करते तो हैं सभी गलतियांढूंढते बस मेरी गलतियांसामने आएंगी एक दिनदोस्तो, आपकी गलतियांतल्खियां ही मुझे दे गईंथीं बडी मतलबी गलतियां लूटकर ले गईं चैन हीये मरीं दिलजली गलतियांलडकियां जब हुई थीं जवांतब हुई मतलबी गलतियांखौफ़े औलाद ने दी छुडाआपसे ’श्याम’ जी गलतियां2
कौन करता नहीं गलतियांहर तरफ ही खड़ीं गलतियांये असर सजा का हुआरोज बढ़ती गईं गलतियांआदमी तो था मैं काम काआप ने ढूंढ लीं गलतियांहर कदम,हर दिवस, उम्र भरसाथ मेरे रहीं गलतियांनासमझ मैं नहीं जब रहामुझको अपनी लगीं गलतियांखूब है आपका ये हुनरनाम मेरे लिखीं गलतियांभागने जब लगे ‘श्याम’जीसामने आ खड़ीं गलतियांफ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
कुछ युवा मित्रों ने गज़ल छंद सीखने की इच्छा ज़ाहिर की है मैने उन्हे लिखा था कि वे प्रारम्भिक ज्ञान‘श्री सतपाल खयाल के ब्लॉग आज की गजल, पर श्री प्राण शर्मा के गज़ल संबंधी लेख पढ़ लें ,फिर कोई जिज्ञासा हो तो मुजे लिखें मैं यथा अपनी सामर्थ्य कोशिश करूंगा उन्ही हेतु यह प्रयोग है आज का
आज की गज़ल हेतु ,एक ही रदीफ़ व बहर की दो गज़ल पोस्ट कर रहा हूं।
जैसा आप देख लेंगे यहां एक गज़ल में काफ़िये में अनुस्वार है,दूसरी में काफ़िये
बिना अनुस्वार के हैं।इससे नव गज़लकारों को काफ़िये की इस विशेष स्थिति के बारे में पता लगेगा
यही नही दूसरी गज़ल का मक्ता यूं बेहतर दिखता
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ हर कहीं गलतियां
मगर यहां काफ़िये हैं नहीं व कहीं अत: गजल की तहजीब के अनुसार आगे आने वाले हर शे‘र में काफ़िये में हीं शब्द अनिवार्य हो जाता अत: इसे बदलकर-वर्तमान रूप देना अनिवार्य हो गया था
कौन करता नहीं गलतियांहर तरफ ही खड़ीं गलतियां