यूं तो वो हमेशा ही दिल के पास में रहा
पर,उसका जल्वा मुस्तकिल कयास में रहा
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा
तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा
तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा
राधा का‘श्याम’ भी था वो मीरा का‘श्याम’ भी
जो गोपियों के साथ मस्त,रास में रहा
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
ReplyDeleteदरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
-बहुत सही, वाह!
तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
ReplyDeleteयारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा
Waah! Bahut Khub
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
उम्दा गज़ल
ReplyDeleteपीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
ReplyDeleteउलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
कमाल के शेर हैं श्याम जी .... पीने पिलाने का दौर और उसकी प्यास लाजवाब है ....
पीने को लोग ये शेर और
ReplyDeleteबारीकियां अदब की कहां ये शेर - विरोधाभासी लगे। यानी बोतलों गिलास में उलझने से क्या फायदा, यही मतलब है कि अदब की बारीकियों में उलझने से क्या मतलब, ओक से पीने में ज्यादा मजा आता है... नहीं
लाजवाब शेरो के क्या कहने
ReplyDeleteपीन के बाद भी मेरी, मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा, प्यास में रहा
वाह
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
ReplyDeleteमुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा
वाह...वा...वाह...वा...कहाँ तो श्याम जी पूरी ग़ज़ल में एक शेर कायदे का लिखने में नानी याद आ जाती है और कहाँ आपने एक से बढ़ कर एक खूबसूरत अशआरों से अपनी ग़ज़ल जगमगा दी है...ये कमाल आप ही के बस की बात है..एक पूरी मुकम्मल बेहतरीन ग़ज़ल...दिली मुबारक बाद और दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
wah wah wah, kul mila kar ati uttam/lajawaab/behatareen. har sher kabil-e-tareef.
ReplyDeleteपीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
ReplyDeleteउलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
वाह , बढ़िया शेर प्रस्तुत किये हैं।
आप सभी का एक बार फ़िर हृद्य से आभार
ReplyDeleteभाई राजे शाह जी गज़ल क हर शे‘र न केवल अपने आप में मुकम्मल होता है अपितु किसी दूसरे शे‘र से असंबंधित होना गज़ल की खसूसियत होती है
अशआर इसके उम्दा कहूँ मैं तो नया क्या
ReplyDeleteहर शेर प चर्चा जो करूँ मैं तो नया क्या।
हक तुझपे जानता हूँ मगर ऐ 'सखा' मिरे
अशआर तिरे दिल में रखूँ मैं तो नया क्या।
उम्दा गज़ल!!
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल लेकिन अंतिम 2 मिसरे बहर से गिर चुके हैं ।
ReplyDelete1 ,बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो,( "सका वो" की जगह "पाया वो" लिखने से बहर मुकम्मल होता है और भाव भी वही रहेगा।
2,जो गोपियों के साथ मस्त रास में रहा, इसमे "मस्त" बहर से बाहर जा रहा है "मस्त" की जगह "सदा" बहर मुकम्मल होगा और भाव भी बरकरार रहेगा।