दुनिया भर के गम थे
और अकेले हम थे
आंखे तो गीलीं थीं
सूखे मन मौसम थे
गोली थी छाती पर
हाथों में परचम थे
दोस्त हुये जब दुश्मन
गम ही बस हमदम थे
खुशियों की दुपहर में
बरसे गम छम छम थे
हव्वा हाथों हारे
यार मियां आदम थे
नींद उड़ी रातो कीं
ख्वाब हुए बेदम थे
छोड़ चले जब अपने
साथ खड़े बस गम थे
‘श्याम’ सुलझते कैसे
किस्मत के वे खम थे
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
आंखे तो गीलीं थीं
ReplyDeleteसूखे मन मौसम थे
लो जी ग़ज़ल के बहाने आपने गीली आँखों से पुकारा तो हम आ गए ..... :))
आँखें ना गीली कर
आते तो हम हरदम थे
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteहर शेर दिल को छूता हुआ गुज़र गया...
अनु
Thanx heer ji and expression gazal kaboolane ke liye
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