बात इक मुझको बहुत भाती है यारब
याद उसको भी मेरी आती है यारब
मोड़ बाकी हैं कई मंजिल तलक तो
ये हवा यूँ मुझको समझाती है यारब
मौजों से रंजिश, किनारों से अदावत
देखें कश्ती ले कहाँ जाती है यारब
पात झड़ने पर है क्यों मायूस गुलशन
रुत यही लेकर बहार आती है यारब
कैसे मसले जग के सुलझाएगा वो शख्स
रूह जिसकी जबकि जज्बाती है यारब
बैठे है हम तो दिये दिल के जलाकर
आंधी क्यों डर हमको दिखलाती है यारब
हैं गुजरते लम्हे जब सदियों की मानिन्द
तब कहीं शब वस्ल की आती है यारब
मौत से क्यों है डरे ’इतना जमाना
मौत के ही बाद जीस्त आती है यारब
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,
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