खुद से यह गद्दारी मत कर
तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर
रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें खारी मत करहुक्म उदूली का खतरा है
फरमां कोई जारी मत कर
आना जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर
खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत करसच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर
'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर
श्याम जी लेकिन लोग कहा समझते है ,
ReplyDeleteआप ने कविता बहुत सुंदर लिखी.
धन्यवाद
बेहतरीन गज़ल!!
ReplyDeleteहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...शुभकामनायें ..!!
ReplyDeleteआपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.
ReplyDeleteआपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
किस शेर की तारीफ की जाए, पूरी गजल ही नायाब है.
ReplyDeleteआदरणीय श्याम जी ,
ReplyDeleteआपकी बहुत सी गजलों ा प्रभाव इतना प्रबल होता है की की वेह मस्तिषक में एक छाप छोड़ जाती है ...यह गजल भी उन में से ही एक है ....मैं इसे पहले भी पढ़ चुकी हूँ ...इ कविता में ..या फिर आपके ब्लॉग पर ... दुबारा पढ़वानें के लिए बहुत बहुत ुक्रिया .
सादर ,
सुजाता
श्याम जी बेहतरीन ग़ज़ल कही है...सारे के सारे शेर कमाल के हैं...दाद कबूल करें
ReplyDeleteनीरज
आदरणीय श्याम जी .......... कमाल की ग़ज़ल, हर शेर में जीवन का गहरा अनुभव छिपा है ......हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं
ReplyDeleteबहुत प्यारी गजल कही है आपने।
ReplyDelete{ Treasurer-S, T }
बहुत सुन्दर गजल है
ReplyDeleteप्रणाम दादा
ReplyDeleteहालांकि ये ग़ज़ल पहले भी पढी है लेकिन टिप्पणी का मौका आज आया है. बेहतरीन ग़ज़ल हुई है.
सच कहने की ठानी है तो,
कविता को दरबारी मत कर.
वाह!वाह!
खूब पढ़ा है आपकी इस ग़ज़ल को और हर बार खुल के दाद दी है मैंने।
ReplyDeleteसच कहनी की ठानी है तो
ReplyDeleteकविता को दरबारी मत कर।
--यह शेर बहुत अच्छा लगा।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
सुंदर रचना।
ReplyDeleteख़ुद आकर ले जायेगा 'वो'
जाने की तैयारी मत कर।
श्याम जी बहुत उम्दा बात कही है आपने, बहुत सुंदर रचना... मजा आया पढ़कर॥ लाजवाब लिखते रहिये..
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल है .तीसरे शेर के साथ अपना अक शेर याद आ गया.सुनेंगे?-तेरे अपने भी............
ReplyDeleteमेरे घर को आग लगनेवाले सुन
तेरा घर भी तो मेरे घर सा होगा-
और आपका एक शेर-खुद आकर ले जायेगा............से अपना ये शेर -
'मौत आये तो बेझिझक चल दें
इतनी पुख्ता'किरण' तयारी हो- यद् आ गया.
पुनः बधाई!