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Monday, September 5, 2016
Tuesday, June 22, 2010
एक और इम्तिहान है-गज़ल
है जान तो जहान है
फ़िर काहे का गुमान है
क्या कर्बला के बाद भी
एक और इम्तिहान है
इतरा रहे हैं आप यूं
क्या वक्त मेहरबान है
हैं लूट राहबर रहे
जनता क्यों बेजुबान है
है ‘श्याम ’बेवफ़ा नहीं
हाँ इतना इत्मिनान है
मेरा एक और ब्लॉग
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Monday, February 15, 2010
मेरी जां मुझको बस अपना कहो ना-gazal
नहीं कहना अगर सहरा को सहरा
वही किस्सा पुराना सा कहो ना
बहुत प्यारा है दोबारा कहो ना
नहीं कहना अगर सहरा को सहरा
इसे तुम रेत का दरिया कहो ना
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
मेरी जां मुझको बस अपना कहो ना
नहीं अच्छा घुमाकर बात करना
जो भी कहना है बस सीधा कहो ना
मिले हैं आज हम तुम जो अचानक
है ये सच या कोई सपना कहो ना
सदा जो नाचती बंशी की धुनपर
उसे राधा कहो श्यामा कहो ना
फ़िरे है ‘श्याम’ खुद को ढूंढ़ता सा
उसे पागल या दीवाना कहो ना
मफ़ाएलुन,मफ़ाएलुन,फ़ऊलुन
मेरा एक और ब्लॉग
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Saturday, February 13, 2010
श्याम सखा-साहित्य अकादमी हरियाणा का सदस्य मनोनीत
प्रिय मित्रो
आप को यह जानकर खुशी होगी कि
आप सरीखे मित्रों की दुआओं से मुझे
साहित्य अकादमी हरियाणा का तीन वर्ष के लिये सदस्य मनोनीत किया गया है-यह दूसरी बार है कि आपके इस नाचीज मित्र को सदस्य बनायागया है।
इसके अलावा आपका यह मित्र पंजाबी साहित्य अकादमी हरियाणा चंडीगढ़ का सदस्य भी दूसरी बार मनोनीत हुआ है
समय होने पर इस पोस्ट के नीचे पोस्ट हुई गज़ल व यह पोस्ट भी देखें
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
आप को यह जानकर खुशी होगी कि
आप सरीखे मित्रों की दुआओं से मुझे
साहित्य अकादमी हरियाणा का तीन वर्ष के लिये सदस्य मनोनीत किया गया है-यह दूसरी बार है कि आपके इस नाचीज मित्र को सदस्य बनायागया है।
इसके अलावा आपका यह मित्र पंजाबी साहित्य अकादमी हरियाणा चंडीगढ़ का सदस्य भी दूसरी बार मनोनीत हुआ है
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मुझको नशे से ज्यादा नशा,
बीमार कर सकती है टिप्पणी--सावधान हो जाएं
मेरा एक और ब्लॉग
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Thursday, February 11, 2010
मुझको नशे से ज्यादा नशा,
यूं तो वो हमेशा ही दिल के पास में रहा
पर,उसका जल्वा मुस्तकिल कयास में रहा
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा
तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा
तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा
राधा का‘श्याम’ भी था वो मीरा का‘श्याम’ भी
जो गोपियों के साथ मस्त,रास में रहा
मेरा एक और ब्लॉग
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पर,उसका जल्वा मुस्तकिल कयास में रहा
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा
तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा
तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा
राधा का‘श्याम’ भी था वो मीरा का‘श्याम’ भी
जो गोपियों के साथ मस्त,रास में रहा
