पल में तोला,पल में माशा है
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
मेरे मन में तो है रहती हरदम
तुझसे मिलने की अभिलाषा है
वक्त बुरा है तब ही तो बैठी
हर इक मन में आज हताशा है
लौट सदा जो आ जाती मन में
वो दोशीजा ही तो आशा है
ना समझो को समझाना होगा
यार गजल उल्फ़तकी भाषा है
‘श्याम’तुझे हम मान गये,तूने
गज़लों में माहौल तराशा है
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
ना समझो को समझाना होगा
ReplyDeleteयार गजल उल्फ़तकी भाषा है
अच्छा है !
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
ReplyDeleteयारो ,ग़म क्या एक बताशा है
बहुत सुन्दर।
वक्त बुरा है तब ही तो बैठी
ReplyDeleteहर इक मन में आज हताशा है
लौट सदा जो आ जाती मन में
वो दोशीजा ही तो आशा है..
अत्यंत सुन्दर पंक्तियाँ! इस बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई!
‘श्याम’तुझे हम मान गये,तूने
ReplyDeleteगज़लों में माहौल तराशा है
wah wah.
पल में तोला,पल में माशा है
ReplyDeleteजीवन भी क्या खूब तमाशा है
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
bahut sundr rachna.
पल में तोला,पल में माशा है
ReplyDeleteजीवन भी क्या खूब तमाशा है
बहुत सही है।
सुन्दर रचना।
पल में तोला,पल में माशा है
ReplyDeleteजीवन भी क्या खूब तमाशा है
बहुत सुंदर
धन्यवाद
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
ReplyDeleteprayog nayaa hai bahut achchhaa hai. poori ghazal khobsoorat hai.
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
ReplyDeleteयारो ,ग़म क्या एक बताशा है
मेरे मन में तो है रहती हरदम
तुझसे मिलने की अभिलाषा है ..
बहुत कमाल के शेर निकाले हैं सर ... मज़ा आ रहा पढ़ कर ...... आपको बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकमनाएँ ....
बेहद खूबसूरत गज़ल । ये लाइने लुभा गयीं -
ReplyDelete"मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है"
आभार ।
Agar aisey kahen to???
ReplyDeleteMere man me rahti hardam
tu, aur teri abhilasha hai
wah janab wah
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार
ReplyDeleterajey sha ji aapkaa sujhaav acchaahai पर छंद पर बहर पर रखने के लिये इसे यूं करना पड़ेगा
मेरे मन में रहती हरदम बस
तुम और तुम्हारी अभिलाषा है
लेकिन इसे कुछ लोग ऐबे जम या अश्लीलता का दोष ढूंढ लेंगे
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
ReplyDeleteयारो ,ग़म क्या एक बताशा है
आप का ग़म तो अच्छा खासा मीठा है
बहुत ही गजब की ग़ज़ल लिखी है
रचना रवीन्द्र
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
ReplyDeleteयारो ,ग़म क्या एक बताशा है
ye sher mujhe bahut pasand aayi..
aur ghazal ki to baat hi kya hai...
bahut khoobsurat..
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
ReplyDeleteयारो ,ग़म क्या एक बताशा है
बेहद खूबसूरत गज़ल..आपको बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
ReplyDeleteयारो ,ग़म क्या एक बताशा है...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....!!
दर्द सजे हैं, ढोल न ताशा है
ReplyDeleteश्याम सखा ने खूब तराशा है.
राह से भटका देने के सौ बहाने रखने वाली बहर को निभाया बहुत सलीके से. मैं अनुमान लगा सकता हूँ इन शेरों को कहने में कितनी बार बहर से डेविएशन का खतरा आया होगा. लेकिन खतरों के खिलाड़ी का ही नाम तो 'श्याम सखा'है.
जनाब श्याम साहब, आदाब
ReplyDeleteदोशीज़ा वाला शेर बेमिसाल है, वाह वाह
सर्वत साहब की बात से पूर्ण सहमत
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
अच्छी ग़ज़ल का बेहतरीन शेर
ReplyDeleteना समझो को समझाना होगा
यार गजल उल्फ़तकी भाषा है
बहुत बहुत आभार ..............
Waah !!! Bahut hi sundar rachna....
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