12
बहुत सँभल के झांकें इस आईने में हमदम
दिखला देता है सबको तस्वीर खरीदोगे
आजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
साथ समय के महल* किले* बारादरियां उजड़ीं ?
गम की इमारत* करता हूँ तामीर खरीदोगे *
गिरवी आज महाजन घर है रौनक मौसम का
सस्ती बिकती खिलवत की जागीर खरीदोगे।।
‘श्याम’कहां अब हाथ तुम्हारे है आनेवाला।
बस है बाकी उसकी इक तहरीर खरीदोगे।।
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन.फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बेच रहा हूँ बिगड़ी-सी तकदीर खरीदोगे
है दिल बहलाने की इक तदबीर खरीदोगे
खौफ़े- जख्म जिसे हो, घर अपने वो बैठ रहे
बिखरी हैं बाजारों में शमसीर खरीदोगेहै दिल बहलाने की इक तदबीर खरीदोगे
खौफ़े- जख्म जिसे हो, घर अपने वो बैठ रहे
बहुत सँभल के झांकें इस आईने में हमदम
दिखला देता है सबको तस्वीर खरीदोगे
आजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
साथ समय के महल* किले* बारादरियां उजड़ीं ?
गम की इमारत* करता हूँ तामीर खरीदोगे *
गिरवी आज महाजन घर है रौनक मौसम का
सस्ती बिकती खिलवत की जागीर खरीदोगे।।
‘श्याम’कहां अब हाथ तुम्हारे है आनेवाला।
बस है बाकी उसकी इक तहरीर खरीदोगे।।
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन.फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
तुमने तो सौदागर बनकर सबसे पूछ लिया
ReplyDeleteपूछ रहा हूँ मैं किस-किस की पीर खरीदोगे।
देखा आपकी ग़ज़ल की संगत का असर। खरबूजे का देखकर खरबूजा शेर कहता है।
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeleteBahut hi acchi ghazal pesh ki hai.
ReplyDeleteआजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
Soch ki Udaan bakhoobi is kafiye se janch rahi hai
बिगडी तक़दीर कौन खरीदेगा डॊक्टर साहब :)
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeleteबेहतरीन गजल है जनाब । बधाई ।
ReplyDelete5 मार्च को हिन्दी युग्म के सालाना जलसे का संचालन आपके हाथ है, उसके लिए भी बधाई । कभी हमे भी याद कीजिए, बडे भाई ।
bahut khub gazal kahi
ReplyDeleteआजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
ReplyDeleteशेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
उम्दा शेर! खूबसूरत ग़ज़ल!
शाम सखा जी बहुत ही कमाल की गज़ल है ।
ReplyDeleteआजादी के परचम तो नीलाम हुए सारे
शेष बची है जंग लगी जंजीर खरीदोगे
क्या बात है ।