Saturday, July 17, 2010

सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें-gazal

मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी

तो आके फिर तू मिल अकेले में    यूं  हमसे जिन्दगी




हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत माँगोगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी




हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी



सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी




नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी


हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी





मुतफ़ाइलुन= चार बार











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Thursday, July 1, 2010

नहीं मिलती यहां पर मौत भी माँगे अगर कोई-गज़ल



   

चलो फूलों की इस बस्ती से  यूँ दो पल चुरा लें हम
कभी भँवरो की भी मस्ती से यूँ  दो  पल चुरा लें हम


नहीं मिलती यहां पर मौत भी माँगे  अगर  कोई
चलो फिर तो जबरद्स्ती से   यूँ दो पल चुरा लें हम

इशारे पर चलें जिसके हमेशा चाँद-तारे भी
भला क्यों आज उस हस्ती से यूँ  दो पल चुरा लें हम

 बहुत महंगी हुईं हैं खिलवतें  अबके बरस यारो
खड़ी इस भीड़ सस्ती यूँ दो पल चुरा लें हम

नहीं किस्मत हमारी ये कि हम पहुंचे किनारों पर
कि लहरों डूबती कश्ती से यूँ   दो पल चुरा लें हम

भला क्या कोई  पूछे है यहाँ ईमानदारी को
क्यों मतलब परस्ती से यूं दो पल चुरा लें हम

लगा हैश्यामतो करने खुराफाते नईं यारो
उसी की इस मटरगश्ती से यूँ दो पल चुरालें हम
मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन
कुछ दोस्तों को कश्ती व मटरगश्ती काफ़िये अटकेंगे वे इन्हे न पढें


 










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