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इतने नाजुक सवाल मत पूछो
क्यों हूँ बरबादहाल मत पूछो
बात है गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या अकाल मत पूछो
करो तदबीर अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो
तेग का वार, गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो
काम क्या आई धुप अँधेंरो में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो
वक्त ने जिन्दगी को बख्शे हैं
कैसे -कैसे वबाल मत पूछो
तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
थी ये अपनों की चाल मत पूछो
देखकर खुशगवार मौसम को
मन है कितना निहाल मत पूछो
तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
गम हुऐ क्यों बहाल मत पूछो
कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो
‘श्याम’ से पूछ लो जमाने की
सिर्फ उसका ही हाल मत पूछो
[ फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन ]
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