Thursday, May 28, 2009
हसीनो पे गुस्सा तो फबता है यारो
वो चंदरमुखी हो या हो कोई पारो
फ़ुटकर शे‘र-नं-१
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,
Monday, May 25, 2009
मुझमें और सुकरात में बस फ़र्क इतना ही रहागज़ल-६० b
60-b
जिन्दगी को जब कभी सिक्कों से है आँका गया
यूँ लगा दोष आपका था और मुझे डाँटा गया
जब किसी कारण से भी घर था कभी बाँटा गया
दुख हमेशा क्यों मेरे ही वास्ते छांटा गया
शख्स जब कोई गिरा अपने उसूलों से कभी
समझो चाँदी की छड़ी से है उसे हाँका गया
मुझमें और सुकरात में बस फ़र्क इतना ही रहा
पी गया वो जह्र पर मुझसे न विष फाँका गया
था गुजरता जब कभी उस शोख के कूचे से मैं
शोर मच जाता था,देखो वह गया, बाँका गया
हमने माना‘श्याम’फक्कड़’और है कुछ बदजुबाँ
पर खरा उतरा है जब परखा गया,जाँचा गया
जिन्दगी को जब कभी सिक्कों से है आँका गया
यूँ लगा दोष आपका था और मुझे डाँटा गया
जब किसी कारण से भी घर था कभी बाँटा गया
दुख हमेशा क्यों मेरे ही वास्ते छांटा गया
शख्स जब कोई गिरा अपने उसूलों से कभी
समझो चाँदी की छड़ी से है उसे हाँका गया
मुझमें और सुकरात में बस फ़र्क इतना ही रहा
पी गया वो जह्र पर मुझसे न विष फाँका गया
था गुजरता जब कभी उस शोख के कूचे से मैं
शोर मच जाता था,देखो वह गया, बाँका गया
हमने माना‘श्याम’फक्कड़’और है कुछ बदजुबाँ
पर खरा उतरा है जब परखा गया,जाँचा गया
फाइलातुन,फाइलातुन,फाइलातुन,फ़ाइलुन
Thursday, May 21, 2009
Monday, May 18, 2009
आइना भी देखने को दिल नहीं करता
अब किसी से रूठने को दिल नहीं करता
आज वो तैयार हैं सब-कुछ लुटाने को
पर उन्हें यूँ लूटने को दिल नहीं करता
सच कहूंगा तो वो शायद झूठ समझेगा
झूठ उससे बोलने को दिल नहीं करता
बेखुदी में खो गया हूँ इस कदर कुछ मैं
अब खुदी को ढूँढने को दिल नहीं करता
ले चलो कश्ती भँवर में 'श्याम’ तुम अपनी
यूं किनारे डूबने को दिल नहीं करता
अब किसी से रूठने को दिल नहीं करता
आज वो तैयार हैं सब-कुछ लुटाने को
पर उन्हें यूँ लूटने को दिल नहीं करता
सच कहूंगा तो वो शायद झूठ समझेगा
झूठ उससे बोलने को दिल नहीं करता
बेखुदी में खो गया हूँ इस कदर कुछ मैं
अब खुदी को ढूँढने को दिल नहीं करता
ले चलो कश्ती भँवर में 'श्याम’ तुम अपनी
यूं किनारे डूबने को दिल नहीं करता
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ा या फ़ाइलु्न फ़ेलुन
गज़ल न० ३१
Thursday, May 14, 2009
............................. आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी
हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी
मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,
२ २ १ २ २ २ १ २.२ २ १ २,२ २ १ २,
मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी
हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी
मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,
२ २ १ २ २ २ १ २.२ २ १ २,२ २ १ २,
Monday, May 11, 2009
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत-गज़ल
दिल ग़म से बेहाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है
मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है
वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है
हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है
दूर-रहे हैं ‘ श्याम’ अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
Thursday, May 7, 2009
मुहब्बत की वापिस निशानी करें
शुरू फिर जो चाहें कहानी करें
है घाटे का सौदा मुहब्बत सदा
हिसाब अब लिखें या जुबानी करें
चलो नागफनियाँ उखाड़ें सभी
वहाँ फिर खड़ी रात-रानी करें
है रुत पर भला बस किसी का चला
चलो बातें ही हम सुहानी करें
खरीदे बुढापे को कोई नहीं
सभी तो पसन्द अब जवानी करें
बहुत जी लिये और मर भी लिये
बता क्या तेरा जिन्दगानी करें
रवायत नहीं ‘श्याम’ जब ये भली
तो फिर बातें क्यों हम पुरानी करें
फ़ऊलुन।फ़ऊलुन।फ़ऊलुन।फ़ऊलुन।
Monday, May 4, 2009
कठिन इश्क की डगर बाबा-गज़ल
7
कठिन इश्क की डगर बाबा
पाँव रखना तू सोचकर बाबा
बाँटिये खुशियाँ ग़म छुपा लीजै
सीखिये इतना तो हुनर बाबा
छाँह शीतल सभी को देकर भी
धूप में जलते हैं शजर बाबा
जि़न्दगी क्या है बस यही तो है
मह्ज़ दो दिन का ही सफऱ बाबा
ये सियासत भी खूब है जिसमें
राहजऩ भी हैं मोतबर बाबा
खूबसूरत है ये जमीं कितनी
लग न जाए इसे नजर बाबा
बात उसकी थी दिलफऱेब ऐसी
रह गया मैं भी डूबकर बाबा
इश्क में खुद को ही तपा्कर तो
हो गए लोग नामवर बाबा
किस की लेगा खबर बताओ वो
'श्याम’ तो खुद है बेखबर बाबा
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन फ़ेलुन
Friday, May 1, 2009
*****चाँद आँगन में मेरे उस रोज मुस्काता तो है-गज़ल
दिल से होकर दिल तलक इक रास्ता जाता तो है
और गर कुछ है नहीं ये इश्क इक धोखा तो है
बेवफ़ा बेशक सही, लेकिन पराया मैं नहीं
उनको मेरी जात पर इतना यकीं आता तो है
है अगर खंजर लिये कातिल तो भी क्या डर उन्हें
पास उनके भी झुकी नजरों का इक हरबा तो है
दोस्ती को तोड़कर वो हो भले दुश्मन गया
बन के दुश्मन साथ मेरे आज भी रहता तो है
याद तुझको जब कभी आती है मेरी जानेमन
चाँद आँगन में मेरे उस रोज मुस्काता तो है
मैने अपनी गलतियों से है यही सीखा `सखा'
कोई समझे या न समझे वक्त समझाता तो है
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
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