Monday, December 7, 2009

-फ़ुटकर शे‘र-नं १०



दिल भी क्या-क्या फ़साद करता है
चाहे जब तुझको याद करता है

तुझसे मिलने को रूह ही तो नहीं

जिस्म भी अब जिहाद करता है

9 comments:

  1. दिल ही नहीं है संगोकिश्त गम से न भर आये क्यों
    रोयेंगे हम हज़ार बार, कोई हमें मनाये क्यों?

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  2. सही है दस नम्बरी ही है बधाई

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  3. खूबसूरत शेर ........ लाजवाब सर ........

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  4. शेर क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  5. क्‍या ग़ज़ब का फसाद है और क्‍या जि़हाद है? आपने तो इन्‍तिहा तक पहुँचा दिया।
    तिलक राज कपूर

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  6. 'जिहाद'का रोमांस में प्रयोग!!! कमाल! अद्भुत!!! आप अब उस्तादों वाली श्रेणी में आ गये हैं. प्रार्थी को शिष्य बनाने के बारे में क्या विचार है ?

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