इलुन फ़ा ,मु्स्तफ़इलुन फ़ा
Monday, July 13, 2009
दिल ग़म से बेहाल रहा है
दिल ग़म से बेहाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है
मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है
हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है
दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है
मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है
हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है
दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
Thursday, July 9, 2009
फ़ुटकर -शे‘र---3
Monday, July 6, 2009
कौन करता नहीं गलतियां-गज़ल
करते तो हैं सभी गलतियां
ढूंढते बस मेरी गलतियां
सामने आएंगी एक दिन
दोस्तो, आपकी गलतियां
तल्खियां ही मुझे दे गईं
थीं बडी मतलबी गलतियां
लूटकर ले गईं चैन ही
ये मरीं दिलजली गलतियां
लडकियां जब हुई थीं जवां
तब हुई मतलबी गलतियां
खौफ़े औलाद ने दी छुडा
आपसे ’श्याम’ जी गलतियां
2
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
ये असर सजा का हुआ
रोज बढ़ती गईं गलतियां
आदमी तो था मैं काम का
आप ने ढूंढ लीं गलतियां
हर कदम,हर दिवस, उम्र भर
साथ मेरे रहीं गलतियां
नासमझ मैं नहीं जब रहा
मुझको अपनी लगीं गलतियां
खूब है आपका ये हुनर
नाम मेरे लिखीं गलतियां
भागने जब लगे ‘श्याम’जी
सामने आ खड़ीं गलतियां
फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
कुछ युवा मित्रों ने गज़ल छंद सीखने की इच्छा ज़ाहिर की है मैने उन्हे लिखा था कि वे प्रारम्भिक ज्ञान‘श्री सतपाल खयाल के ब्लॉग आज की गजल, पर श्री प्राण शर्मा के गज़ल संबंधी लेख पढ़ लें ,फिर कोई जिज्ञासा हो तो मुजे लिखें मैं यथा अपनी सामर्थ्य कोशिश करूंगा उन्ही हेतु यह प्रयोग है आज का
आज की गज़ल हेतु ,एक ही रदीफ़ व बहर की दो गज़ल पोस्ट कर रहा हूं।
जैसा आप देख लेंगे यहां एक गज़ल में काफ़िये में अनुस्वार है,दूसरी में काफ़िये
बिना अनुस्वार के हैं।इससे नव गज़लकारों को काफ़िये की इस विशेष स्थिति के बारे में पता लगेगा
यही नही दूसरी गज़ल का मक्ता यूं बेहतर दिखता
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ हर कहीं गलतियां
मगर यहां काफ़िये हैं नहीं व कहीं अत: गजल की तहजीब के अनुसार आगे आने वाले हर शे‘र में काफ़िये में हीं शब्द अनिवार्य हो जाता अत: इसे बदलकर-वर्तमान रूप देना अनिवार्य हो गया था
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
करते तो हैं सभी गलतियां-गज़ल
करते तो हैं सभी गलतियां-
ढूंढते बस मेरी गलतियां
सामने आएंगी एक दिन
दोस्तो, आपकी गलतियां
तल्खियां ही मुझे दे गईं
थीं बडी मतलबी गलतियां
लूटकर ले गईं चैन ही
ये मरीं दिलजली गलतियां
लडकियां जब हुई थीं जवां
तब हुई मतलबी गलतियां
खौफ़े औलाद ने दी छुडा
आपसे ’श्याम’ जी गलतियां
2
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
ये असर सजा का हुआ
रोज बढ़ती गईं गलतियां
आदमी तो था मैं काम का
आप ने ढूंढ लीं गलतियां
हर कदम,हर दिवस, उम्र भर
साथ मेरे रहीं गलतियां
नासमझ मैं नहीं जब रहा
मुझको अपनी लगीं गलतियां
खूब है आपका ये हुनर
नाम मेरे लिखीं गलतियां
भागने जब लगे ‘श्याम’जी
सामने आ खड़ीं गलतियां
फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
कुछ युवा मित्रों ने गज़ल छंद सीखने की इच्छा ज़ाहिर की है मैने उन्हे लिखा था कि वे प्रारम्भिक ज्ञान‘श्री सतपाल खयाल के ब्लॉग आज की गजल, पर श्री प्राण शर्मा के गज़ल संबंधी लेख पढ़ लें ,फिर कोई जिज्ञासा हो तो मुजे लिखें मैं यथा अपनी सामर्थ्य कोशिश करूंगा उन्ही हेतु यह प्रयोग है आज का
आज की गज़ल हेतु ,एक ही रदीफ़ व बहर की दो गज़ल पोस्ट कर रहा हूं।
जैसा आप देख लेंगे यहां एक गज़ल में काफ़िये में अनुस्वार है,दूसरी में काफ़िये
बिना अनुस्वार के हैं।इससे नव गज़लकारों को काफ़िये की इस विशेष स्थिति के बारे में पता लगेगा
यही नही दूसरी गज़ल का मक्ता यूं बेहतर दिखता
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ हर कहीं गलतियां
मगर यहां काफ़िये हैं नहीं व कहीं अत: गजल की तहजीब के अनुसार आगे आने वाले हर शे‘र में काफ़िये में हीं शब्द अनिवार्य हो जाता अत: इसे बदलकर-वर्तमान रूप देना अनिवार्य हो गया था
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
Friday, July 3, 2009
फुटकर शे‘र-३
Subscribe to:
Posts (Atom)