मेरा एक और ब्लॉग
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Monday, February 1, 2010
चुप भी तो रह पाना मुश्किल-gazal-
अपनों को समझाना मुश्किल
चुप भी तो रह पाना मुश्किल
खोना मुश्किल पाना मुश्किल
खाली मन बहलाना मुश्किल
मौन रहें, तो बात बने कब
कहकर भी सुख पाना मुश्किल
बैरी सावन बरसे रिमझिम
रातों का कट पाना मुश्किल
सुलझों को उलझाना आसां
उलझों को सुलझाना मुश्किल
चुप भी तो रह पाना मुश्किल
खोना मुश्किल पाना मुश्किल
खाली मन बहलाना मुश्किल
मौन रहें, तो बात बने कब
कहकर भी सुख पाना मुश्किल
बैरी सावन बरसे रिमझिम
रातों का कट पाना मुश्किल
सुलझों को उलझाना आसां
उलझों को सुलझाना मुश्किल
dbgm-3
मेरा एक और ब्लॉग
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Thursday, January 28, 2010
क्या खबर थी कि वो इक रोज पराया होगा
जब हुनर उसको खुदा ने ये सिखाया होगा
एक कतरे में समन्दर जा समाया होगा
दिल मेरा उसने कभी जो यूं दुखाया होगा
उसको भी यार नहीं चैन तो आया होगा
उसको मालूम था जब इसका उजागर होना
प्यार क्यों उसने जमाने से छुपाया होगा
आज मौजूद नहीं था वो हसीं तो यारो
रंग महफिल में भला किसने जमाया होगा
आज मौजूद नहीं था वो हसीं तो यारो
रंग महफिल में भला किसने जमाया होगा
बन के धड़कन जो धड़कता था रहा दिल में“श्याम‘
क्या खबर थी कि वो इक रोज पराया होगा
फ़ाइलातुन,फ़ इ लातुन,फ़ इ लातुन,फ़ेलुन
यहां कोहरे पर दो नवगीत देखें
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Wednesday, January 20, 2010
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
पल में तोला,पल में माशा है
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
मेरे मन में तो है रहती हरदम
तुझसे मिलने की अभिलाषा है
वक्त बुरा है तब ही तो बैठी
हर इक मन में आज हताशा है
लौट सदा जो आ जाती मन में
वो दोशीजा ही तो आशा है
ना समझो को समझाना होगा
यार गजल उल्फ़तकी भाषा है
‘श्याम’तुझे हम मान गये,तूने
गज़लों में माहौल तराशा है
मेरा एक और ब्लॉग
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जीवन भी क्या खूब तमाशा है
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
मेरे मन में तो है रहती हरदम
तुझसे मिलने की अभिलाषा है
वक्त बुरा है तब ही तो बैठी
हर इक मन में आज हताशा है
लौट सदा जो आ जाती मन में
वो दोशीजा ही तो आशा है
ना समझो को समझाना होगा
यार गजल उल्फ़तकी भाषा है
‘श्याम’तुझे हम मान गये,तूने
गज़लों में माहौल तराशा है
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Wednesday, January 13, 2010
कुछ फ़ुटकर शे‘र-११
यूं भला कब तक मेरा इम्तिहान लोगे तुम
इस तरह तो एक दिन मेरी जान लोगे तुम
है खड़ी इक फ़स्ल गम की दिल में मेरे
दर्द की इस फ़स्ल का भी लगान लोगे तुम
एक पैसा दे के मैने दुआ थी चाही जब
कह उठा तब था फकीर आसमान लोगे तुम ?
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग
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इस तरह तो एक दिन मेरी जान लोगे तुम
है खड़ी इक फ़स्ल गम की दिल में मेरे
दर्द की इस फ़स्ल का भी लगान लोगे तुम
एक पैसा दे के मैने दुआ थी चाही जब
कह उठा तब था फकीर आसमान लोगे तुम ?
