लिखूँ जनगीत मैं प्रतिदिन ये सांसें चल रहीं जबतक। कठिन संकल्प है देखूँ निभा पाऊँगा मैं कबतक। उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता, जिया हूँ बेचकर श्रम को कलम बेची नहीं अबतक।।
सादर श्यामल सुमन 09955373288 www.manoramsuman.blogspot.com shyamalsuman@gmail.com
hai likhna aapka jaise koi saugat likhte ho harek post men hardam anoothi baat likhte ho karen tareef kya teri, blogging ke sakha mere ye ham bhi maante hain tum gazab jazbaat likhte ho.
अगर सभी एक से होजायेंगे, न मज़हब न जाति ,तो आइडेन्टिटी कैसे होगी ? शेर,बकरी, नर-नारी , गधा-घोडा में ??????? अन्तर तो उसी ने बनाया है, आप्को शायर,किसी ओर को कुछ ओर , सच तो यह होना चाहिये कि---
"" भेद बना ही रहेगा सदा, भेद-भाव व्यव्हार नहीं हो।""
डॉ० गुप्ता जी डॉ० साहिब मैने कब कहा है ,शेर,बकरी, नर-नारी , गधा-घोडा में ??????? न हों फिर आप लिखते हैं-अन्तर तो उसी ने बनाया है, मगर उसने मज़हब जाति तो नहीं बनाई यह तो केवल मानव नाम के ज्न्तो की देन हैं और मुझे तो इस पर भी एतराज नहीं है- मैने केवल यह कहा है के मैं सच को सच लिखने की कोशिश करता हूं
सुन्दर पंक्तियाँ। वाह। कभी मैंने भी लिखा था कि-
ReplyDeleteलिखूँ जनगीत मैं प्रतिदिन ये सांसें चल रहीं जबतक।
कठिन संकल्प है देखूँ निभा पाऊँगा मैं कबतक।
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को कलम बेची नहीं अबतक।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सत्यम शरणम गछ्छामि...जय हो महाराज!!
ReplyDeleteयूँ तो आप दिन को दिन और रात को रात लिखते हैं
ReplyDeleteपर हमारी उम्मीद पर हरदम खरे उतारते हैं
आभार
स्वप्न मंजूषा
http://swapnamanjusha.blogspot.com/
न मजहब न ही मैं कोई जात लिखता हूं
ReplyDeleteजो आए है दिल में वही बात लिखता हूं
वाह! ईस शेर के कायल हो गये। सुब्हानअल्लाह।
bahut khoob
ReplyDeleteदिन को दिन और रात को रात कहना आज के युग में बहुत हिम्मत का काम है...आप की हिम्मत की दाद देते हैं...लिखते रहिये...
ReplyDeleteनीरज
hai likhna aapka jaise koi saugat likhte ho
ReplyDeleteharek post men hardam anoothi baat likhte ho
karen tareef kya teri, blogging ke sakha mere
ye ham bhi maante hain tum gazab jazbaat likhte ho.
IS VISHESH MUKTAK PE VISHESH BADHAAYEE AAPKO...
ReplyDeleteARSH
क्या बात है श्याम साब...क्या बात है
ReplyDeleteबहुत हे बेहतरीन
अगर सभी एक से होजायेंगे, न मज़हब न जाति ,तो आइडेन्टिटी कैसे होगी ? शेर,बकरी, नर-नारी , गधा-घोडा में ??????? अन्तर तो उसी ने बनाया है, आप्को शायर,किसी ओर को कुछ ओर , सच तो यह होना चाहिये कि---
ReplyDelete"" भेद बना ही रहेगा सदा,
भेद-भाव व्यव्हार नहीं हो।""
डॉ० गुप्ता जी
ReplyDeleteडॉ० साहिब मैने कब कहा है ,शेर,बकरी, नर-नारी , गधा-घोडा में ??????? न हों फिर आप लिखते हैं-अन्तर तो उसी ने बनाया है,
मगर उसने मज़हब जाति तो नहीं बनाई यह तो केवल मानव नाम के ज्न्तो की देन हैं और मुझे तो इस पर भी एतराज नहीं है- मैने केवल यह कहा है के मैं सच को सच लिखने की कोशिश करता हूं
कि मैं दिन को दिन रात को रात लिखता हूं..
ReplyDeletebahut khoob .
WAH JNAB.
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