Tuesday, November 6, 2012

जुल्फ़ तेरी छेड़ती है


हुस्न की ये बानगी है
दिल पे अपने आ बनी है

बेहिसी है बेकली है
हाय कैसी जिन्दगी है

जुल्फ़ तेरी छेड़ती है
ये हवा तो मनचली है

ख्वाब भी लगते पराये
अजनबी सी जिन्दगी है

 चाहता महबूब को हूं
क्या नहीं ये बन्दगी है

तेरे बिन लगता नहीं है
ये भी दिल की दिल्लगी है

खलबली दिल में मची है
क्या बला की सादगी है

हो के गुमसुम बैठना भी
‘श्याम’ की यायावरी है




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Monday, September 10, 2012

कुछ खत जवानी की रात होते हैं-


खत आधी-मुलाकात होते हैं-डा श्याम सखा श्याम

 आधी मुलाकात ?

तुमने लिखा है
दूर हो
माना
रोटी रोजी के
मसअले के कारण
मजबूर हो
खत तो लिखो
सुनो मैने कहीं सुना था
खत आधी-मुलाकात होते हैं
- - -
हां
कुछ खत
आधी मुलाकात
होते हैं
इसीलिये तो
हम और आप
खत की बाट जोहते हैं

खत में

कभी खुद को
कभी उनको टोहतें हैं
कई-कई खत तो
मन को बहुत मोहते हैं
कई खत
दर्दे-दिल दोहते हैं
वे खत तो
सचमुच
बहुत सोहते हैं

खतों की

न जाने
कितनी परिभाषा हैं
मगर
हर खत की
एक ही भाषा है

कुछ खत

जेठ की धूप होते हैं
कुछ खत
सावन की बरसात होते है
कुछ खत
आधी मुलाकात होते है

खतों

की कहानी
सदियों पुरानी है
खतों की बात
मुश्किल समझानी है
खतों की जात
भला किसने जानी है

खत

कभी दर्द
कभी खुशियां
बांटते हैं
खत कभी
माँ बनकर सहलाते हैं
कभी पिता बनकर डांटते हैं

खत का

दिल से
बहुत पुराना नाता है
खत में
लिखा हर शब्द
रूह तक जाता है
मुझे तो
खत का
हर उनवान बहुत भाता है

कुछ खत

दिवस से उजले
कुछ खत
सियाह रैन होते हैं
आपने
देखा होगा
कुछ खत बहुत बेचैन होते हैं

कुछ खत

खाली खाली
निरे दिखावटी होते हैं
कुछ खत
सहेजे ज़जबात होते हैं
कुछ खत
आधी मुलाकात होते हैं

खत

कभी गुलाब,
कभी केवड़े से महकते हैं
कभी-कभी
तो खत
अंगारे बन दहकते हैं
बावरे खत
जाने
कहां-कहां जा बहकते हैं
मनमीत
मिलने पर तो
खत कोयल से चहकते हैं
खत हमेशा
दिल से दिल की बात होते हैं
खत
आधी मुलाकात होते हैं

मैने

देखा है
परखा है,जाँचा है
क्या
आपने कभी
बिना दिल का खत बाँचा है
क्या नहीं
मेरा यह कथन
सचमुच साँचा है
खत पढ़्कर
क्या नहीं
आपके दिल का मोर नाचा है
फोन व सेलुलर
के आगे
खत हुआ
एक ढहता हुआ ढाँचा है

पर

कुछ लोग
सचमुच मुझसे दीवाने हैं
इस युग में भी
ढ़ूंढते
खत
लिखने के बहाने हैं
कहें!
क्या खत
गुजरे हुए जमाने हैं
लोग
जो चाहे कह लें
मेरा दिल
तो यह बात नहीं माने है
रोज
एक खत
लिखने की ठाने है

हर

खत की
अपनी खुशबू
अपना अंदाज़ होता है
हर
खत में छुपा
दिल का राज़ होता है
हर खत
लिखने वाला
शाह्जहां
और
पढ़्ने वाला
मुमताज होता है

