वाह क्या बात है। बहुत खुब
क्या बात कही है श्याम जी,लाजवाब !!!
बहुत खुब .....
लाजवाब बधाई
वाह ......... लाजवाब .......... गहरी बात ............. प्रणाम श्याम जी
वाह वाह क्या बात है जी
अति सुन्दर रचना...नीरज
wah shyaam ji, gazal ka roop dijiye na. bahut umda sher hai.
वाह! लाजवाब शे'र
bahut sundar happy blogingvenus kesari
वाह.... क्या बात है... बढ़िया..
बहुत खूब!!!
बढ़िया शेर, हम तो समझ रहे है.बधाईचन्द्र मोहन गुप्त जयपुरwww.cmgupta.blogspot.com
श्याम जीअति सुंदर शेर एक फबते हुए रदीफ़ के साथ पढ़ते पढ़ते आंख मेरी नाम हुई जाती है क्योंदर्द औरों का लगे अपना सा क्यों अक्सर मुझे? दाद के साथ देवी नागरानी
waah kya khoob sher kaha hai
एक, अकेला शेर, पूरे उपन्यास का मैटर समेटे हुए है. ' लोग समझाने चले आते हैं ' क्या बात है.
वाह क्या बात है। बहुत खुब
ReplyDeleteक्या बात कही है श्याम जी,
ReplyDeleteलाजवाब !!!
बहुत खुब .....
ReplyDeleteलाजवाब बधाई
ReplyDeleteवाह ......... लाजवाब .......... गहरी बात ............. प्रणाम श्याम जी
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है जी
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना...
ReplyDeleteनीरज
wah shyaam ji, gazal ka roop dijiye na. bahut umda sher hai.
ReplyDeleteवाह! लाजवाब शे'र
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletehappy bloging
venus kesari
वाह.... क्या बात है... बढ़िया..
ReplyDeleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteबढ़िया शेर,
ReplyDeleteहम तो समझ रहे है.
बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
श्याम जी
ReplyDeleteअति सुंदर शेर एक फबते हुए रदीफ़ के साथ
पढ़ते पढ़ते आंख मेरी नाम हुई जाती है क्यों
दर्द औरों का लगे अपना सा क्यों अक्सर मुझे?
दाद के साथ
देवी नागरानी
waah kya khoob sher kaha hai
ReplyDeleteएक, अकेला शेर, पूरे उपन्यास का मैटर समेटे हुए है. ' लोग समझाने चले आते हैं ' क्या बात है.
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