Wednesday, April 29, 2009
बदरंग ब्यौरे भर हुए-गज़ल
हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
बदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार के
हंसिये हथौड़े की व्यथा अब क्या सुनायें दोस्तो
इनके मसीहा खुद मुसाहिब बन गये बाजार के
है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के
गिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हम
पर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार के
हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के
मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन
२ २ १ २.२ २ १ २.२ २ १ २.२ २ १ २.
Sunday, April 26, 2009
तलवार उनकी, है सर अपना-गज़ल
Monday, April 20, 2009
है यही क्या इश्क का दस्तूर साहिब - ग़ज़ल
है यही क्या इश्क का दस्तूर साहिब
सूझता अच्छा बुरा तुमको नहीं है
हो भला तुम किस नशे में चूर साहिब
आपकी मोहक खुशी का राज क्या है
आ गया क्या हाथ कोहेनूर साहिब
हाँ किनारा हम भी कर लेते, मगर हैं
दिल के हाथों हम हुए मजबूर साहिब
रोटियां बाजार से गुम हो गई है
खाएँगे क्या केक अब मजदूर साहिब
शोरोगुल का दबदबा जब से हुआ है
हो गया खामोश है सन्तूर साहिब
दर्द लिखकर मुफ़लिसों के हर गज़ल में
हो गया है ‘श्याम’ भी मशहूर साहिब
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन
Wednesday, April 15, 2009
अपना दामन साफ रखने के लिये-
बीते पल लेकिन न फिर आ पाएँगे
सर उठाकर गर नहीं चल पाएँगे
फिर तो सब सिक्कों मे ही ढल जाएँगे
वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
गर न समझे वो समझ हम जाएँगे
वक्त जाएगा निकल तब ,देखना
हाथ मलते लोग सब रह जायेंगे
अपना दामन साफ रखने के लिये
दाग़ दिल पर लोग कितने खाएँगे
वक्त को गर है बदलना `श्याम जी
आयें आगे वो जो सर कटवाएँगे
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
Monday, April 13, 2009
अंग सभी पुखराज तुम्हारे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे
मनमोहक अन्दाज तुम्हारे
सचमुच बेढ़्ब नाज तुम्हारे
मेरे मन के ताजमहल में
निशि-दिन गूँजें साज तुम्हारे
खजुराहो के बिम्ब सरीखे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे
डर कर भागे चाँद सितारे
जब देखे आगाज़ तुम्हारे
अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे
सुनना भूले गीत-ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे
कल थे हम, हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे
जब तक दिल में 'श्याम' रखो तुम
हैं तब तक सरताज तुम्हारे
Thursday, April 9, 2009
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
********करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक ?
रहेंगे हम, घर में अपने ही मेहमान कब तक
रखेंगे यूं बन्द ,लोग अपनी जुबान कब तक
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
चलीं हैं कैसी ये नफ़रतों की हवायें यारो
बचे रहेंगे ये प्यार के यूं मचान कब तक
हैं कर्ज सारे जहान का लेके बैठे हाकिम
चुकाएगा होरी,यार इनका लगान कब तक
इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
रही है आ विश्व-भ्रर से कितनी यहां पे पूंजी
मगर रहेंगे लुटे-पिटे हम किसान कब तक
रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
दुकान खोले कफ़न की बैठा है 'श्याम' तो अब
भला रखेगा 'वो' बन्द अपने मसान कब तक
मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा
Monday, April 6, 2009
* * * * *दिल कितना घायल होगा
* * * * *दिल कितना घायल होगा
आज नहीं तो कल होगा
हर मुश्किल का हल होगा
जंगल गर औझल होगा
नभ भी बिन बादल होगा
नभ गर बिन बाद्ल होगा
दोस्त कहां फ़िर जल होगा
आज बहुत रोया है दिल
भीग गया काजल होगा
आँगन बीच अकेला है
बूढ़ा सा पीपल होगा
दर्द भरे हैं अफ़साने
दिल कितना घायल होगा
छोड़ सभी जब जाएंगे
‘तेरा’ ही संबल होगा
प्यार नहीं जाहिर करना
यह तो खुद से छल होगा
रोज कलह होती घर में
रिश्तों मे दल-दल होगा
पीर सभी की सुनता है
‘श्याम सखा’पागल होगा
वज्न=फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
Wednesday, April 1, 2009
तुम तो पहलू में थे मगर
इतने नाजुक सवाल मत पूछो
इतने नाजुक सवाल मत पूछो
क्यों हूँ बरबादहाल मत पूछो
बात है गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या अकाल मत पूछो
करो तदबीर अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो
तेग का वार गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो
काम क्या आई घुप अँधेरों में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो
वक्त ने जिन्दगी को बख्शे हैं
कैसे -कैसे बबाल मत पूछो
तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
थी ये अपनों की चाल मत पूछो
देखकर खुशगवार मौसम को
मन है कितना निहाल मत पूछो
तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
गम हुऐ क्यों बहाल मत पूछो
कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो
‘श्याम’ से पूछ लो जमाने की
सिर्फ उसका ही हाल मत पूछो
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
s1ss,1s1s,ss