
दिल ग़म से बेहाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है
मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है
वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है
हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है
दूर-रहे हैं ‘ श्याम’ अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
बहुत उँची बात कह गये आप आज!! बधाई..स्वीकारें.
ReplyDeleteIs ghazal ke sabse pasandeeda ashaar
ReplyDeleteशक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
दूर-रहे हैं ‘ श्याम’ अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
हमेशा की तरह प्रभावशाली मक़ता!
pranaam
RC
वाह श्याम जी वाह...एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं....बहुत असर दार शेर कहें आपने...किसी एक की तारीफ क्या करूँ...वाह ही कर सकता हूँ वाह ही कर रहा हूँ...
ReplyDeleteनीरज
शानदार ग़ज़ल का शक्तिशाली शेर .........
ReplyDeleteमौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
मौत न जाने कैसी होगी
ReplyDeleteजीवन तो जंजाल रहा है...
उम्दा लाइनें .
अति सुन्दर
ReplyDeleteये गज़ल मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ, शायद हिन्द-युग्म पर पढ़ी होगी
बहुत ही सुन्दर रचना, शब्द नहीं हैं तारीफ के लिये।
हैं उस पर भी गम के साये
ReplyDeleteजो अब तक खुशहाल रहा है
शानदार शेर, जबरदस्त शायरी !!!
मौत न जाने कैसी होगी
ReplyDeleteजीवन तो जंजाल रहा है
Achchaa hai ...