Tuesday, August 4, 2009

मुझे दे के थपकी सुलाने लगी है-gazal


मुझे दे के थपकी सुलाने लगी है
हवा देखिये मुस्कराने लगी है

समन्दर मिला आसमां से उफ़नकर
नदी आज फ़िर खिलखिलाने लगी है

लिपटते जो देखा भंवर को कली से
नवेली सी दुल्हन लजाने लगी है

कभी दूर जाकर कभी पास आकर
मुहब्बत ग़ज़ल गुनगुनाने लगी है


न कोई रहा है,न कोई रहेगा
घड़ी हर घड़ी यह जताने लगी है

महकती,बहकती हवा कह रही है
मिलन यामिनी पास आने लगी है

हुई बन्द धड़कन,रुकी सांस मेरी
'सखा' याद तेरी यूं आने लगी है


गज़ल गीत सुनकर सखा जी[मेरी जां] तुम्हारे
जमाने पे मस्ती सी छाने लगी है

फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन

--

इस वादे के साथ कि आप का समय व्यर्थ न होगा
आप यहां भी आमन्त्रित हैं
http://katha-kavita.blogspot.com/

25 comments:

  1. मुझे दे के थपकी सुलाने लगी है
    हवा देखिये मुस्कराने लगी है
    vaah.

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  2. हर शेर उम्दा , कहानी ये कहता
    ग़ज़ल के बहाने तन्हाई बतियाने लगी है

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  3. bahut khoob...........

    न कोई रहा है,न कोई रहेगा
    घड़ी हर घड़ी यह जताने लगी है
    ____zindgi ka sara falsafaa aapne apni ghazal me udel diya ji......
    badhaai aapko aapke is naayaab hunar k liye...

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  4. सखाजी, बहुत ख़ूबसूरत गजल !

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  5. समन्दर मिला आसमां से उफ़नकर
    नदी आज फ़िर खिलखिलाने लगी है

    बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार्

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  6. dr. sahib, aap kee gazlon ko padh kar apne mitr ka ek sher yaad aa jata hai,
    tum jis bhee akshar ko chho lo
    ude aur jugnoo ban jaye.
    widesh, wo bhee switzerland, zahir hai fun ko aur bhee nikhar bakhsh raha hai. raat men mulaqat hogee.

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  7. लाजवाब गज़ल है मैं इस पर कुछ कहूँ इतनी मेरी क्षमता नहीं है मगर आपकी हर रचना लाजवाब होती है
    समन्दर मिला आसमां से उफ़नकर
    नदी आज फ़िर खिलखिलाने लगी है वाह क्या बात है सुन्दरतम नधाई

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  8. न कोई रहा है,न कोई रहेगा
    घड़ी हर घड़ी यह जताने लगी है
    ===
    bahut khoob shyam jee
    bahut sundar rachana
    har sher bahut khoobsoorat

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  9. लिपटते जो देखा भंवर को कली से
    नवेली सी दुल्हन लजाने लगी है


    बहुत नाज़ुक ख़याल। बधाई।

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  10. बहुत ही बेहतरीन गज़ल

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  11. श्याम जी, हमेशा की तरह बेहतरीन गजल है

    वीनस केसरी

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  12. महकती,बहकती हवा कह रही है
    मिलन यामिनी पास आने लगी है

    हुई बन्द धड़कन,रुकी सांस मेरी
    'सखा' याद तेरी यूं आने लगी है

    अच्छी लाजवाब ग़ज़ल श्याम जी खूबसूरत हैं सब शेर ........ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें...........

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  13. किसी एक शेर की क्या बात करूँ?..हमेशा की तरह बहुत कमाल की ग़ज़ल...सहज भाव और सरल शब्द...वाह...
    नीरज

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  14. न कोई रहा है,न कोई रहेगा
    घड़ी हर घड़ी यह जताने लगी है
    बहुत बढ़िया।
    देखते हैं रात दिन शमशान को,
    किन्तु कितना मौत से सब बेखबर हैं।
    आयेंगे चौराहे और दोराहे कितने,
    एक जैसी अन्त में सबकी डगर हैं।।

    जिन्दगी में स्वप्न सुन्दर हैं सजाये,
    गगनचुम्बी भवन सुन्दर हैं बनाये,
    साथ तन नही जायेगा, तन्हा सफर हैं।
    किन्तु कितना मौत से सब बेखबर हैं।।

    बन्धु और बान्धव मिलाने
    खाक में ही जायेंगे,
    देह कुन्दन कनक सी सब
    राख ही हो जायेंगे।
    चाँद-सूरज फेर ही लेंगे, नजर हैं।
    किन्तु कितना मौत से सब बेखबर हैं।।

    धार में दरिया की सारी
    अस्थियाँ बह जायेंगी,
    सब तमन्नाएँ धरी की धरी
    ही रह जायेंगी,
    स्वर्ग की सरिता में,
    कितने ही भँवर हैं।
    किन्तु कितना मौत से सब बेखबर हैं।।

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  15. ग़ज़ल देख कर तबीयत खुश हो गई,वरना आज कल ग़ज़ल के नाम पर जो कुछ आ रहा है देखने की इच्छा तक नहीं होती।

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  16. बहुत ही मनभावन रचना.आभार.

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  17. आप सभी का ग़ज़ल कबूलने हेतु हार्दिक आभार आपकी टिपनिया मुझे और अच्छा कहने को प्रोत्साहित करती हैं श्याम सखा

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  18. बड़े दिनों बाद एक अच्छी रूमानी अहसासों से भरी ग़ज़ल देखने को मिली है....वर्ना ग़ज़ल के अब के तीखे तेवर तो बस तल्खियां ही देते हैं...
    ये शेर बहुत सुंदर बन पड़ा है
    समन्दर मिला आसमां से उफ़नकर
    नदी आज फ़िर खिलखिलाने लगी है

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  19. लिपटते जो देखा भंवर को कली से
    नवेली सी दुल्हन लजाने लगी है

    bahut hi mast. badhai!

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  20. ये शेर अच्छा वो शेर अच्छा
    समझा तो पाया हर शेर अच्छा।
    ---देवेन्द्र पाण्डेय।

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  21. सुकोमल ...सुंदर भाव.....शब्दों की गहराई मन को छु गयी

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