हुस्न की ये बानगी है
दिल पे अपने आ बनी है
बेहिसी है बेकली है
दिल पे अपने आ बनी है
बेहिसी है बेकली है
हाय कैसी जिन्दगी है
जुल्फ़ तेरी छेड़ती है
ये हवा तो मनचली है
ख्वाब भी लगते पराये
अजनबी सी जिन्दगी है
चाहता महबूब को हूं
क्या नहीं ये बन्दगी है
तेरे बिन लगता नहीं है
ये भी दिल की दिल्लगी है
खलबली दिल में मची है
क्या बला की सादगी है
खलबली दिल में मची है
क्या बला की सादगी है
हो के गुमसुम बैठना भी
‘श्याम’ की यायावरी है
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
ये दिल तुझ बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें .....
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल .......!!
बहुत खूब डॉक्टर साहब .
ReplyDeleteसारांश तो हीर जी ने लिख ही दिया है. :)
khoobsoorat gazal Shyam bhai ! Badhaaee
ReplyDeleteaur shubh kamna .
आप सभी का आभार.
ReplyDeleteहाय कैसी बेकसी है
ReplyDeleteबात दिल पर जा लगी है .
दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें डॉ श्याम जी.
"हो के गुमसुम बैठना भी
ReplyDelete‘श्याम’ की यायावरी है"
बहुत खूब कहा !
shayam sir aapki yayawari bha gayee:)
ReplyDeleteAAp sabhi ka shukriya
ReplyDelete♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
चाहता महबूब को हूं
क्या नहीं ये बंदगी है ?
बेशक है साहब !
आदरणीय डॉ. श्यामसखा श्याम जी
ख़ूबसूरत ग़ज़ल है ...सारे शेर प्यारे हैं
मुबारकबाद !
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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वाह सर खूबसूरत
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