हुस्न की ये बानगी है
दिल पे अपने आ बनी है
बेहिसी है बेकली है
दिल पे अपने आ बनी है
बेहिसी है बेकली है
हाय कैसी जिन्दगी है
जुल्फ़ तेरी छेड़ती है
ये हवा तो मनचली है
ख्वाब भी लगते पराये
अजनबी सी जिन्दगी है
चाहता महबूब को हूं
क्या नहीं ये बन्दगी है
तेरे बिन लगता नहीं है
ये भी दिल की दिल्लगी है
खलबली दिल में मची है
क्या बला की सादगी है
खलबली दिल में मची है
क्या बला की सादगी है
हो के गुमसुम बैठना भी
‘श्याम’ की यायावरी है
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