कुछ खत

दीन-धर्म जात होते है
कुछ खत
तो
फ़कीरों की जमात होते हैं
खत
आधी मुलाकात होते हैं

कुछ

खतों में
ख्वाब ठहरे होते हैं
कुछ
खत तो
सागर से भी गहरे होते हैं

कुछ

खत ज़मीं
कुछ
खत आसमां होते हैं
कुछ
खत तो
उम्रभर की दास्तां होते है

कुछ

खत गूंगे
कुछ
खत वाचाल होते हैं
कुछ
खत
अपने भीतर
समेटे भूचाल होते हैं

मुझ

सरीखे लोग
खतों को तरसते हैं
खत
न मिलने पर
नैनो की राह बरसते हैं

कुछ

खत
दो दिन के
मेहमान होते हैं
कुछ
खत
बच्चों की
मुस्कान होते हैं
कुछ
खत
बुढापे की बात
होते हैं
कुछ खत
जवानी की रात होते हैं

खत क्या

सिर्फ़ आधी मुलाकात होते हैं ?






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Sunday, September 2, 2012

खत आधी-मुलाकात होते हैं-डा श्याम सखा श्याम

 आधी मुलाकात ?

तुमने लिखा है
दूर हो
माना
रोटी रोजी के
मसअले के कारण
मजबूर हो
खत तो लिखो
सुनो मैने कहीं सुना था
खत आधी-मुलाकात होते हैं
- - -
हां
कुछ खत
आधी मुलाकात
होते हैं
इसीलिये तो
हम और आप
खत की बाट जोहते हैं

खत में

कभी खुद को
कभी उनको टोहतें हैं
कई-कई खत तो
मन को बहुत मोहते हैं
कई खत
दर्दे-दिल दोहते हैं
वे खत तो
सचमुच
बहुत सोहते हैं

खतों की

न जाने
कितनी परिभाषा हैं
मगर
हर खत की
एक ही भाषा है

कुछ खत

जेठ की धूप होते हैं
कुछ खत
सावन की बरसात होते है
कुछ खत
आधी मुलाकात होते है

खतों

की कहानी
सदियों पुरानी है
खतों की बात
मुश्किल समझानी है
खतों की जात
भला किसने जानी है

खत

कभी दर्द
कभी खुशियां
बांटते हैं
खत कभी
माँ बनकर सहलाते हैं
कभी पिता बनकर डांटते हैं

खत का

दिल से
बहुत पुराना नाता है
खत में
लिखा हर शब्द
रूह तक जाता है
मुझे तो
खत का
हर उनवान बहुत भाता है

कुछ खत

दिवस से उजले
कुछ खत
सियाह रैन होते हैं
आपने
देखा होगा
कुछ खत बहुत बेचैन होते हैं

कुछ खत

खाली खाली
निरे दिखावटी होते हैं
कुछ खत
सहेजे ज़जबात होते हैं
कुछ खत
आधी मुलाकात होते हैं

खत

कभी गुलाब,
कभी केवड़े से महकते हैं
कभी-कभी
तो खत
अंगारे बन दहकते हैं
बावरे खत
जाने
कहां-कहां जा बहकते हैं
मनमीत
मिलने पर तो
खत कोयल से चहकते हैं
खत हमेशा
दिल से दिल की बात होते हैं
खत
आधी मुलाकात होते हैं

मैने

देखा है
परखा है,जाँचा है
क्या
आपने कभी
बिना दिल का खत बाँचा है
क्या नहीं
मेरा यह कथन
सचमुच साँचा है
खत पढ़्कर
क्या नहीं
आपके दिल का मोर नाचा है
फोन व सेलुलर
के आगे
खत हुआ
एक ढहता हुआ ढाँचा है

पर

कुछ लोग
सचमुच मुझसे दीवाने हैं
इस युग में भी
ढ़ूंढते
खत
लिखने के बहाने हैं
कहें!
क्या खत
गुजरे हुए जमाने हैं
लोग
जो चाहे कह लें
मेरा दिल
तो यह बात नहीं माने है
रोज
एक खत
लिखने की ठाने है

