Thursday, February 26, 2009

तो पत्थर जनाब हम भी हैं


82
सवाल आप हैं गर तो जवाब हम भी हैं
हैं ईंट आप तो पत्थर जनाब हम भी हैं

शरीफ़ हम हैं शरीफ़ों के वास्ते साहिब
जो हो खराब कोई तो खराब हम भी हैं

नहीं है यूं तो जमीं आज अपने पाँव तले
फ़लक को छूलें,सँजोए ख्वाब हम भी हैं

न बाज़ आए अगर आप जुल्म ढ़ाने से
तो अपने दिल में लिये इन्किलाब हम भी हैं

बहेलिये से यूं बचकर चली कहाँ चिड़िया
तेरी फिराक में बैठे उकाब हम भी हैं

बहुत गुमान है शब को सियाह चादर का
तो जान ले वो कि इक आफ़ताब हम भी हैं


आज हम एक और वज्न-जो सभी शायरों

बहुत पसन्दीदा वज्न है पर बात कर रहे हैं

इस में अनेक फ़िल्मी गीत भी लिखे गये हैं


मफ़ाइलुन,फ़इलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन

२ २ २ २ २
लाल रंग वाले लघु अनिवार्य रहेंगे

Wednesday, February 25, 2009

***** दर्द दिल में है पर मुस्करा

***** दर्द दिल में है पर मुस्करा

दर्द दिल में है पर मुस्करा
साँस खुलकर ले और खिलखिला

कर्ज तेरा है तू ही चुका
सर मगर अपना तू मत झुका

हाँ गिले-शिकवे होंगे सदा
तोड़ मत प्यार का सिलसिला

गर नहीं दम कि सच कह सके
बैठ तू बन कर इक झुनझुना

मत जुबाँ सी, अरे ‘श्याम’ तू
चोट खाई है तो बिलबिला

फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
2111, 2111, 2111,

इस बार हम एक और रुक्न[खण्ड] पर गज़ल की तकतीअ कर देखते हैं।

दर्द दिल में है पर मुस्करा
२१ २२ , २ १ १ १ ११ १ २
दर=२ मुस्करा में हम मुस इकट्ठा बोलते हैं अत: ११=२ याने गुरू इस के बाद है क जो खुद ही लघु है,है की मात्रा गिर कर लघु हो गया है। और को अर पढा गया है गज़ल का सारा दारोमदार-ध्वनि पर आधारित है अगर आप लय में गुन्गुनायेंगे तो और अर ही बोल पायेंगे ,इसे गज़ल में जायज करार दिया गया है जैसे हिन्दी गीतो में और को ‘औ’गाया जाता है

Saturday, February 21, 2009

**औरत होना है बरबादी

कहने को हम दुनिया आधी
फ़िर भी हैं मर्दों की बांदी

गहने जेवर की सूरत में
बेड़ी ही हमको पहना दी

बिट्या रानी घर की शोभा
कहकर कीमत खूब चुका दी

डोली उठी पिता के घर से
पी के घर में चिता सजा दी

घर की साज-संवार करें हम
इतनी सी बस है आजादी

जन्म दिया आदम को हमने
जनम-जनम की हम अपराधी

बात बड़ी है सीधी सादी
औरत होना है बरबादी

घर तेरा है या है मेरा
असली बात यही बुनियादी

आधा हक ले के है रहना
बात आज तुम्हें यूं समझादी

अनाम को-‘बेरदीफ़ मुस्लसल’गज़ल गज़ल
वज्न-फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन-काफ़िया ‘ई
मुस्लसल=आम तौर पर गज़ल का हर शे‘र आजाद होता है
यानि हर शे‘र में अलग विषय रहता है यही सर्वमान्य तथ्य है
लेकिन एक विषय पर आधारित गज़ल जिसे मुस्लसल’गज़ल
कहा जाता है,कहने की परम्परा भी है।

Friday, February 20, 2009

जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह

14

दोस्तो पिछली बार हमने रुक्न फ़ऊलुन पर आधारित गज़ल पढी थी
आज एक और रुक्न याने फ़ाइलुन पर गज़ल देखें


घूमना है बुरा तितलियों की तरह
घर भी बैठा करो लड़कियों की तरह

दिल में उतरी थी वो बिजलियों की तरह
जब गई तो गई,आँधियों की तरह

उनकी बातें लगीं झिड़कियों की तरह
जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह

आ लिखें ,फ़िर से खत ,एक दूजे को हम
बालपन में लिखीं तख्तियों की तरह

देखकर,आपको धड़कने ,हैं हुई
कूदती,फाँदती हिरनियों की तरह

जल गये मेरे अरमां सभी के सभी
फूंक डाली गईं झुग्गियों की तरह

छोड़ कर चल दिये वो हमें दोस्तो
आम की चूस लीं गुठलियों की तरह

बात अपनी कहो कुछ मेरी भी सुनो
शोख चंचल खिली लड़कियों की तरह

जिन्दगी फिर रही है तड़पती हुई।
जाल में फँस गई मछलियों की तरह

प्यार करना ही है गर तुम्हें तो करो
मीरा, राधा या फिर गोपियों की तरह


काश हो जाते हम नामवर दोस्तो
मिट गई प्यार में हस्तियों की तरह

चाहते आप ही बस नहीं हैं हमें
घूमता है जहां फिरकियों की तरह

आज मायूस है क्यों वो, कल तक जो थी
खेलती कूदती हिरनियों की तरह

माफ कर दें इन्हें आप भी ‘श्याम’ जी
आपकी अपनी ही गलतियों की तरह

फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन

Saturday, February 14, 2009

***उर्दू और हिन्दी गज़ल में मोटे तौर पर मात्र दो बातों का अन्तर है

गज़ल कहना या लिखना शुरू करते हैं
उर्दू और हिन्दी गज़ल में मोटे तौर पर मात्र दो बातों का अन्तर है
एक-
क्लिष्ट उर्दू शब्दों का प्रयोग [अगर संस्कृतनिष्ठ हिन्दी शब्दों का प्रयोग होगा तो]हिन्दी भी क्लिष्ट
हो जाएगी।[ क्लिष्ट शब्द ,वे शब्द जो आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग नहीं होते और आम आदमी की
समझ में उनका अर्थ नहीं आता=आम आदमी का मतलब किसी आबादी का बहुमत
चाहे पढ़ा-लिखा हो या
अनपढ ]
दो-
उर्दू समास का प्रयोग यथा= काबिले-गौर-हिन्दी व्याकरण में हम इसे गौर के काबिल ही कहेंगे।और
कुछ लोगों का मानना है कि इस समास प्रयोग के बिना गज़ल लिखना संभव नहीं।पर ऐसा नहीं है
आगे चल कर हम इसके उदाहरण भी देंगे।


उर्दू में गज़ल लिखने का कि बजाय गज़ल कहना ज्यादा सही,नफ़ासत की बात मानी जाती है।क्यों ?
शायरों का मानना है कि गज़ल [मैं तो कहूंगा हर कविता दिल में निर्झर की तरह फूटे तभी मर्म को छूने
वाली रचना हो सकती है,अत: वे कहते हैं लिखी तो ‘इमला’ जाती है, गज़ल तो कही जाती है।
तो गज़ल कहने के लिये रुक्न [खण्ड] जानना आवश्यक पर सारे लगभग ३० रूक्नों का ज्ञान कतई जरूरी नहीं है।
कुल आठ-दस भी रूक्न जान कर कोई भी बखूबी गज़ल कह सकता है।
ये आठ दस रुक्न हैं ये
पहले हम फ़ऊलुन को लेते हैं,फिर इन१० रुक्नों को बारी-बारी लेंगे
फ़ऊलुन=चलाचल=१ २ २
इस रुक्न को दो,तीन या चार बार दोहरा कर गज़ल बन सकती है यथा- १२२,१२२,=१० मात्रा या१२२, १२२,१२२, =१५ मात्रा या१२२, १२२, १२२,१२२= २० मात्रा,कभी-कभी इनके अन्त में फ़ऊ=१२ भी जोड़ा जा सकता है
तब बह्र का वज्न होगा
यथा- १२२,१२२,१३=१३ मात्रा या१२२, १२२,१२२,१२ =१८ मात्रा या१२२, १२२, १२२,१२२ १२= २३ मात्रा।
अब इस बहर की एक गज़ल की गणना कर के देखते हैं।

बने फिरते थे जो जमाने मे शातिर
पहाड़ों तले आये वे ऊंट आखिर

छुपाना है मुशकिल इसे मत छुपा तू
हमेशा मुह्ब्बत हुई यार जाहिर

बना क़ैस ,रांझा बना था कभी मैं
मेरी जान सचमुच मैं तेरी ही खातिर

खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
हुआ है खिताब अपना तब से ही काफिर

बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
कहें लोग हरफ़न में उस को तो माहिर

मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

तेरी खूबियां 'श्याम' सब ही तो जाने
खुशी हो कि ग़म तू हरदम है शाकिर

गणना या तकतीअ
बने फिर ते थे जो जमाने मे शातिर
१२ २, २ २ १ २ २ २ २
पहाड़ों तले आ ये वे ऊंट आखिर
१ २ २, १२ २, २ २. १ २ ११=२

छुपाना है मुशकिल इसे मत छुपा तू
१२ २, २ २ ११ २ २
हमेशा मु ह्ब्बत हुई या जाहिर
१२ २, १ २ २ १ २ २ ११

बना क़ै स ,रांझा बना था कभी मैं
१२ २, १ २ २ १ २ २ १ २ २
मेरी जा न सचमुच मैं तेरी ही खातिर
१२ २, १ २ २ २ २ २ २

खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
१२ २, १ २ ११ १ २ ११ २ २
हुआ है खिताब अप ना तब से ही काफिर
१२ २, १ २ २ २ २ १ २ २

यहां खिता के बाद ब+अप=बप और ना कि मात्रा गिर जाएगी
हुआ है खिताबप ना तब से ही काफ़िर
१ २ २ १ २ ११ १ ११ २ ११
इस क्रिया को मदग्म होना कहा जाता है
यानि किसी लघु के बाद अगर स्वर अ,आ,इ,ई उ,ऊ,ओ,औ,आ जाये तो
वह दोनो मिल सकते हैं और देखें याद आता वैसे २१२२,=७ मात्रा है
लेकिन इसे यादाता=२२२= ६ मात्रा भी किया जा सकता है गज़ल नियमनुसार=संगीत
नियमानुसार भी



बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
१ २ २ १ २ २ १ २ २ २ २
कहें लो ग हरफ़न में उस को तो माहिर
१ २ २ १ १ १ १ १ १ २ १ २ ११
मुझे छो ड़कर तुम कहां जा र हे हो
१ २ २ ११ ११ १ २ २ १ २ २
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर
१ २ २ ११११ २ १ २ ११
तेरी खू बियां 'श्या म' सब ही तो जाने
१ २ २ २ २ १ १ २ १ २ २
खुशी हो कि हो ग़म तू हरदम है शाकिर
१ २ २ १ २ ११ ११११ १ २ ११

मित्रो एक बात और जहां
लाल रंग में है,वहाँ न केवल लघु अनिवार्य है अपितु वह गिरा कर भी बनाया जा सकताहैउसी तरह नीले रंग में चिह्नित दो लघुओं को गुरू गिना जा सकता है
जैसे अन्तिम पंक्ति मे
हरदम के चार लघु कोगुरू या शाकिर के किर को दो लघु के स्थान पर एक गुरू
आगे चलकर हम एक और बह्र पर बात करेंगे।

Thursday, February 12, 2009

अंग सभी पुखराज तुम्हारे

मनमोहक अन्दाज तुम्हारे
सचमुच बेढ़्ब नाज तुम्हारे

मेरे मन के ताजमहल में
निशि-दिन गूंजें साज तुम्हारे

खजुराहो के बिम्ब सरीखे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे

डर कर भागे चांद सितारे
जब देखे आगाज़ तुम्हारे

अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे

सुनना भूले गीत ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे

कल थे हम,हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे

जब तक दिल में ‘श्याम’रखो तुम
हैं तब तक सरताज तुम्हारे

लो गौतम जी-बहर
फ़ेलुन,फ़ेलुन फ़ाल या फ़ेल फ़ऊलुन
२२,२२,२१,१२२

Tuesday, February 10, 2009

गज़ल क्या है


गज़ल क्या है ?


बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है लेकिन उलझा -उलझा ,
मुझे
जनाब निश्तर खान्काही साहिब यह उदाहरणसबसे सटीक लगा

बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या

मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की


ये थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता

जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां

उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है

अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर गीत हैं और गज़ल हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं कि गीत में स्त्रैण कोमलता है
,जबकि गज़ल कहने में पुरुषार्थ झलकता है।
या
गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा
इसी तरह शे के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता कि
अगले
मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता

इन्हें पढें और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र जनाब शहरयार साहिब के हैं।[उमराव जान फ़ेम वाले ]

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]


जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन

अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं

पनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की शर्तों पे जीता नहीं

जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं


यति और गति या ग्त्यात्मकता और लयात्मक्ता के बिना गज़ल का अस्तित्व ही नहीं हो सकता।क्योंकि गज़ल की बुनियाद सरगम की तरह संगीत के आधार पर[और कहें तो गणित के आधार पर] टिकी है।गज़ल का हर शे‘र अपने आप में सम्पूर्ण तो होता ही है,
वह श्रोता या पाठक को अद्भुत,आकर्षक,अनजाने और एक निराले अर्थपूर्ण अनुभव तक ले आने में सक्षम होता है।
देखें कुछ उदाहरण

चाँद चौकीदार बनकर नौकरी करने लगा
उसके दरवाजे के बाहर रोशनी करने लगा

चाँद को चौकीदार केवल गज़ल का शायर ही बना सकता है

बाल खोले नर्म सोफ़े पर पड़ी थी इक परी
मेरे अन्दर एक फ़रिश्ता खुद्कुशी करने लगा

अब बतलाएं फ़रिश्ते को खुद्कुशी करवाना शायर ,गज़ल के शायर् के अलावा और किसके वश में है
ऐसा विचित्र एवम चमत्कृत करने वाला अनुभव साहित्य की किस विधा में मिल सकता है
कुछ और उदाहरण देखें
तुझे बोला था आँखे बंद रखना
खुली आँखों से धोखा खा गया ना
मेरे मरने पे कब्रिस्तान बोला
बहुत इतरा रहा था आ गया ना
(जनाब-महेश दर्पण)
मित्रो एक बात और गज़ल की सारी कमनीयता,सौष्ठव व चमत्कृत करने की क्षमता बहर या छंद पर ही टिकी है.
हम कह सकते हैं कि गज़ल शब्दों की कलात्मक बुनकरी है ।
अगर हम उपरोक्त शेर को बह्र के बिना लिखें
मरने पे मेरे कब्रिस्तान बोला
इतरा रहा था
बहुत आ गया ना

आप ही कहें सारे शब्द वही हैं ,केवल उनका थोड़ा सा क्रम बदलने से क्या वह आनन्द जो पहली बुनकरी में था,गायब नहीं हो गया।बस इसी लिये बहर का ज्ञान आवश्यक है



अगली बार हम बह्रों की बात करेंगे।आप अपनी टिपण्णी दें।गज़ल के विद्वान इस लेख में अगर कुछ त्रुटि पायें तो
उसे ठीक करने हेतु लिखें ।हम उनके आभारी होंगे

गज़ल बनाम गज़लकार

दोस्तो !
यह सर्वविदित तथ्य है कि कविता का जन्म संसार की सभी भाषाओं में छंद के रूप में हुआ तथा छान्दसिक कविता ने न केवल कविता को अपितु हर भाषा एवं संस्कृति को समृद्ध क्या और संस्कृतियों के इतिहास को भी सहेज-समेट कर रखा है।
पिछले कुछ बरसों से मुक्तछंद बनाम छंदमुक्त कविता ने श्रोता तथा पाठकों को कविता से इतना विमुख कर दिया था कि कविता की मृत्यु की घोषणा होने लगी थी ।
श्रोता,पाठकों को ही नहीं अपितु कविता तथा कवियों को भी नवजीवन देने का श्रेय निःसन्देह गज़ल को जाता है।आज हर भाषा में गज़ल लिखी जा रही है,सुनी-पढी जा रही है।
इसके पीछे एक कारण जहां इसका गेय होना है, वहीं गज़ल के हर शे’र में अलग बात कहने की सुविधा है और यह केवल सुविधा ही नहीं गज़ल का आवश्यक अंग भी है ।
एक और जहां गज़ल सर्वसाधारण की चहेती बन रही है ,वहीं गज़ल व उर्दू भाषा के तथाकथित पैरोकार या स्वयंभू ठेकेदार गज़ल को दुरूह बनाने में जुटे हैं और नवगज़लकारों को अरबी-फ़ारसी शब्दों के जाल में उलझाकर भटका रहे हैं।
यह ब्लाग गज़ल-प्रेमियों को न केवल एक मंच देने ,बल्कि गज़ल की बारीकियों को सरल सहज ढंग से समझाने का प्रयास भर है। आप सभी का इस पर स्वागत है ।हम यह भी चाहेंगे कि गज़ल के विद्वान अगर इसमें कुछ सुधार की जरूरत महसूस करें तो निसंकोच अपनी सलाह टिप्पणी में लिखें अगर ठीक पाई गई तो उसे मूल लेख में लिखा जायेगा और हम ऐसे विद्वानो के अनुग्रहित होंगे
हम शुरूआत गज़ल के प्रारूप से करेंगे