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
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Monday, January 4, 2010
हम तुम्हारे है नहीं कुछ भी मगर
हम तुम्हारे है नहीं कुछ भी मगर
गर मिलें तो जिन्दगी जाये सँवर
बाँकी चितवन और थी तिरछी नजर
चढ़ गई तलवार ज्यों हो सान पर
घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र
अब महाभारत रुके कैसे भला
आ खड़े हैं जब सभी मैदान पर
भूलना मुमकिन कहाँ है दोस्तो
देखना उसका मुझे यूं आँख भर
ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
नींद लेकिन बिक रही है दाम पर
कौरवों में पाँडवो में था समर
आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर
मेरा एक और ब्लॉग
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गर मिलें तो जिन्दगी जाये सँवर
बाँकी चितवन और थी तिरछी नजर
चढ़ गई तलवार ज्यों हो सान पर
घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र
अब महाभारत रुके कैसे भला
आ खड़े हैं जब सभी मैदान पर
भूलना मुमकिन कहाँ है दोस्तो
देखना उसका मुझे यूं आँख भर
ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
नींद लेकिन बिक रही है दाम पर
कौरवों में पाँडवो में था समर
आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर
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Tuesday, December 29, 2009
फ़ुटकर शे‘र नं ११- हैं बहुत नाजुक मगर
हैं बहुत नाजुक मगर डरते नहीं हैं आइने
फ़र्क शाहो बांदी में करते नहीं हैं आइने
टूट जाते हैं बिखर जाते है फ़िर भी दोस्तो
अक्स दिखलाने से तो हटते नहीं हैं आइने
i
ईता दोष गज़ल में दूर कर लिया है
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फ़र्क शाहो बांदी में करते नहीं हैं आइने
टूट जाते हैं बिखर जाते है फ़िर भी दोस्तो
अक्स दिखलाने से तो हटते नहीं हैं आइने
i
ईता दोष गज़ल में दूर कर लिया है
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Wednesday, December 23, 2009
मै भला कब सुधरने वाला हूँ
आज कुछ कर गुजरने वाला हूँ
बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ
तोड़ दो कसमें, दो भुला वादे
मैं तो खुद भी मुकरने वाला हूँ
टूटकर बिखरा हूं इस तरह यारो
अब कहाँ मैं संवरने वाला हूँ
जिन्दगी कर दे हसरतें पूरी
खुदकुशी अब मैं करने वाला हूँ
देख लो तुम मुझे सजा देकर
मै भला कब सुधरने वाला हूँ
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग
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बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ
तोड़ दो कसमें, दो भुला वादे
मैं तो खुद भी मुकरने वाला हूँ
टूटकर बिखरा हूं इस तरह यारो
अब कहाँ मैं संवरने वाला हूँ
जिन्दगी कर दे हसरतें पूरी
खुदकुशी अब मैं करने वाला हूँ
देख लो तुम मुझे सजा देकर
मै भला कब सुधरने वाला हूँ
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग
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Wednesday, December 16, 2009
दुश्मन यार जमाना है
खुद को ही समझाना है
यानि पहाड़ उठाना है
प्यार कभी होता होगा
अब तो यार फ़साना है
केवल शक के कारण ही
उलझा तान-बाना है
नाचे है, क्यों दिल मेरा
मौसम खूब सुहाना है
उसका बचना मुश्किल है
दुश्मन यार जमाना है
आज नहीं तो कल यारा
लौट सभी को जाना है
तुमसे दूर ‘सखा’जाना
जीते जी मर जाना है
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग
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यानि पहाड़ उठाना है
प्यार कभी होता होगा
अब तो यार फ़साना है
केवल शक के कारण ही
उलझा तान-बाना है
नाचे है, क्यों दिल मेरा
मौसम खूब सुहाना है
उसका बचना मुश्किल है
दुश्मन यार जमाना है
आज नहीं तो कल यारा
लौट सभी को जाना है
तुमसे दूर ‘सखा’जाना
जीते जी मर जाना है
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
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Saturday, December 12, 2009
पुराना शे‘र नई बहर में--श्याम सखा
दिल आज फ़िर फ़साद करने लगा है
उस बेवफा को याद करने लगा है
