
मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी
हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी
मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,
२ २ १ २ २ २ १ २.२ २ १ २,२ २ १ २,
bahut umda gazal shyamji,
ReplyDeleteहाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
wah, badhai sweekaren.
Waah !! Sundar gazal !! Badhai.
ReplyDeleteनाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
ReplyDeleteइस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी..
बहुत उम्दा .
सुन्दर गजल
ReplyDeleteवीनस केसरी
wah bhaut hi achhi gazal
ReplyDeletekhas kar paaye hai gum kitne tere pencho kham se zindgi
bhaut khoob
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
ReplyDeleteइक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
wahhhhhhhh bahut badhiya likha hai
kis kis daur se guzarte hain hum
ek baar toh aake humse bhi mil zindagi
shubkamnayon ke saath
nira
My favorite-
ReplyDeleteहाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
Pranaam
RC