समझें रुक्नों के समकक्ष हिन्दी शब्द

कुछ मित्र ,गज़ल छंद में प्रयुक्त फ़ारसी शब्दावली से घबरा जाते हैं उनके लिये रुक्नो [खण्डों] में हम ये समकक्ष शब्दावली दे रहे हैं केवल छंद
के ध्वनि रूप को ्समझने हेतु है,हम कोई नई शब्दवली गढ़्ने का प्रयास नहीं कर रहे।आगे चलकर केवल उर्दू रुक्न भी दिये जा रहे हैं वज्न सहित

फ़ अल= च,मन [चमन] १,२ लघु,गुरू

फ़ा= बो या आ २ गुरू
फ़ाअ या फ़ेल=बोल=२,१ गुरू,लघु
फ़ेलान= बो ला न = २२१
फ़ाइलात या फ़ाइलान=बोलचाल=२,१,२,१
फ़ाइलातुन=वो चला मन या चलचलाचल=२१२२ गुरू लघु गुरू गुरू[इस अन्तिम गुरू की जगह दो लघु यथा चल आ सकते हैं।
फ़ाइलुन=आचमन=२,१,११ या २,१,११ यहाँ२ के बाद आये लघु के बाद ,[कोमा] इस बात को बतलाता है कि यहाँ आने वाला वर्ण हर हालत में लघु
होना चाहिये स्वयंमेव या मात्रा गिरा कर जबकि इस लघु के बाद भी दो लघु हैं पर इनके बीच मे,कोमा न रहने से
इन दोलघु के स्थान पर गुरू आ सकता है पर हम यहाँ पहले और दूसरे लघु को मिला कर गुरू नहीं ला सकते,यह बात आगे आने वाले पाठ में भी जारी रहेगी यानि जिस लघुके बाद कोमा का
प्रयोग है वहाँ अनिवार्य लघु आयेगा ]

फ़,इ,लात=च,न,बोल= १,१,२१
फ़,इ,लातुन=च,न,ओमन=१,१,२११ या १,१,२२

फ़,इ,लुन=च,न,मन=१,१,११ या १,१,२

फ़ऊ=चलो= १,२
फ़ऊल=च,लो,न,=१,२,१
फ़ऊलुन= च,लोचल=१२११=१२२
फ़ेलुन= आचल=२११ या २२ [१के बाद कोमा न आने से २ यानि गुरू का प्रयोग भी उचित माना जाता है ]
[रोक बरसती इन आँखों को,मीठी यादें खारी मत कर यहाँ रो [क ब] रसती या मत कर सभी २२ हैं]

म,फ़ा,इ,ल,तुन=चला च,न,मन=१२,१,१,११ या १,२,१,१,२=लघु,गुरू,लघु,लघु,गुरू
मफ़ाइलुन=चला चमन,१,२,१,११
मफ़ाईल , फ़ ऊलान = चलाआम= १,२,२,१
मफ़ाईलुन= चला आ मन=१,२,२,२ या १,२,२,११
मफ़ऊल=मन बोल=११२.१, या २२.१,
मफ़ऊलात=मन बोला म=११२२१,या २२२,१.[यहाँ अन्तिम लघु अनिवार्य है]

मफ़ऊलातुन=मनबोलमन= ११२२११

मफ़ऊलुन=मनओमन=११२११
मुतफ़ाइलुन=चनआचमन=१,१,२,१,११=१,१,२,१,२ लघु लघु गुरू लघु गुरू [या दो लघू]
मुतफ़इलुन =च न च न मन=१,१,१,१,२ [या ११दो लघू]
मुस्तफ़इलुन=मन मन च मन=११,११ १, ११=२२ १

