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उसे वहाँ कोई अपना नजर नहीं आता
तभी तो देर तलक वो भी घर नहीं आता
हमारे बीच ये दीवार क्यों है आन खड़ी
उधर मैं जाता नहीं,वो इधर नहीं आता
हमेशा जाती है मिलने नदी समुन्दर से
समुन्दर उससे तो मिलने मगर नहीं आता
ये चुपके-चुपके ही आ बैठता है बस दिल में
कि रंजो-ग़म कभी देकर खबर नहीं आता
मैं खुद ही उससे मुलाकात को हूँ चल देता
कि मुझसे मिलने कभी ग़म अगर नहीं आता
हुई क्या बात कोई तो बताये ‘श्याम’ हमें
क्यों रात-रात तू घर लौटकर नहीं आता
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
उसे वहाँ कोई अपना नजर नहीं आता
तभी तो देर तलक वो भी घर नहीं आता
हमारे बीच ये दीवार क्यों है आन खड़ी
उधर मैं जाता नहीं,वो इधर नहीं आता
हमेशा जाती है मिलने नदी समुन्दर से
समुन्दर उससे तो मिलने मगर नहीं आता
तुझे है मुझसे मुहब्ब्त मैं मान लूँ कैसे
तेरी नजर में वो मंजर नजर नहीं आताये चुपके-चुपके ही आ बैठता है बस दिल में
कि रंजो-ग़म कभी देकर खबर नहीं आता
मैं खुद ही उससे मुलाकात को हूँ चल देता
कि मुझसे मिलने कभी ग़म अगर नहीं आता
हुई क्या बात कोई तो बताये ‘श्याम’ हमें
क्यों रात-रात तू घर लौटकर नहीं आता
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
मैं खुद ही उससे मुलाकात को हूँ चल देता
ReplyDeleteकि मुझसे मिलने कभी ग़म अगर नहीं आता
वाह जनाब बहुत खुब धन्यवाद
उसे वहाँ कोई अपना नजर नहीं आता
ReplyDeleteतभी तो देर तलक वो भी घर नहीं आता
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सही है, आज घर के लोग भी अजनबी बनते जा रहे हैं :(
प्रिय श्याम सखा 'श्याम'जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
सच कहूं तो , बह्र पहचान नहीं पाया हूं …
बहरहाल ख़ूबसूरत जज़बात ख़ूबसूरत कलाम के लिए बधाई !
पूरी रचना अच्छी लगी -
ये चुपके-चुपके ही आ बैठता है बस दिल में
कि रंजो-ग़म कभी देकर खबर नहीं आता
बहुत ख़ूब !
प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
प्रणय दिवस मंगलमय हो ! :)
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
खूबसूरत रचना,आभार.
ReplyDeleteहमारे बीच ये दीवार क्यों है आन खड़ी
ReplyDeleteउधर मैं जाता नहीं,वो इधर नहीं आता
हमेशा जाती है मिलने नदी समुन्दर से
समुन्दर उससे तो मिलने मगर नहीं आता
बहुत अच्छी गज़ल.
बेहद खूबसूरत भाव लिये हैं सभी अशआर।
ReplyDeleteराजेन्द्र भाई ने जो सवाल किया है उसका उत्तर है 'बह्रे मुजारे मुसम्मन् मक्बूज मख्बून मक्तुअ'
Priya shysam ji,
ReplyDeleteachhi,anukarniya,mukammal ghazal ke liye hardik badhai/shubhkamnayen.
Snehadhin,
Raghunsth Mishra
वाह..बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसभी शेर मनमोहक हैं...
सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने...
आप सभी मित्रों का आभार
ReplyDeleteडा0 साहब
ReplyDeleteगजल वाकई अच्छी है , आपको बधाई
विनम्रता से निवेदन करना चाहूंगा कि अब 'तलक' और 'आन' जैसे प्रयोगों से बच सकें तो और बेहतर होगा
डॉ० साहब नमस्कार!
ReplyDeleteकई वर्ष पहले आपसे लखनऊ में भेट हुई थी। मैं आजकल लुधियाना में अपने बेटे के पास आया हूँ। आपके ब्लाग पर आ कर वह यादें ताजा हो गईं। लुधियाना में कोई साहित्यकारों की कोई संस्था हो तो बताइए। आप की ताजा गजलें पढ़ कर बड़ी सुखद अनुभूति हुई।
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सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सचलभाष- 09336089753
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