चलो फूलों की इस बस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
कभी भँवरो की भी मस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
नहीं मिलती यहां पर मौत भी माँगे अगर कोई
चलो फिर तो जबरद्स्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
इशारे पर चलें जिसके हमेशा चाँद-तारे भी
भला क्यों न आज उस हस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
बहुत महंगी हुईं हैं खिलवतें अबके बरस यारो
खड़ी इस भीड़ सस्ती यूँ दो पल चुरा लें हम
नहीं किस्मत हमारी ये कि हम पहुंचे किनारों पर
कि लहरों डूबती कश्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
भला क्या कोई पूछे है यहाँ ईमानदारी को
न क्यों मतलब परस्ती से यूं दो पल चुरा लें हम
लगा है ‘श्याम’तो करने खुराफाते नईं यारो
उसी की इस मटरगश्ती से यूँ दो पल चुरालें हम
मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन
कुछ दोस्तों को कश्ती व मटरगश्ती काफ़िये अटकेंगे वे इन्हे न पढें
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
bahut khoob !
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है ... खास कर ये शेर बहुत पसंद आया
ReplyDeleteइशारे पर चलें जिसके हमेशा चाँद-तारे भी
भला क्यों न आज उस हस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
दुसरे शेर के दूसरी पंक्ति में
"चलो फिर तो जबरद्स्ती से दो यूँ पल चुरा लें हम'
को "चलो फिर तो जबरद्स्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम' कर दें ...
मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन
ReplyDeleteवह डॉक्टर साहब , तकनीकि दृष्टि से एकदम दुरुस्त ग़ज़ल । शेर ( अशआर ) भी पसंद आये ।
वह श्याम बहुत अच्छा लिखा है...पसंद आया ...ऐसे ही लिख कर दिल हमारा चुरा लोगे तुम!!!
ReplyDeleteहरीश
श्याम जी, बहुत सुन्दर रचना है, बधाई। बस टाइपिंग त्रुटियाँ (मुझे तो यही लगा) कुछ खटक रही हैं और कहीं-कहीं थोड़ा सा मात्रिक-छान्दसिक हेर-फेर है। यह ध्यान दिलाना चाहूँगा कि-
ReplyDelete"भला क्यों न आज उस हस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम"
में "भला" की जगह "तो" कर दें तो बह्र में आ जायगी बात।
हो सकता है कि मेरे पढ़ने में कमी हो - क्योंकि ग़ज़ल की बहुत सी मात्राएँ तो पढ़ने या गाने के अन्दाज़ पर निर्भर हैं, मगर मुझे यह भी लगा कि -
"नहीं मिलती यहां पर मौत भी अगर माँगे कोई" की जगह अगर -
"नहीं मिलती यहां पर मौत भी माँगे अगर कोई" शायद कहा होगा आपने - टाइप करते समय बदल गया।
बस ऐसा ही कुछ था दो-तीन जगह।
मगर रचना ख़ूब रही और खुराफ़ातें-मटरगश्ती वाला जुमला तो ख़ैर लासानी है - बहुत पसन्द आई ये रचना।
bhai mohan ji v aap sabhee kaa aabhaar नहीं मिलती यहां पर मौत भी मांगे अगर कोई
ReplyDeleteटंकन गलती है ठीक करुंगा अभी नेट ठीक काम नहीं कर रहा
मगर इस मिसरे में बह्र ठीक है दोबारा देखें
भला क्यॊं नाज[ न आज] होने से बह्र ठीक है
वाह ! क्या बात है .....
ReplyDeleteनहीं मिलती यहां पर मौत भी अगर माँगे कोई
चलो फिर तो जबरद्स्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम.....
जी हाँ....अकसर ऐसा होता है जो चाहिए नहीं मिलता...
अगर आप हाइकु पढ़ने का अभंयास करेंगे ...ज्यादा जीना सीखेंगे
पता है....
hindihaiku@gmail.com
hindihaiku.wordpress.com
हरदीप
मतला बहुत सुंदर है....
ReplyDeleteचलो फूलों की इस बस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
कभी भँवरो की भी मस्ती से यूँ दो पल चुरा लें हम
बहुत खूब...एक जगह और टाइपिंग में गलती हुई है ...
"खड़ी इस भीड़ सस्ती यूँ दो पल चुरा लें हम" में 'से' रदीफ़ लगाना भूल गए शायद
लगा है ‘श्याम’तो करने खुराफाते नईं यारो
ReplyDeleteउसी की इस मटरगश्ती से यूँ दो पल चुरालें हम
Mazaaagaya sham ji.