गज़ल के रुक्न या खण्ड

गज़ल के रुक्न या खण्ड

हम जो बात कहने जा रहे हैं वह गज़ल के माहिरों तथा नौसिखियों को जिन्होने एक-आध या दस बीस गज़ल कही, नहीं लिख डाली हों ।जी हां गज़ल लिखी नहीं कही जाती है।माने जब तक दिल स्वयं ही कुछ कहने को राजी न हो ,गज़ल लिखी जा सकती है, कही नही जा सकती ।
तो गज़ल को खुद-ब-खुद निर्झर की तरह आने दें जबरदस्ती न करें।
यह गज़ल कहने का पहला नियम है ।
२- जब कोई भाव मन में आता है पहली पंक्ती के रूप में, उसे कागज पर लिख लें।
अब उसे गज़ल के छंदों मे से ,किस वज़्न बह्र [बहर] पर लिखा जा सकता है इसका निर्ण्य करें।
वज़्न क्या हैं।
और एक बात अधिकांश शायर ३ या ४ बहरों {छंदो ] में ही गज़ल लिखते हैं ।अत: आप भी कुछ दिनो मे समझ जाएंगे की आप किन बहरों में आसानी से लिख पायेंगे,यह सारे रूक्न मात्र जानकारी के लिये हैं बहुत शीघ्र हम उन बहरों का जिक्र करेंगे जो आमतौर पर चलन में हैं यानि जिन्हे अधिकांश शायर प्रयोग कर रहे हैं और वे आसानी से सीखी जा सकती हैं
गज़ल को ख्ण्डों [रुक्नों-रूक्न एक वचन है जैसे खण्ड,उर्दू में रुक्न का बहुवचन अराकान होता है,लेकिन हम सारा विवरण हिन्दी भाषा व देवनागरी लिपि में लिख रहे हैं अतः हिन्दी व्याकरण के अनुसार रूक्नो ही लिखेंगे ]
तो गज़ल छंद मे प्रयुक्त होने वाले खण्ड या रूक्न देखें-मुख्य रुक्न केवल आठ होते हैं,शेष इन्ही रुक्नो के प्रवर्तित रूप हैं यथा फ़ाइलातुन के फ़ा से आ की मात्रा हटाकर-फ़इलातुन बना,मफाईलुन में ई को लघु कर, मफ़ाइलुन
फ़ऊलुन, फ़ाइलुन,मफाईलुन,मुस्तफ़इलुन,मुतफ़ाइलुन,फ़ाइलातुन,मुफ़ाइलतुन,मफ़ऊलातु
अब सभी परवर्तित रूपों सहित रुक्नों के वज्न देखें
१फ़अल-इसका वज़्न या मात्रा गणना होगी १,२ या १ १ १ = ३ लेकिन यह तीन २ १ नहीं हो सकता ,क्यों आप इसे मगर को बोलकर देखें - म गर बोला जाता है ,न कि मग र इसी तरह फ़ अल भी फ़अ ल नहीं बोला जाता बस अगर यह बात समझ जायें तो बहुत शंकाओं का समाधान होता चलेगा
फ़अल १_ २ या १११[ तीन लघु या एक लघु व एक गुरु ] यथा म ग र या बता, अब एक और बात याद रखें कि जिस अक्षर के नीचे - यह चिन्ह हो v व रंग लाल हो वह लघु ही रहेगा जबकि काले रंग के दो लघु के स्थान पर एक गुरू का प्रयोग भी मान्य होता है गज़ल छंद में

फ़अल _ २ या १११[ तीन लघु या एक लघु व एक गुरु ]
फ़ा २ = गुरु
३ फ़ाअ_ गुरु व लघु
फ़ाइलात_ २ _ [ गुरु लघु गुरु लघु ]

फ़ाइलातुन_२ १ १ या २ _ २ २ [गुरु लघु गुरु लघु लघु या गुरु लघु गुरु गुरु]यानिपहले
गुरु[फ़ा] के बाद लघु अनिवार्य है लेकिन दूसरे गुरु ला के बाद दो लघु या एक गुरु आ सकते हैं।

