है जान तो जहान है
फ़िर काहे का गुमान है
क्या कर्बला के बाद भी
एक और इम्तिहान है
इतरा रहे हैं आप यूं
क्या वक्त मेहरबान है
हैं लूट राहबर रहे
जनता क्यों बेजुबान है
है ‘श्याम ’बेवफ़ा नहीं
हाँ इतना इत्मिनान है
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
है श्याम बेवफ़ा नहीं
ReplyDeleteइतना तो इत्मिनान है
ये इत्मिनात ही बहुत कुछ है
छोटी बहर तो मेरी कमजोरी है
behatareen..............
ReplyDeleteइतरा रहे हैं आप यूं
क्या वक्त मेहरबान है
daad sweekaren
इतरा रहे हैं आप यूं
ReplyDeleteक्या वक्त मेहरबान है
कम शब्दों में बड़ी बातें कह दी।
सुन्दर ग़ज़ल।
है श्याम बेवफ़ा नहीं
ReplyDeleteइतना तो इत्मिनान है अल्फाजों के साथ इंसाफ किया है, शुभकामनायें
sundar rachna shyaam ji!
ReplyDeleteख़ूब!
ReplyDeleteइतरा रहे हैं आप यूं
ReplyDeleteक्या वक्त मेहरबान है..
....बहुत सुंदर ग़ज़ल
छोटी बहर में एक सहज से प्रवाह के साथ ग़ज़ल अच्छी लगी ।
ReplyDeleteवाह!! बेहतरीन निभाया...आनन्द आ गया.
ReplyDeleteपांचो शेर बहुत खूब फरमाया आपने
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल....
ReplyDeleteक्या कर्बला के बाद भी
ReplyDeleteएक और इम्तिहान है
गज़ल के हर शेर मोती
श्याम सखा 'श्याम'जी
ReplyDeleteनमस्कार !
इतने दिन बाद फिर आपके यहां आया हूं …
राहत मिली ।
इतरा रहे हैं आप यूं
क्या वक्त मेहरबान है
सहित पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी ।
आपको भी पर शस्वरं आने का आमंत्रण है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बेहतरीन ग़ज़ल है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
ReplyDeleteहैं लूट राहबर रहे
ReplyDeleteजनता क्यों बेजुबान है
khoobsoorat sher huaa hai.
mere blog ka url change ho gaya hai-
www.kabhi-to.blogspot.com
wah wah shyaam ji..
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