Tuesday, March 1, 2011

दिल बहलाने की इक तदबीर खरीदोगे---गज़ल

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बेच रहा हूँ बिगड़ी-सी तकदीर खरीदोगे
है दिल बहलाने की इक तदबीर खरीदोगे

खौफ़े- जख्म जिसे  हो, घर अपने वो बैठ रहे 
बिखरी हैं बाजारों में  शमसीर खरीदोगे

बहुत सँभल के झांकें इस आईने में हमदम
दिखला देता है  सबको तस्वीर खरीदोगे   

 
आजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे


साथ समय के महल* किले* बारादरियां उजड़ीं ?
गम की इमारत* करता हूँ तामीर खरीदोगे *









 





गिरवी आज महाजन  घर है रौनक मौसम का
सस्ती बिकती खिलवत की जागीर खरीदोगे।।

‘श्याम’कहां अब हाथ तुम्हारे है आनेवाला।
बस है बाकी उसकी इक तहरीर खरीदोगे।।



 फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन.फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

9 comments:

  1. तुमने तो सौदागर बनकर सबसे पूछ लिया
    पूछ रहा हूँ मैं किस-किस की पीर खरीदोगे।

    देखा आपकी ग़ज़ल की संगत का असर। खरबूजे का देखकर खरबूजा शेर कहता है।

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  2. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल!

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  3. Bahut hi acchi ghazal pesh ki hai.
    आजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
    शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
    Soch ki Udaan bakhoobi is kafiye se janch rahi hai

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  4. बिगडी तक़दीर कौन खरीदेगा डॊक्टर साहब :)

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  5. बेहतरीन गजल है जनाब । बधाई ।
    5 मार्च को हिन्‍दी युग्‍म के सालाना जलसे का संचालन आपके हाथ है, उसके लिए भी बधाई । कभी हमे भी याद कीजिए, बडे भाई ।

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  6. आजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
    शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे


    उम्दा शेर! खूबसूरत ग़ज़ल!

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  7. शाम सखा जी बहुत ही कमाल की गज़ल है ।
    आजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
    शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
    क्या बात है ।

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