६ फ़ाइलान_ २ _

७ फ़ाइलुन_ ११ या गुरु लघु लघु लघु २ १_ २ गुरु लघु गुरु

८ फ़इलात __ २ १_ यानि इसमे सारे लघु केवल लघु अवस्था में प्रयोग करने होंगे

९ फ़इ्लातुन १_१_ २ १ १ या १_१_२ २

१० फ़इलुन १_१_ १ १ या १_ १_

११ फ़ऊ १_ २

१२ फ़ऊल १_ २ १_

१३ फ़ऊलुन १_ २ १ १ या १_ २ २

१४ फ़ेल २ १_

५ फ़ेलुन २ ११ या २ २

६ मफ़ा इलतुन - १_१_ १_ १ १ या १_१_ १_

१७ मफ़ाइलुन - १_ १_ ११ या १_१_

१८ मफ़ाईल १_ २ २ १_

१९ मफ़ाईलुन १_ २ २ १ १ या १_ २ २ २

२० मफ़ ऊ ल १ १ २ १_ या २ २ १_

२१ मफ़ऊलात १ १ २ २ १_ या

२२ मफ़ऊलातुन १ १ २ २ १ १ या २ २ २ २

२३ मफ़ऊलान १ १ २ २ १_या २ २ २ १_

२४ मफ़ ऊलुन १ १ २ २ या २ २ २

२५ मुतफ़ाइलुन १_ १_ १_ ११ या १_ १_ २ १_

२६ मुतफ़इलुन १_ १_ १_ १_ १ १ या १_ १_ १_ १_ २ यानि पहले चारों लघु अनिवार्य होंगे इस खण्ड या रुक्न में

२७ मुसतफ़इलुन १ १ १ १ १_ ११ या २ २ १_
२८ मफ़ाइलतुन १ १ ११
२९ मफ़ाइलातुन= २ ११
३० मफ़ाइलान =


दोस्तो ! यह इस लिये लिखा कि आगे जाकर काम आये ।डरने की जरूरत नहीं है, अधिकांश गज़लकार इनमें से कुछ इने -गुने रुक्न प्रयोग कर बहुत अच्छी गज़ल कहते हैं ।

कल इन रुक्नो [ खण्डो ] को जोड़कर बहर या छंद की बात करेंगे ।
गज़ल में प्रयोग होने वाली सभी बहरे [ छ्न्द ] इन्ही ऊपर लिखित खण्डों [ रुक्नों ] के मेल या तालमेल से बनती हैं।
२- १_ यहां _ इस चिह्न का अर्थ है की इस जगह लघु का होना अनिवार्य है, लघु चाहे अपने स्वभाविक रूप मे हो या गज़ल नियमानुसार गुरु की मात्रा गिराकर बने दीर्घमात्रा- आ,ई,ए ऐ,ओ, औ,।
३- दो लघु- ११ को गुरू २, या एक गुरू को दो लघु में परिवर्तित किया ज सकता है, लेकिन केवल वहीं जहां उपरोक्त खन्डो मे १_ लघु के साथ यह चिह्न न हो। जैसे मुतफ़ाइलुन में १_ १_१_ ११ पहले दो लघु ,लघु ही रखने होंगे तथा गुरू के बाद वाला लघु भी अनिवार्य लघु होग ,लेकि अन्तिम दो लघु के स्थान पर एक गुरू प्रयोग किया ज सकता है।बह्र की बात करते हुए इसका उदाहरण दिया जायेगा।
४- केवल तेरा,मेरा,तेरी,मेरी,कोई की मध्य दीर्घ मात्रा गिरा कर ति,मि,कु किया जा सकत है।
५ इसी तरह इन्हे,इन्ही,इन्हों,उन्हों तुम्हें,तुम्ही को फ़ऊ १ २, पर गिना जाता है। तुम्हारा,तुम्हारी ,तुम्हारे फ़ऊलुन १२११ य १२२ पर गिने जाते हैं
अब हम सीधे-सीधे छंदो-बहरों की बात आरम्भ करते हैं

****कोई क्यों अपना दिखाई दे

गर खुदा खुद से जुदाई दे
कोई क्यों अपना दिखाई दे

काश मिल जाये कोई अपना
रंजो-गम से जो रिहाई दे

जब न काम आई दुआ ही तो
कोई फिर क्योंकर दवाई दे

ख्वाब बेगाने न दे मौला
नींद तू बेशक पराई दे

तू न हातिम या फरिश्ता है
कोई क्यों तुझको भलाई दे

डूबने को हो सफीना जब
क्यों किनारा तब दिखाई दे

आँख को बीनाई दे ऐसी
हर तरफ बस तू दिखाई दे

साथ मेरे तू अकेला हो
अपनी ही बस आश्नाई दे

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन

Friday, February 6, 2009

गज़ल क्या है ?

