Wednesday, July 29, 2009

गज़ल - श्याम सखा श्याम



बने फिरते थे जो जमाने मे शातिर
पहाड़ों तले आये वे ऊंट आखिर

छुपाना है मुश्किल इसे मत छुपा तू
हुई है सदा ही मुह्ब्बत तो जाहिर

बना क़ैस ,रांझा बना था कभी मैं
मेरी जान सचमुच मैं तेरी ही खातिर

खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
हुआ है खिताब अपना तब से ही काफिर

बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
कहें लोग हरफ़न में उस को तो माहिर

मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

तेरी खूबियां 'श्याम' सब ही तो जाने
खुशी हो कि हो ग़म तू हरदम है शाकिर

फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन
शाकिर _ शुक्रगुजार,हरबात पर गम या खुशी देने पर खुदा का शुक्र करने वाला

18 comments:

  1. ghazal ka mausam aur aapki ghazal....
    gazab ho gaya...
    maza aa gaya !

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  2. janaab...
    bahut achha likha hai...
    aise he likhte rahiyega...

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  3. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  4. मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
    हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

    वाह. क्या बात कही है श्याम जी ........ लाजवाब लिखा है........

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  5. मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
    हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

    bahut badiya, ye shel sabse badhiya laga..
    hamesha ki tarah lajwaab...

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  6. अच्छी ग़ज़ल.....बहुत बहुत बधाई...

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  7. shyam ji ,

    मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
    हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

    in panktiyon ne man moh liya.

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  8. मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
    हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर..
    vaah.

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  9. मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
    हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

    तेरी खूबियां 'श्याम' सब ही तो जाने
    खुशी हो कि हो ग़म तू हरदम है शाकिर

    सुन्दर अभिव्यक्ति
    खूबसूरत गजल

    वीनस केसरी

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  10. कुछ अनूठे काफ़िये...एक नायाब ग़ज़ल

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  11. भई वाह, बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखते हैं डॉ साहिब. मज़ा आ गया.

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  12. मेरे शब्द,मेरे उदगार अपनाने के लिये आप सभी का आभार
    श्याम सखा

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  13. अच्छी ग़ज़ल कही है आपने.... साधुवाद..

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  14. बहुत बढिया गज़ल है बधाई स्वीकारें।

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  15. I am back. What anice and lovely ghazal you have presented. the season of rain and pouring of romance by this ghazal, really your gift is matchless. How feels 'shyam' at Geneva?

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