Monday, May 24, 2010

चल छैंयां-छैय़ां वाली इस पीढी को तो---gazal

फूल बुरा लगता है,पान बुरा लगता है
जब टूटे दिल तो भगवान बुरा लगता है

चल छैंयां-छैय़ां वाली इस पीढी को तो
मीरा पगली और,रसखान बुरा लगता है

देव अतिथि होता होगा मेरे यार कभी
अब तो घर आया मेहमान बुरा लगता है

वक्त नया आया है,आये संस्कार नये
अब तो झूठ भला,ईमान बुरा लगता है

नव फ़्लैटों की झीनी-झीनी दीवारों में
सब कुछ सुनता सा यह कान बुरा लगता है

रिश्वत के इस अलबेले युग में,बिन रिश्वत के
मुझको काम हुआ आसान बुरा लगता है


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Monday, May 17, 2010

’मसीहा भी मुझको सजा दे गया

मुझे जिन्दगी की दुआ दे गया
मसीहा भी मुझको सजा दे गया


लगा डूबने बेखुदी में मैं जब
कोई मुझको तेरा पता दे गया


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Wednesday, May 12, 2010

हो गई फ़िर इक खता है- गज़ल

हो गई फ़िर से खता है
दिल तुझे जो दे दिया है













इश्क सचमुच इक बला है
खुद मजा है,खुद सजा है

इश्क सचमुच इक बला है
रोग भी खुद,खुद दवा है


गम से बचकर है निकलना
प्यार ही बस रास्ता है  



आ रही शायद वही है
दिल मेरा जो झूमता है


है हसीं अपनी धरा ये 
चाँद पीछे     घूमता    है



ढूंढता है ‘श्याम किसको
दिल हुआ क्या लापता है





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Monday, May 3, 2010

ये कैसी तकदीर लिखी मौला-गज़ल

ये कैसी तकदीर लिखी मौला
पावों जंजीर लिखी मौला मौला

सांसे दी ,धड़कन भी दी लेकिन
जीने की नहीं तदबीर लिखी मौला

 ढूंढ़ रहा है बेचारा रांझा
इस बार नहीं हीर लिखी मौला

नन्हे-मुन्नो की तख्ती पर क्यों
बात गुरू-गम्भीर लिखी मौला

फ़ूलो की महफ़िल में क्यों तूने
कांटो की तसवीर लिखी मौला 

श्याम सखा’ की किस्मत में तो बस
हर बार वही पीर लिखी मौला


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