नहीं कहना अगर सहरा को सहरा
वही किस्सा पुराना सा कहो ना
बहुत प्यारा है दोबारा कहो ना
नहीं कहना अगर सहरा को सहरा
इसे तुम रेत का दरिया कहो ना
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
मेरी जां मुझको बस अपना कहो ना
नहीं अच्छा घुमाकर बात करना
जो भी कहना है बस सीधा कहो ना
मिले हैं आज हम तुम जो अचानक
है ये सच या कोई सपना कहो ना
सदा जो नाचती बंशी की धुनपर
उसे राधा कहो श्यामा कहो ना
फ़िरे है ‘श्याम’ खुद को ढूंढ़ता सा
उसे पागल या दीवाना कहो ना
मफ़ाएलुन,मफ़ाएलुन,फ़ऊलुन
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
ReplyDeleteमेरी जां बस मुझे अपना कहो ना
नहीं अच्छा घुमाकर बात करना
जो भी कहना है बस सीधा कहो ना..
ग़ज़ब के शेर हमेशा की तरह ... सुभान अल्ला ......... बस अपना कहो ना ..... बहुत खूब .......
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteअचानक आज हम तुम जो मिले हैं
ReplyDeleteहै क्या ये सच,या है सपना कहो ना
सच है सच है सच है
खूबसूरत गज़ल है
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
ReplyDeleteमेरी जां बस मुझे अपना कहो ना
बहुत सुन्दर..
बहुत सुंदर जी, आप का ब्लांग लोड होने मै बहुत समय ले रहा है
ReplyDeleteनहीं अच्छा घुमाकर बात करना
ReplyDeleteजो भी कहना है बस सीधा कहो ना
ये शेर खास पसंद आया
आपके ब्लॉग में गजल के अलावा एक बात और भी है जो मुझे बहुत पसंद है और वो है पोस्ट के नियमितता
आप इतने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए नियमित समय पर इतनी सुन्दर गजलें कैसे लिख लेते है मेरे लिए कौतूहल का विषय है
वही किस्सा पुराना सा कहो ना
ReplyDeleteबहुत प्यारा है दोबारा कहो ना
-वाह वाह!!क्या बात है!!
नहीं अच्छा घुमाकर बात करना
ReplyDeleteजो भी कहना है बस सीधा कहो ना
vaise to poori gazal hi khoobsurat hai
lekin ye sher behad pasand aaya hai..
hamesha ki tarah anmol.
ReplyDeleteआप सभी मेरी गज़लों कहानियों को अपने स्नेह से सराबोर करते हैं -उसके आभार के लिये शब्द वाकई छोटे लगने लगते हैं मुझे।आपको अहसास भी नहीं होगा कि अनेक बार आपकी टिप्पणियों ने मेरी गज़लों को और खूबसूरती प्रदान की है।अब इस गज़ल को ही देखिये
ReplyDeleteभाई दिगम्बर नासवा की टिप्पणी ने कैसे शे‘र को संवारा है
ग़ज़ब के शेर हमेशा की तरह ... सुभान अल्ला ......... बस अपना कहो ना ..... बहुत खूब .......
पहले शे‘र था
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
मेरी जां बस मुझे अपना कहो ना
और अब द्खिये दूसरे मिसरे को इस टिप्पणी ने कैसे संवार दिया
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
मेरी जां मुझको बस अपना कहो ना
वैसे शुरूआत में शे‘र की शक्ल यह थी
अजी!ओजी!सुनो जी! छोड़ दो अब
मेरी जां बस मुझे अपना कहो ना
सुंदर रचना!
ReplyDeleteआपकी गज़लें अच्छी हैं और अवश्य ही यह लोकप्रिय होंगी लेकिन जैसा कि आपने अपने ब्लॉग विवरण में लिखा है इने उद्ध्रत करने के लिये क्या हर बार आपकी अनुमति लेनी होगी ? मुझे नहीं लगता कि साहित्य जगत में यह परम्परा है । इसलिये कि मेरी कविताओं की पंक्तियाँ कई जगह उद्ध्रत की जाती हैं . इन पर पोस्टर्स भी बने हैं ।एकाधिक बार पता भी नहीं चलता कि पंक्तियाँ उद्ध्रत की गई हैं । दुश्यंत जी की गज़लें तो लगभग हर उद्घोषक और वक्ता पढ़ता है । मैं आपकी बात से असहमत नहीं हूँ लेकिन मेरा यह मानना है कि शायर की पंक्ति जब भी उद्ध्रत की जाए तो उसका नाम अवश्य लिया जाये । हाँ किसी पंक्ति को अपने नाम से पढ़ देना सरासर धोखाधड़ी है मैं इसका विरोध करता हूँ ।
ReplyDeleteजरूरत है कहां रिश्तों की हमको
ReplyDeleteमेरी जां मुझको बस अपना कहो ना
vishesh bhaya ye sher
saral sundar, achchha laga.
ReplyDeleteBahut Sundar Rachana...Aabhar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
जरूरत है कहां रिश्तों की हमको
ReplyDeleteमेरी जां मुझको बस अपना कहो ना
वाह...वाह...वाह...लाजवाब अशआरों से सजी आपकी ये ग़ज़ल बेजोड़ है.
नीरज
अच्ची ग़ज़ल। बधाई।
ReplyDeleteनहीं अच्छा घुमाकर बात करना
ReplyDeleteजो भी कहना है बस सीधा कहो ना.... वाह वाह... अच्छा लगा