12 न.ह
वो जो उलझे हैं सुलझ भी जाऍँगे
बीते पल लेकिन न फिर आ पाएँगे
सर उठाकर जो नहीं चल पाएँगे ,
लोग वो सिक्कों मे ही ढ़ल जाएँगे
वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
गर न समझे वो, समझ हम जाएँगे
अपना दामन साफ रखने के लिये
दाग़ दिल पर हाँ सभी तो खाएँगे
है बदलना,वक्त जिनको ‘श्याम’ जी
सामने आकर वही सर कटवाएँगे
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
वो जो उलझे हैं सुलझ भी जाऍँगे
बीते पल लेकिन न फिर आ पाएँगे
सर उठाकर जो नहीं चल पाएँगे ,
लोग वो सिक्कों मे ही ढ़ल जाएँगे
वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
गर न समझे वो, समझ हम जाएँगे
अपना दामन साफ रखने के लिये
दाग़ दिल पर हाँ सभी तो खाएँगे
है बदलना,वक्त जिनको ‘श्याम’ जी
सामने आकर वही सर कटवाएँगे
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
खूबसूरत...!
ReplyDeleteवे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
ReplyDeleteगर न समझे वो, समझ हम जाएँगे....
बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत खुब जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeletebahut khub hai. maaf kare mujhe Maqta ka aakhiri mishra baher men nahi lag rha hai.
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर शेर गढ़े हैं आपने..
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल...
sachmuch aapka blog bahut achcha hai gajle gahri hoti hai, kavi mark to kavi karun. sare ras hain inme. achcha laga.
ReplyDeleteसर उठाकर जो नहीं चल पाएँगे ,
ReplyDeleteलोग वो सिक्कों मे ही ढ़ल जाएँगे
बहुत ख़ूबसूरत और सच्चा शेर
अपना दामन साफ रखने के लिये
ReplyDeleteदाग़ दिल पर हाँ सभी तो खाएँगे
खूबसूरत शेर!
बीते पल लेकिन न फ़िर आपायेगे .वाह क्या बात है.
ReplyDeleteकिशन तिवारी भोपाल.