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लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने नि·ले
'श्या्म’ उमंगें ले्कर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
http://katha-kavita.blogspot.com/
अब घर कहां ?-कविता यहां पढें
Ek aur sundar rachnaa shyam ji
ReplyDeleteसूने-सूने उन महलों से
ReplyDeleteभरे-भरे तहखाने निकले
हर बार की तरह यह भी एक बहुत ही सुन्दर रचना ।
एक और बेहतरीन ग़ज़ल श्याम जी..वाह...छोटे छोटे लफ्ज़ और गहरी गहरी बातें...सुभान अल्लाह...
ReplyDeleteनीरज
आग लगी देखी पानी में
ReplyDeleteशोले उसे बुझाने निकले
waah .........kya bhav hain...........lajwaab.
सूने-सूने उन महलों से
ReplyDeleteभरे-भरे तहखाने निकले
और फिर
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
क्या खूब अन्दाज है बयाँ करने का
बहुत ही प्यारी गजल कही है आपने, हमेशा की तरह।
ReplyDelete------------------
परा मनोविज्ञान-अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
लोग उसे समझाने निकले
ReplyDeleteपत्थर से टकराने निकले
kya baat hai
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निकले
waah waah
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने निकले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
waah waah
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने निकले
bahut pyaari gazal
wah shyaam ji , hamesha ki tarah lajawaab, har sher moti.
ReplyDeleteमज़ा आ गया .............
ReplyDeleteमतलब मज़ा ही आ गया..........
जब मज़ा ही आ गया ...............तो इससे ज़्यादा कहने को शेष क्या रह जाता है.........
ग़ज़ल मुबारक !
dusaras she'r khas taur se badhaayee aur daad ke kabil... wese to aap ustaad hai hin magar dusare she'r ke baare me kya kahane waah kamaal hai ...
ReplyDeletearsh
हर शेर बेहद खूबसूरत है
ReplyDeleteमज़ा आ गया पढ़ कर
वाह !!!
इस बहर पे तो श्याम साब का कोई सानी नहीं...
ReplyDeleteलोग उसे समझाने निकले
ReplyDeleteपत्थर से टकराने निकले
जरुर दिवाना होगा कोई...
बहुत सुंदर रचना धन्य्वाद
सुन्दर शेर बने हैं |
ReplyDeleteमीटर में लगे |
बधाई |
अवनीश तिवारी
श्याम जी
ReplyDeleteआज पहली बार ही आप की साईट पर आया हूँ . आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल कही है। हर शे'र पर मस्तिष्क कुछ सोचने के लिए बाध्य हो जाता है और महसूस होता है कि यह ग़ज़ल सिर्फ़ मनोरंजन के ही लिए नहीं है। सहज शब्दों में एक सशक्त ग़ज़ल लिखने का हुनर आप की ख़ूबी है। यह तो बड़ा मुश्किल है कि किस शे'र की तारीफ़ की जाए। हर शे'र इस शे'र की ही तरह लाजवाब हैः-
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले
बधाई.
महावीर शर्मा
वाह वाह !! बहुत खूब सर जी.
ReplyDeleteये आपका अंदाजे ब्यान है - ग़ज़ले परवान चढ़ती है, ग़ज़ल के बहाने.
- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'
SHYAM SHAKHA JEE,AAPKEE GAZAL KAA LUTF LE
ReplyDeleteRAHAA HOO.
भाव और शब्दों से भरकर सुंदर ग़ज़ल सजाने निकले..
ReplyDeleteबढ़िया है श्याम जी ..बहुत बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुत की आपने..ढेर सारी शुभकामनाएँ
खूब सूरत गज़ल।
ReplyDeleteआग लगी देखी पानी में
ReplyDeleteशोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने नि्कले ..
Chote chote sher par kamaal ke .... Shyaam ji aapki gazal padh kar aksar sochne par majboor ho jaata hun ...har sher mein aap kaise kuch na kuch kahte dikhte hain .....
bahoot hi lajawaab ......
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार ग़ज़ल लिखा है! बधाई!
ReplyDeleteलाजवाब गज़ल है बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteदीवाने की कब्र खुदी तो
ReplyDeleteकुछ टूटे पैमाने नि्कले
bahut hi sundar gajal hai...jitni taarif ki jaaye kum hai...mujhe apke kahne ka ndaj bahut pasand aayya ....bahut khoob!!!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजब तुम हमें लुभाने निकले!
ReplyDeleteहम तुम पर मिट जाने निकले!
तुम पर अच्छी ग़ज़ल पढ़ी तो,
हम दिल से कुछ गाने निकले!
भूल सके ना अब तक जिसको,
फिर से उसे भुलाने निकले!
कल ही जिससे मुँह फेरा था,
उसको गले लगाने निकले!
जिस लौ में ना जले पतंगा,
उस लौ को जलवाने निकले!
"रवि" को जिसने याद किया है,
उसकी याद सजाने निकले!
- संपादक : सरस पायस
waah...waah...waah....
ReplyDeleteआग लगी देखी पानी में
ReplyDeleteशोले उसे बुझाने निकले
achha vyangya hai shyam ji.achha laga.