Monday, January 21, 2013

आंखे तो गीलीं थीं / सूखे मन मौसम थे -gazal by Dr shyam skha shyam


दुनिया भर के गम थे
और  अकेले   हम  थे

आंखे  तो  गीलीं  थीं 
सूखे मन   मौसम थे

गोली  थी छाती   पर
हाथों   में   परचम थे

दोस्त हुये जब दुश्मन
गम ही बस हमदम थे

खुशियों की  दुपहर में
बरसे गम छम छम थे

हव्वा    हाथों      हारे
यार मियां आदम थे

नींद उड़ी रातो कीं 
ख्वाब हुए बेदम थे

छोड़ चले जब अपने
साथ खड़े बस गम थे

‘श्याम’ सुलझते कैसे
किस्मत के वे खम थे

मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

3 comments:

  1. आंखे तो गीलीं थीं
    सूखे मन मौसम थे


    लो जी ग़ज़ल के बहाने आपने गीली आँखों से पुकारा तो हम आ गए ..... :))

    आँखें ना गीली कर
    आते तो हम हरदम थे

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  2. बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
    हर शेर दिल को छूता हुआ गुज़र गया...

    अनु

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  3. Thanx heer ji and expression gazal kaboolane ke liye

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