गज़ल क्या है
बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है लेकिन उलझा -उलझा ,
मुझे
जनाब निश्तर खान्काही साहिब यह उदाहरणसबसे सटीक लगा

बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या

मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की

ये थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता

जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां

उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है
अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर गीत हैं और गज़ल हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं कि
गीत में स्त्रैण कोमलता है,जबकि गज़ल कहने में पुरुसार्थ झलकता है।
या गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा
इसी तरह शे के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता कि
अगले
मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता

इन्हें पढें और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र जनाब शहरयार साहिब के हैं।[उमराव जान फ़ेम वाले ]

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]


जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन

अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैंजमाने की शर्तों पे जीती नहीं

जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं


अगली बार हम बह्रों की बात करेंगे।आप अपनी टिपण्णी दें।गज़ल के विद्वान इस लेख में अगर कुछ त्रुटि पायें तो
उसे ठीक करने हेतु लिखें ।हम उनके आभारी होंगे

samajhe bahar ke hindi rukn

कुछ मित्र ,गज़ल छंद में प्रयुक्त फ़ारसी शब्दावली से घबरा जाते हैं उनके लिये रुक्नो [खण्डों] में हम ये समकक्ष शब्दावली दे रहे हैं केवल छंद
के ध्वनि रूप को ्समझने हेतु है,हम कोई नई शब्दवली गढ़्ने का प्रयास नहीं कर रहे।

फ़ अल= च,मन [चमन] १,२ लघु,गुरू

फ़ा= बो या आ २ गुरू
फ़ाअ या फ़ेल=बोल=२,१ गुरू,लघु
फ़ाइलात या फ़ाइलान=बोलचाल=२,१,२,१
फ़ाइलातुन=वो चला मन या चलचलाचल=२१२२ गुरू लघु गुरू गुरू[इस अन्तिम गुरू की जगह दो लघु यथा चल आ सकते हैं।
फ़ाइलुन=आचमन=२,१,११ या २,१,११ यहाँ२ के बाद आये लघु के बाद ,[कोमा] इस बात को बतलाता है कि यहाँ आने वाला वर्ण हर हालत में लघु
होना चाहिये स्वयंमेव या मात्रा गिरा कर जबकि इस लघु के बाद भी दो लघु हैं पर इनके बीच मे,कोमा न रहने से
इन दोलघु के स्थान पर गुरू आ सकता है पर हम यहाँ पहले और दूसरे लघु को मिला कर गुरू नहीं ला सकते,यह बात आगे आने वाले पाठ में भी जारी रहेगी यानि जिस लघुके बाद कोमा का
प्रयोग है वहाँ अनिवार्य लघु आयेगा ]

फ़,इ,लात=च,न,बोल= १,१,२१
फ़,इ,लातुन=च,न,ओमन=१,१,२११ या १,१,२२

फ़,इ,लुन=च,न,मन=१,१,११ या १,१,२

फ़ऊ=चलो= १,२
फ़ऊल=च,लो,न,=१,२,१
फ़ेलुन= आचल=२११ या २२ [१के बाद कोमा न आने से २ यानि गुरू का प्रयोग भी उचित माना जाता है ]
[रोक बरसती इन आँखों को,मीठी यादें खारी मत कर यहाँ रो [क ब] रसती या मत कर सभी २२ हैं]

म,फ़ा,इ,ल,तुन=चला च,न,मन=१२,१,१,११ या १,२,१,१,२=लघु,गुरू,लघु,लघु,गुरू
मफ़ाइलुन=चला चमन,१,२,१,११
मफ़ाईल= चलाआम= १,२,२,१
मफ़ाईलुन= चला आ मन=१,२,२,२ या १,२,२,११
मफ़ऊल=मन बोल=११२.१, या २२.१,
मफ़ऊलात=मन बोला म=११२२१,या २२२,१.[यहाँ अन्तिम लघु अनिवार्य है]

मफ़ऊलातुन=मनबोलमन= ११२२११

मफ़ऊलुन=मनओमन=११२११
मुतफ़ाइलुन=चनआचमन=१,१,२,१,११=१,१,२,१,२ लघु लघु गुरू लघु गुरू [या दो लघू]
मुतफ़इलुन =च न च न मन=१,१,१,१,२ [या ११दो लघू]
मुस्तफ़इलुन=मन मन च मन=११,११ १, ११=२२ १ १