हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां
जब भी तुझको याद करते हैं सनम
खुद को ही बरबाद करते हैं सनम
आपके पहलू में निकले अपना दम
बस यही फरियाद करते हैं सनम
हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां
टूटे दिल आबाद करते हैं सनम
कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहें
पर तुझे आजाद करते हैं सनम
खेल अपनी जान पर ही तो शलभ
इश्क जिन्दाबाद करते हैं सनम
कोशिशे नाकाम सारी जब हुईं
तब भला इमदाद करते हैं सनम
‘श्याम’ था दरवेश,था खानाखराब
पर उसे सब याद करते हैं सनम
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन shu zin b-23/110
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteश्याम सखा जी सुन्दर रचना
ReplyDeletevery good creation .voice of sole
ReplyDeletecongrat.
बहुत सुंदर् गजल जनाब.
ReplyDeleteधन्यवाद
हर शेर लाजवाब करता है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपने बहुत ही बेहतर ग़ज़ल लिखी है .
ReplyDeleteदिल से बधाई!!
bahut achchi gazal
ReplyDeletekhel apni jaan par..........
ReplyDeletebehatareen rachna , shyamji..........badhaai sweekaren.
kaid julfon mein teri hum to rahen .......
ReplyDeletekmaal ka sher hai Shyaam ji ..... bahoot lajawab likhte hain aap......
बहुत खूब !
ReplyDeleteधन्यवाद आपका!
मतला, अशआर, रवानी, बयान, फन, शास्त्रीयता----, किस किस चीज़ की तारीफ करूं. यकीन जानें, तबीयत खुश कर दी आपने. मैं, अपने एक शायर दोस्त 'अर्श' चर्खार्वी के साथ इस गजल का लुत्फ़ उठा रहा था. अर्श साहब ने आपकी बेहद तारीफ कर दी. इतनी कि मुझे जलन महसूस होने लगी.
ReplyDeleteएक बार फिर गजल पर...मतला, फरियाद, जिंदाबाद........और पर तुझे आजाद करते ......जवाब नहीं, आज की दोपहर धनी हो गयी. और हाँ ..... बगैर बुलावे के, अपने आप ब्लॉग पर चला आया, शायद इस गजल की खुशबू खींच लाई. शुक्रिया, बधाई.
Isme Gajaliyat ka Abhaav hai ..........
ReplyDeleteसरवत जी ने बिल्कुल सही तारीफ़ की है.
ReplyDeleteहम फकीरों का ठिकाना हैं कहां... बहुत खूब वाह!
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल...धन्यवाद!!!
ReplyDeletebahut sundar gazal .happy dashahara .
ReplyDeleteडॉ. श्याम जी,
ReplyDeleteलूट ले गये महफिल "कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहे....
बहुत ही अच्छा शे’र है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अछि ग़ज़ल खूब पसंद आयी.. हिंदी ग़ज़ल के हिसाब से खुबसूरत ग़ज़ल .. काफिये का प्रवाह अपने आप में कमाल का है ... ढेरो बधाई खुबसूरत ग़ज़ल के लिए...
ReplyDeleteअर्श
tau g ram ram
ReplyDeleteaane bulaya tha lo ham aa gay .aap ki shayri ka javab nahin . kabhi kabhi hamare blog par najar dal kar galtiyan bataiaga . sudhar karunga .
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..!!
ReplyDeleteBahut khoob Shyam bhaaii...behtareen ghazal
ReplyDeleteneeraj
भाई श्याम जी,
ReplyDeleteएक बार फिर से महफ़िल में जान डाल दी आपने. ग़ज़ल पढ़ कर अच्छा लगा.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
चौथा
ReplyDeleteऔर
पाँचवाँ
शेर
अच्छा
है!
"कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहें
ReplyDeleteपर तुझे आजाद करते हैं सनम"
ये लाजवाब है