Wednesday, March 16, 2011

कौन कहता है बुढापे में मुहब्ब्त का सिलसिला नहीं होता-----







देखूं जो तुमको भांग  पीके
अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके














मोतियाबिन्दी नयनो  में काजल
्नित करता मुझको है पागल












अदन्त मुंह और हंसी तुम्हारी
इसमे दिखता ब्रह्माण्ड है प्यारी













तेरा मेरी प्यार है जारी
 जलती हमसे दुनिया सारी




क्या समझें ये दुध-मुहें बच्चे
कैसे होते प्रेमी सच्चे









दिखे न आंख को कान सुने ना
हाथ उठे ना पांव चले ना










पर मन तुझ तक दौड़ा जाए
ईलू-इलू का राग सुनाए




हंसते क्यों हैं पोता-पोती
क्या बुढापे में न मुहब्ब्त होती








सुनलो तुम भी मेरे प्यारे
कहते थे इक चच्चा हमारे













कौन कहता है बुढापे में मुहब्ब्त का सिलसिला नहीं होता
आम भी तब तक मीठा नहीं होता जब तक पिलपिला नहीं होता


होली में तो गजल-हज्ल सब चलती है
                                                      
जलने दो गर दुनिया जलती है
ही तो होली की मस्ती है 















मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

8 comments:

  1. हा हा हा ! मज़ेदार !

    मूंह में ना दांत रहे , नहीं पेट में आंत
    तेरा मेरा प्यार भी , बरसे सारी रात ।

    होली की शुभकामनायें ।

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  2. आज तो नये तेवर लेकर आए डॊक्टर साब:)

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  3. बहुत बढ़िया...मजेदार

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  4. प्रस्तुति का अनोखा अंदाज़....पसंद आया.
    ----देवेन्द्र गौतम

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  5. बहुत मजेदार...एक नया अंदाज आपका.

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  6. मचलने का ये अन्दाज़
    हम सब के बुढापे का आगाज़
    प्रेमी तो तब भी रहे होंगे अच्छे
    अगर प्रेम करते तो रहते बच्चे
    कैसे समझें ये नादान बच्चे

    कैसे बनेंगे ये प्रेमी सच्चे

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  7. आप SUB को HOLI शुभकामनाएं
    ਤੁਸੀ ਸਾਰਿਯਾਂ ਨੂਂ ਹੋਲੀ ਦੀ ਲਖ-ਲਖ ਵਧਾਇਯਾਂ
    HAPPY HOLI

    मेरी रचनाओं को आशिर्वाद देने का धन्यवाद
    आपका सदा सा
    श्याम सखा श्याम

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