आइनों पर यों तो तोहमत हैं लगाते आइने
आइनों की खुद ही शोहरत भी बढ़ाते आइने
आइनों का खुद कहाँ है मोल कोई भी भला
दूसरों के मोल ही बस हैं लगाते आइने
आइनों को है कहाँ फुर्सत कि देखें आइना
आपको दाग आपके ही हैं दिखाते आइने
आइनों को झूठ कहने की भला आदत कहाँ
झूठ को बस झूठ, सच को सच बताते आइने
लोग थे पहले चुराते आइनों से अपना मुँह
अब तो लोगों से हैं मुँह अपना छुपाते आइने
आइनों का है मसीहा वाकई कोई नहीं
खुद-ब-खुद ही टूट कर हैं फैल जाते आइने
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन [२.२.९६ ७ पी .एम ]
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
आइनों की खुद ही शोहरत भी बढ़ाते आइने
आइनों का खुद कहाँ है मोल कोई भी भला
दूसरों के मोल ही बस हैं लगाते आइने
आइनों को है कहाँ फुर्सत कि देखें आइना
आपको दाग आपके ही हैं दिखाते आइने
आइनों को झूठ कहने की भला आदत कहाँ
झूठ को बस झूठ, सच को सच बताते आइने
लोग थे पहले चुराते आइनों से अपना मुँह
अब तो लोगों से हैं मुँह अपना छुपाते आइने
आइनों का है मसीहा वाकई कोई नहीं
खुद-ब-खुद ही टूट कर हैं फैल जाते आइने
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन [२.२.९६ ७ पी .एम ]
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
आइने की खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई।
ReplyDeleteआइने की इस ग़ज़ल पर एक और आइने का शेर:
जानते हैं ये कि पत्थर ही मिला करते हैं पर,
काम अपना इस जहॉं में कर ही जाते आइने।
♥
ReplyDeleteआदरणीय श्याम सखा 'श्याम'जी
सादर अभिवादन !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल है -
आइनों को झूठ कहने की भला आदत कहां
झूठ को बस झूठ, सच को सच बताते आइने
लोग थे पहले चुराते आइनों से अपना मुंह
अब तो लोगों से हैं मुंह अपना छुपाते आइने
बहुत अच्छे शे'र हैं दोनों , मुबारकबाद !
एक शे'र मेरा भी झेलिएगा :)
शाइरों की सोच का सामान तो नहीं
आइनों में देखिए हैवान तो नहीं
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
तभी तो फ़ैज़ ने कहा था.... क्यों आस लगाए बैठे है, शीशों का मसीहा कोई नहीं॥
ReplyDeletebahut badhiyaa!
ReplyDeleteबेहतरीन!!
ReplyDeleteआप सभी गुणीजनों का आभार। भाई तिलक राज एवम् राजेन्द्र स्वर्णकुमार जी आपने वाकई आइनो की आब और बढ़ा दी है,दोनो शे‘र खूबसूरत हैं।
ReplyDeleteआइनों को झूठ कहने की भला आदत कहां
ReplyDeleteझूठ को बस झूठ, सच को सच बताते आइने
लोग थे पहले चुराते आइनों से अपना मुंह
अब तो लोगों से हैं मुंह अपना छुपाते आइने…
उम्दा शेर हैं। बहुत खूब !
बहुत अच्छी गजल है बन्धु । बधाई । मनोज अबोध
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल है ... एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Adarniya Shyam bhai ji,
ReplyDeletemain apki gajlon ka pransasak to hun hi aur ye khubsurat aur orerak hain,isase adhik kuchh kah pana ,itani height ki gajalon ke liye mere vash mein nahin hai.RAGHUNATH MISRA,KOTA