मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में यूं हमसे जिन्दगी
हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत माँगोगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी
मुतफ़ाइलुन= चार बार
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
ReplyDeleteइस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
वाह जी बहुत सुंदर. धन्यवाद
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
ReplyDeleteपाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
acchi ghazal.....badhai!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है श्याम जी ।
ReplyDeleteक्या बात है , अब कुछ लिखना कम हो गया है ।
shyam ji, aapki 2 gazal padi fursat me sari paduga. bahut hi sundar lekhan.
ReplyDeleteनाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
ReplyDeleteइस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
जख़्म ही तो जिन्दगी से रूबरू करवाते है
सुन्दर
jawab nahin sir ji kasam se
ReplyDeletejawab nahin sir ji kasam se
ReplyDeleteWaah...bahut hi sundar gazal....
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