हर

खत की
अपनी खुशबू
अपना अंदाज़ होता है
हर
खत में छुपा
दिल का राज़ होता है
हर खत
लिखने वाला
शाह्जहां
और
पढ़्ने वाला
मुमताज होता है

कुछ खत

दीन-धर्म जात होते है
कुछ खत
तो
फ़कीरों की जमात होते हैं
खत
आधी मुलाकात होते हैं

कुछ

खतों में
ख्वाब ठहरे होते हैं
कुछ
खत तो
सागर से भी गहरे होते हैं

कुछ

खत ज़मीं
कुछ
खत आसमां होते हैं
कुछ
खत तो
उम्रभर की दास्तां होते है

कुछ

खत गूंगे
कुछ
खत वाचाल होते हैं
कुछ
खत
अपने भीतर
समेटे भूचाल होते हैं

मुझ

सरीखे लोग
खतों को तरसते हैं
खत
न मिलने पर
नैनो की राह बरसते हैं

कुछ

खत
दो दिन के
मेहमान होते हैं
कुछ
खत
बच्चों की
मुस्कान होते हैं
कुछ
खत
बुढापे की बात
होते हैं
कुछ खत
जवानी की रात होते हैं

खत क्या

सिर्फ़ आधी मुलाकात होते हैं ?












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Tuesday, July 31, 2012

बेआबरू होता हूं मैं- gazal by shyam skha shyam

 तुझसे मिलकर सुर्खरू होता हूं मैं
तेरे    जैसा    हू-ब-हू   होता हूं   मैं

जब भी खुदसे रूबरू होता हूं मैं
सच कहूं बेआबरू होता हूं मैं

मुहं हरीफ़ों के हैं खुलते इस कदर
जब भी वजहे गुफ़्तगू होता हूं मैं

 तुझमें मुझमें फ़र्क ही अब क्या रहा
बेखुदी में तू ही तू होता हूं मैं

आपके आगे है मेरी क्या बिसात
नज्म क्या बस हाइकू होता हूं मैं
आपके चहरे पे तल्खी देखकर
दिल से अपने आक- थू होता हूँ मैं
 


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Tuesday, July 10, 2012

गैस एजेंसी बाप मरने पर मिली तो, कह उठा-gazal by Dr shyam skha shyam

 
64
मरना तो आसान है  पर जीना है मुश्किल बहुत
चल पड़े इक बार तो  मिल जाएंगी मंजिल बहुत

छोड़िये कश्ती को आप   इक बार तो मझधार में
बाट जोहेंगे  हजरत!     आपकी  साहिल  बहुत

हो गया आसां बहुत ही  आजकल ये  प्यार तो
क्योंकि हैं मिलने लगे यारो उधार अब दिल बहुत

हो चले मायूस थे हम लोग सब के सब  मगर
आपके आने से तो है जम गई महफ़िल  बहुत

गैस एजेंसी बाप मरने पर मिली तो, कह उठा
यार अपने काम आया अबके है करगिल बहुत

साफगोई की  वजह से   ही कबाड़ा  हो गया
श्याम था वर्ना सभी के प्यार के काबिल बहुत

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन



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Friday, June 22, 2012

कोई पागल ही बनाएगा यहाँ घर दोस्तो-gazal by Dr shyam skha shyam

 
63
भीड़ का मेला अकेला आदमी हर दोस्तो
कोई पागल ही बनाएगा यहाँ घर दोस्तो

चिमनियों का हर तरफ फ़ैला धुआं है देखिये
कौन इशारे मौसमी समझे यहाँ पर दोस्तो

पंछियों को था बिजूकों से डराता आदमी
खुद से ही अब तो उसे लगने लगा डर दोस्तो

ईंट पर बुनियाद की हम शे अब कैसे कहें
जब फ़्लैट अपना है मंजिल सातवीं पर दोस्तो

श्यामसे जब भी हो मिलना आपको श्यामजी
कीजिये बातें हवा से खोलकर पर दोस्तो

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन





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