Saturday, December 12, 2009

पुराना शे‘र नई बहर में--श्याम सखा






दिल आज फ़िर फ़साद करने लगा है
उस बेवफा को याद करने लगा है

बेताब रूह थी कभी मिलने कोश्याम
अब जिस्म भी जिहाद करने लगा है


मुस्तफ़इलुन,मफ़ाइलुन,फ़ाइलातुन
, १२ . १२


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रकीबों से उधार

12 comments:

  1. बेताब रूह थी कभी मिलने को ‘श्याम’
    अब जिस्म भी जिहाद करने लगा है
    उफ़ ---गज़ब की बेकरारी है !
    लेकिन आनंददायक है।

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  2. बेताब रूह थी कभी मिलने को ‘श्याम’
    अब जिस्म भी जिहाद करने लगा है ...

    खूब श्याम जी ........ उस्ताद हैं आप ग़ज़ब के जादूगर शब्दों के ..........

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  3. बहुत खूब ।
    दिल आज फ़िर फ़साद करने लगा है
    उस बेवफा को याद करने लगा है

    ये दिल भी पक्‍का फसादी होता है ।

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  4. बहुत खूब ।
    दिल आज फ़िर फ़साद करने लगा है
    उस बेवफा को याद करने लगा है

    ये दिल भी पक्‍का फसादी होता है ।

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  5. शानदार कारीगरी..उम्दा भाव!!

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  6. jab jism bhi jihaad karne lage to sthiti badi bhayankaratmak ho jati hai.

    bahut sunder roopantaran.

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  7. badhiya baat.......

    baarik bat,,,,,,,,

    _____shaandaar she'r !

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  8. दिल आज फिर उदास होने लगा...:(

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  9. wah! jaan hai bhai panktiyon mein...

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  10. चुस्त बहर अंदाज नया डाक्टर साब...क्या कहने! वाह!!

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  11. बहुत ही अच्छी रचना
    बहुत-२ आभार

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  12. फ़साद और जिहाद में इस बेचारी का क्या दोष,
    जिसका फ़ोटो आपने साथ में चिपका रखा है!

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