बेताब रूह थी कभी मिलने को ‘श्याम’
अब जिस्म भी जिहाद करने लगा है
मुस्तफ़इलुन,मफ़ाइलुन,फ़ाइलातुन
२ २ १ २, १२ १ २. २ १२ २
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रकीबों से उधार
Monday, December 7, 2009
-फ़ुटकर शे‘र-नं १०
दिल भी क्या-क्या फ़साद करता है
चाहे जब तुझको याद करता है
तुझसे मिलने को रूह ही तो नहीं
जिस्म भी अब जिहाद करता है
Saturday, November 28, 2009
दिल की बस इतनी खता है
वो तुझे ही चाहता है
वक्त कितना बेवफ़ा है
दिल की बस इतनी खता है
वो तुझे ही चाहता है
प्यार जब ग़म की दवा है
रूह फिर क्यों ग़मजदा है
सिर्फ़ सच ही तो कहा था
हो गया वो क्यों खफ़ा है
जुल्म सहना, मुस्कराना
आपकी बेढ़ब अदा है
याद तेरी आ रही है
एक बच्चा रो रहा है
क्या कहीं फिर बम फटा है
दर्दे-दिल की`श्याम’जी अब
क्या कहीं कोई दवा है
फ़ाइलातुन.फ़ाइलातुन25/112
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Tuesday, November 24, 2009
घर आपका टूटा नहीं होता ---गज़ल
उसको अगर परखा नहीं होता सखा
घर आपका टूटा नहीं होता सखा
मैने तुझे देखा नहीं होता सखा
फिर चाँद का धोखा नहीं होता सखा
हर रोज ही तो है सफर करता मगर
सूरज कभी बूढ़ा नहीं होता सखा
इजहार है इक दोस्ताना प्यार तो
इसका कभी सौदा नहीं होता सखा
उगने की खातिर धूप भी है लाजमी
बरगद तले पौधा नहीं होता सखा
मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन
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भारत से श्याम सखा की कहानी: एनकाउंटर-a love story
Tuesday, November 17, 2009
तेरा सलोना बदन-है --कि है ये राग यमन -गज़ल
तसुव्वरात में लाऊँ तेरा सलोना बदन
भला मै कैसे भुलाऊँ तेरा सलोना बदन
मगन यूँ होके तुझे मैं निहारूँ, मेरे बलम
पलक-झपक मैं छुपाऊँ तेरा सलोना बदन
नयन तेरे हैं ये मस्ती के प्याले मेरी प्रिया
मैं दिल में अपने बसाऊँ तेरा सलोना बदन
ढलकती-सी तेरी पलकें, ये बांकपन तेरा
नजर से जग की बचाऊँ तेरा सलोना बदन
किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन
किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन
बड़े कुटिल हैं इरादे जनाब ‘श्याम’ के तो
भला मैं कैसे बचाऊँ तेरा सलोना बदन
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
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Friday, November 6, 2009
दीवाने की कब्र खुदी तो-गज़ल
५२
लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने नि·ले
'श्या्म’ उमंगें ले्कर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
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अब घर कहां ?-कविता यहां पढें
लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने नि·ले
'श्या्म’ उमंगें ले्कर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
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अब घर कहां ?-कविता यहां पढें
Tuesday, October 27, 2009
पहले देंगे जख्म और फिर--- गज़ल
हैं अभी आये अभी कैसे चले जाएँगे लोग
हमसे नादानों को क्या और कैसे समझाएँगे लोग
है नई आवाज धुन भी है नई तुम ही कहो
उन पुराने गीतों को फिर किसलिए गाएँगे लोग
नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी जरूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग
फेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराहे पर खुद ही लगा जाएँगे लोग
हादसों को यूँ हवा देते ही रहना है बजा
देखकर धूआँ, बुझाने आग को आएँगे लोग
हमको कुछ कहना पड़ा है आज मजबूरी में यूँ
डर था मेरी चुप से भी तो और घबराएँगे लोग
इतनी पैनी बातें मत कह अपनी ग़ज़लों में ऐ दोस्त
हो के जख्मी देखना बल साँप-से खाएँगे लोग
कौन है अश्कों का सौदागर यहाँ पर दोस्तो
देखकर तुमको दुखी, दिल अपना बहलाएँगे लोग
है बड़ी बेढब रिवायत इस नगर की ‘श्याम’ जी
पहले देंगे जख्म और फिर इनको सहलाएँगे लोग
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
16-शुक्रिया जिन्दगी -गज़ल संग्रह से
मेरे एक और ब्लॉग पर आज -सूरज का गब़न---कविता
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