हम तुम्हारे है नहीं कुछ भी मगर
गर मिलें तो जिन्दगी जाये सँवर
बाँकी चितवन और थी तिरछी नजर
चढ़ गई तलवार ज्यों हो सान पर
घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र
अब महाभारत रुके कैसे भला
आ खड़े हैं जब सभी मैदान पर
भूलना मुमकिन कहाँ है दोस्तो
देखना उसका मुझे यूं आँख भर
ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
नींद लेकिन बिक रही है दाम पर
कौरवों में पाँडवो में था समर
आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
अब महाभारत रुके कैसे भला
ReplyDeleteआ खड़े हैं जब सभी मैदान पर....
behtreen.
अब महाभारत रुके कैसे भला
ReplyDeleteआ खड़े हैं जब सभी मैदान पर
कौरवों पाँडवो में था समर
आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर
वाह ! बहुत खूब!!
"ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
ReplyDeleteनींद लेकिन बिक रही है दाम पर"
बहुत ही खूबसूरत है !
नव वर्ष की शुभकामनायें !
all lines are superb.....
ReplyDeleteI'm unable to comment on this awesome post.....
Congrats!!!! & Wish U Happy New Year.....
बहुत उम्दा!!
ReplyDelete’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
ReplyDeleteनींद लेकिन बिक रही है दाम पर
बहुत सुन्दर।
नव वर्ष की शुभकामनायें।
घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
ReplyDeleteरात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र
behatareen shyam ji, badhaai.
ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
ReplyDeleteनींद लेकिन बिक रही है दाम पर
waah bahut hi khubsurat sher hai..
bahut badhiya gazal!
ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
ReplyDeleteनींद लेकिन बिक रही है दाम पर
वाह श्याम जी नए तेवर का शेर है...बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई
नीरज
अद्भुत, गजब, कमाल!! क्या कहूं, निःशब्द हो कर रह गया हूँ. इस गजल की धार में मैं बह गया हूँ.
ReplyDeleteमहाभारत वाले दोनों शेर तो अपना मकाम रखते ही हैं लेकिन नींद और ख्वाब वाले शेर ने तो होश उड़ा दिए.
आपने शायद यह तय कर लिया है कि गजल के मैदान में किसी को भी टिकने नहीं देंगे.
बन्धु, इस कामयाब गजल के लिए मुबारकबाद तो दे ही रहा हूँ लेकिन एक प्रार्थना के साथ--हम जैसों पर रहम करें. थोडा निचली सतह पर भी कभी लिख लिया करें.
कौरवों पाँडवो में था समर
ReplyDeleteआ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर
bahut khoob zanaab...
बहुत बढ़िया गजल है। बधाई।
ReplyDeleteघटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र
BEHATREEN
ReplyDeleteख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
ReplyDeleteनींद लेकिन बिक रही है दाम पर
waah bahut kamaal ka sher hai
shaandaar gazal
बहुत खूब ।
ReplyDeleteख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
ReplyDeleteनींद लेकिन बिक रही है दाम पर
वाह ... क्या बात है
बहुत सुन्दर ... लाजवाब ग़ज़ल
शुभ कामनाएं
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श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
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क्रियेटिव मंच
महाभारत से हटकर, गजल के अन्य शेर सशक्त हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल भाई जी.... आप हमेशा ही बहुत बेहतरीन कहते हैं.. बधाई
ReplyDeleteBahut khub...!!
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