Tuesday, December 3, 2013

मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर- gazal by shyamskha shyam

मेरे गम का क्या सबब है क्या तुम्हे मालूम है
दर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम है

मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर
सादगी उसकी गज़ब है क्या तुम्हे मालूम है

इश्क है गहरा समन्दर पार जाता है वही
डूबने का जिसको ढ़ब है क्या तुम्हे मालूम है

जानता हूं सुध कयामत के दिवस लोगे  मेरी
पर जरूरत आज अब है क्या तुम्हें मालूम है।

सायबानो में रकीबों के तेरा हो जिक्र जब
जान जाती मेरी तब है क्या तुम्हे मालूम है

तुम जमाने से छुपा लोगे सखा अपने गुनाह
देखता रहता है वो सब है क्या तुम्हे मालूम है

मीरा राधा गोपियां उद्धव सुदामा गर बनो
श्याम मिलता यार तब है क्या मालूम है
 

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Wednesday, March 27, 2013

देखूं जो तुमको भांग पीके अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके



देखूं जो तुमको भांग  पीके
अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके












मोतियाबिन्दी नयनो  में काजल
्नित करता मुझको है पागल










अदन्त मुंह और हंसी तुम्हारी
इसमे दिखता ब्रह्माण्ड है प्यारी










तेरा मेरी प्यार है जारी
 जलती हमसे दुनिया सारी




क्या समझें ये दुध-मुहें बच्चे
कैसे होते प्रेमी सच्चे







दिखे न आंख को कान सुने ना
हाथ उठे ना पांव चले ना





पर मन तुझ तक दौड़ा जाए
ईलू-इलू का राग सुनाए


हंसते क्यों हैं पोता-पोती
क्या बुढापे में न मुहब्ब्त होती



सुनलो तुम भी मेरे प्यारे
कहते थे इक चच्चा हमारे



कौन कहता है बुढापे में मुहब्ब्त का सिलसिला नहीं होता
आम भी तब तक मीठा नहीं होता जब तक पिलपिला नहीं होता






होली में तो गजल-हज्ल सब चलती है
                                                      
जलने दो गर दुनिया जलती है
ही तो होली की मस्ती है 
 

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Monday, February 25, 2013

यही तेरी कहानी है यही मेरी कहानी है-gazal by Dr shyamskha shyam



my 1st day at Houstan texas-will be here till 18th march
कभी पत्थर कभी कांटे कभी ये रातरानी है

यही तो जिन्दगानी है,यही तो जिन्दगानी है


जमीं जबसे बनी यारो तभी से है वजूद इसका

नये अन्दाज दिखलाती मुहब्बत की कहानी है


खुशी से रह रहे थे हम मिले तुझसे नहीं जब तक

तुझे मिलकर हुआ ये दिल गमों की राजधानी है 


मुझे लूटा है अपनो ने तुझे भी खा गये अपने

यही तेरी कहानी है यही मेरी कहानी है


रही है दूर ये दिल्ली,रहेगी दूर ये दिल्ली

रखैली थी रखैली है ये दिल्ली राजधानी है


रहे डरते `सखा' ताउम्र कुछ करने से पहले हम

हुये है मस्त कितने जब से छोड़ी सावधानी है

mfaelun,mfaelun,mfaelun,mfaelun





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Monday, February 4, 2013

घर से बाहर हूं घर मेरे भीतर है- gazal Dr shyam skha shyam

घर  से   बाहर  हूं  घर   मेरे   भीतर है
बात यही मुझको देती दुख अक्सर है

औढ़  आकाश  सदा सोये हम बंजारे
रात हुए धरती बन जाती बिस्तर है


बादल बिजुरी जब भी  हैं करते मस्ती
घबराता रहता बेचारा छप्पर है

रात मजे में सोती रहती है शब भर
दिन बेचारा खटता रहता दिन भर है

नेह उडेला है सदियों से नदियों ने
फिर भी क्यों खारा का खारा सागर है

खुशियां तो कब की भाग गईं पीठ दिखा
गम बैठा दिल में बनकर दिलबर है




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Monday, January 21, 2013

Cheated Again



 A middle aged divorced man is searching for a partner. He comes across young man who is helping his widowed mother to find a life partner and arranges a meet between them. Lady is apprehensive lest she may be cheated.When they go ahead,It so happens with turn of events that instead of lady the man himself feels cheated....
"This is my entry for the HarperCollins–IndiBlogger Get Published contest









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आंखे तो गीलीं थीं / सूखे मन मौसम थे -gazal by Dr shyam skha shyam


दुनिया भर के गम थे
और  अकेले   हम  थे

आंखे  तो  गीलीं  थीं 
सूखे मन   मौसम थे

गोली  थी छाती   पर
हाथों   में   परचम थे

दोस्त हुये जब दुश्मन
गम ही बस हमदम थे

खुशियों की  दुपहर में
बरसे गम छम छम थे

हव्वा    हाथों      हारे
यार मियां आदम थे

नींद उड़ी रातो कीं 
ख्वाब हुए बेदम थे

छोड़ चले जब अपने
साथ खड़े बस गम थे

‘श्याम’ सुलझते कैसे
किस्मत के वे खम थे

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Sunday, January 20, 2013

Cheated Again


 A middle aged divorced man is searching for a partner. He comes across young man who is helping his widowed mother to find a life partner and arranges a meet between them. Lady is apprehensive lest she may be cheated.It so happens that instead of lady the man himself feels cheated.................. but the readers enjoy the story  

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