Sunday, September 2, 2012

खत आधी-मुलाकात होते हैं-डा श्याम सखा श्याम

 आधी मुलाकात ?

तुमने लिखा है
दूर हो
माना
रोटी रोजी के
मसअले के कारण
मजबूर हो
खत तो लिखो
सुनो मैने कहीं सुना था
खत आधी-मुलाकात होते हैं
- - -
हां
कुछ खत
आधी मुलाकात
होते हैं
इसीलिये तो
हम और आप
खत की बाट जोहते हैं

खत में

कभी खुद को
कभी उनको टोहतें हैं
कई-कई खत तो
मन को बहुत मोहते हैं
कई खत
दर्दे-दिल दोहते हैं
वे खत तो
सचमुच
बहुत सोहते हैं

खतों की

न जाने
कितनी परिभाषा हैं
मगर
हर खत की
एक ही भाषा है

कुछ खत

जेठ की धूप होते हैं
कुछ खत
सावन की बरसात होते है
कुछ खत
आधी मुलाकात होते है

खतों

की कहानी
सदियों पुरानी है
खतों की बात
मुश्किल समझानी है
खतों की जात
भला किसने जानी है

खत

कभी दर्द
कभी खुशियां
बांटते हैं
खत कभी
माँ बनकर सहलाते हैं
कभी पिता बनकर डांटते हैं

खत का

दिल से
बहुत पुराना नाता है
खत में
लिखा हर शब्द
रूह तक जाता है
मुझे तो
खत का
हर उनवान बहुत भाता है

कुछ खत

दिवस से उजले
कुछ खत
सियाह रैन होते हैं
आपने
देखा होगा
कुछ खत बहुत बेचैन होते हैं

कुछ खत

खाली खाली
निरे दिखावटी होते हैं
कुछ खत
सहेजे ज़जबात होते हैं
कुछ खत
आधी मुलाकात होते हैं

खत

कभी गुलाब,
कभी केवड़े से महकते हैं
कभी-कभी
तो खत
अंगारे बन दहकते हैं
बावरे खत
जाने
कहां-कहां जा बहकते हैं
मनमीत
मिलने पर तो
खत कोयल से चहकते हैं
खत हमेशा
दिल से दिल की बात होते हैं
खत
आधी मुलाकात होते हैं

मैने

देखा है
परखा है,जाँचा है
क्या
आपने कभी
बिना दिल का खत बाँचा है
क्या नहीं
मेरा यह कथन
सचमुच साँचा है
खत पढ़्कर
क्या नहीं
आपके दिल का मोर नाचा है
फोन व सेलुलर
के आगे
खत हुआ
एक ढहता हुआ ढाँचा है

पर

कुछ लोग
सचमुच मुझसे दीवाने हैं
इस युग में भी
ढ़ूंढते
खत
लिखने के बहाने हैं
कहें!
क्या खत
गुजरे हुए जमाने हैं
लोग
जो चाहे कह लें
मेरा दिल
तो यह बात नहीं माने है
रोज
एक खत
लिखने की ठाने है

हर

खत की
अपनी खुशबू
अपना अंदाज़ होता है
हर
खत में छुपा
दिल का राज़ होता है
हर खत
लिखने वाला
शाह्जहां
और
पढ़्ने वाला
मुमताज होता है

कुछ खत

दीन-धर्म जात होते है
कुछ खत
तो
फ़कीरों की जमात होते हैं
खत
आधी मुलाकात होते हैं

कुछ

खतों में
ख्वाब ठहरे होते हैं
कुछ
खत तो
सागर से भी गहरे होते हैं

कुछ

खत ज़मीं
कुछ
खत आसमां होते हैं
कुछ
खत तो
उम्रभर की दास्तां होते है

कुछ

खत गूंगे
कुछ
खत वाचाल होते हैं
कुछ
खत
अपने भीतर
समेटे भूचाल होते हैं

मुझ

सरीखे लोग
खतों को तरसते हैं
खत
न मिलने पर
नैनो की राह बरसते हैं

कुछ

खत
दो दिन के
मेहमान होते हैं
कुछ
खत
बच्चों की
मुस्कान होते हैं
कुछ
खत
बुढापे की बात
होते हैं
कुछ खत
जवानी की रात होते हैं

खत क्या

सिर्फ़ आधी मुलाकात होते हैं ?












मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

4 comments:

  1. ख़त सिर्फ़ आधी मुलाकात होते हैं ?

    ख़त अगर नज़्म रूम में लिखे जायें तो
    ज़िन्दगी का सबसे हसीं लम्हा होते हैं ....:))


    (पत्रिका नहीं मिली ..)

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  2. ये खत तो
    आपने बड़ा ही
    खतरनाक
    लिख डाला
    पढ़ने वाले
    का निकालेगा
    ये दिवाला
    डाकिया देखे
    हुऎ हो गये
    मुझे तो बरसों
    आपने इसे
    भेजने के लिये
    किसको है
    काम पर
    लगा डाला !

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  3. achchha likha hai...par aaj mobile aur net ke jamaane me khat likhna log bhool gaye...khat me to vo bhi likha jata hai jo insan muh se kabhi kah hi nahi pata...

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  4. behtreen kavita bhai sahab.....yatharth, anubhav or bhavo ka anootha sam-mishran...... bahut sari badhai.....

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