Friday, December 9, 2011

फूलों की बस्ती से दो पल चुरा लें हम-गज़ल श्याम सखा; श्याम’

 


फूलों की बस्ती से दो पल चुरा लें हम

भँवंरों की मस्ती से दो पल चुरा लें हम



तारे चन्दा चलते हैं जिसके इशारे पर

आज उसकी हस्ती से दो पल चुरा लें हम



खिलवत तो महंगी है अबके बरस यारो

इस भीड़ की मस्ती से दो पल चुरा लें हम



माँगे से मौत यहाँ कब है भला मिलती

क्यों जबरदस्ती से दो पल चुरा लें हम



डूबें मौजों मेंश्यामऐसी कहाँ किस्मत

बल खाती कश्ती से दो पल चुरा लें हम

फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,मफ़ाएलुन
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Sunday, October 23, 2011

धुआँ देखा है लेकिन तुमने चिंगारी नहीं देखी--gazal shyam skha shyam











35न.ह

धुआँ देखा है लेकिन तुमने चिंगारी नहीं देखी
कि चिलमन में छुपी उसकी वो बेजारी नहीं देखी

बना है आशियां तो आपका ये खूबसूरत ही
चुकाई किसने कीमत कितनी है भारी नहीं देखी

चलो माना कि तुम भी देख लेते हो कई बातें
फ़कत कुछ उलझनें देखीं हैं पर सारी नहीं देखी-


बहुत है जिक्र महफ़िल में मेरा, मेरी ही जफ़ाओं का
मगर मुझ में बसी है झील जो खारी नहीं देखी

नहीं है ‘श्याम’ भी पागल कहीं कुछ कम मेरे यारो
हैं ढूंढीं औरों की कमियां,समझदारी नहीं देखी




मफ़ाएलुन,मफ़ाएलुन,मफ़ाएलुन,मफ़ाएलुन









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Sunday, October 9, 2011

कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर- gazal shyamskha `shyam'


दूसरों के सर बचाने हैं तुझे तो
फिर तो तू अपनी ही जानिब मोड़ पत्थर

कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
पेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर

देखकर हालत बुतों की, हैं लगाते
टूटने की आइने से होड़ पत्थर

चिड़िया मारीं जब अहेरी हाथ में था
तू हुआ इतिहास में चितौड़ पत्थर 

है खड़ा चौराहे पर बेटा खुदा का
कायरों में तू भी है, चल छोड़ पत्थर

बीच इन्सानों के कैसे फँस गया है
दौड़ सकता है ,अगर तो,दौड़ पत्थर

’श्याम जी’ सचमुच बुरा वक्त आने को है
छत पे अपनी आप भी लें जोड़ पत्थर

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन


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Wednesday, October 5, 2011

टँगे ख्वाब मेरे सलीबों पे हैं अब- gazal shyam skha shyam

 33

कहो मत फलक पर सितारे नहीं हैं
ये माना कि अब वो हमारे नहीं हैं

है ये छाँव छूती मेरी छत भला क्यों
कि जब पेड़ ये अब हमारे नहीं हैं

टँगे ख्वाब मेरे सलीबों पे हैं अब
यों मरियम से वो तो कुँवारे नहीं हैं

बता मुझको क्यों उठ चली ऐ हवा तू
अभी साज से सुर उतारे नहीं हैं

चलो बैठकर कर लें कुछ बातें हम-तुम
कि बेकारी में, पल उधारे नहीं हैं।

छुएँ आसमां ‘श्याम’ है उनकी हसरत
न जिनके है घर ही, चुबारे नहीं हैं

गया गुम हो बचपन कहाँ ‘श्याम’ कहिये
शरारत नहीं है गुबारे नहीं है।


फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन
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Saturday, September 24, 2011

आइनों का है मसीहा वाकई कोई नहीं

 आइनों पर यों तो तोहमत हैं लगाते आइने
आइनों की खुद ही शोहरत भी बढ़ाते आइने

आइनों का खुद कहाँ है मोल कोई भी भला
दूसरों के मोल ही बस हैं लगाते आइने

आइनों को है कहाँ फुर्सत कि देखें आइना
आपको दाग आपके ही हैं दिखाते आइने

आइनों को झूठ कहने की भला आदत कहाँ
झूठ को बस झूठ, सच को सच बताते आइने

लोग थे पहले चुराते आइनों से अपना मुँह
अब तो लोगों से हैं मुँह अपना छुपाते आइने

आइनों का है मसीहा वाकई कोई नहीं
खुद-ब-खुद ही टूट कर हैं फैल जाते आइने



फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन [२.२.९६ ७ पी .एम ]






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Tuesday, September 13, 2011

हैं दीवारों के भी कान आहिस्ता बोलो-


31
हैं दीवारों के भी कान आहिस्ता बोलो
लेंगे सब झट-से पहचान आहिस्ता बोलो

कौन लिखाकर लाया पट्टा चिर-जीवन का
हैं सब पल-दो-पल के मेहमान आहिस्ता बोलो

फाकामस्ती का जीवन है अपना यारो
आफत में हाकिम की जान आहिस्ता बोलो

निकल जाये बात गलत मुँह से साहिब
घर में आये हैं मेहमान आहिस्ता बोलो

करो बातें दैरो-हरम में ऐसी-वैसी
सुन लेगा मौला, भगवान आहिस्ता बोलो

दोस्त सजा हो जायेगी गर सच बोला तो
यह तो है शाही फरमान आहिस्ता बोलो

खत्म हुई कमबख्तश्यामकी गजलें आखिर
यारो छूटी सबकी जान अहिस्ता बोलो



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Thursday, September 8, 2011

फ़ुटकर शेर- उम्र चाँदी हो गई-श्याम सखा श्याम


उम्र चाँदी हो गई पर दिल जवां है दोस्तो
आज भी मुझपर मुह्ब्ब्त मेह्रबां है दोस्तो


 मित्रो!
आप सभी की शुभकामनाओं के लिये मैं आप सब का हृद्‌य से आभारी हूं।
अकादमी की मासिक पत्रिका हेतु आप की रचनाएं - गीत -गज़ल,नज़्म,कवितायें- कवितायें मुक्त छंद की भी हो सकती हैं लेकिन छंद-मुक्त कवितायें न भेजें, कहानियां,लघुकथायें तथा समीक्षा हेतु पुस्तक की दो प्रतिय़ां अकादमी के पते 
सम्पादक हरि-गंधा अकादमी भवन प्लॉट न० 16 सैक्टर 14 पंचकूला हरियाणा  पिन.
रचनाए ई-मेल द्वारा भी भेज सकते हैं- harigandha@gmail.com
रचनाओं पर अकदमी नियमानुसार मानदेय भी दिया जायेगा।
आपका सदा सा
श्याम सखा श्याम





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Friday, September 2, 2011

Dr.shyam skha shyam appointed Director sahitya acedemy Hariyana


मित्रो ! 
  आप सदैव मेरी रचनाओं को अपने विचारों से सहेजते ,नवाजते रहें हैं | मैं आप सभी का ह्रदय से कृतज्ञ  हूँ |
आप सभी को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि महामहिम राज्यपाल हरियाणा द्वारा आपके इस मित्र को directer
साहित्य अकादमी हरियाणा नियुक्त किया गया है.मैंने यह पद कल १ सितम्बर गणेश चतुर्थी के दिन ग्रहण कर लिया है| इस पद दायित्व को निभाने हेतु मुझे आपके ऐसे ही सद् भाव पूर्ण प्रोत्साहन व् दुआओं की आवश्यकता रहेगी |अकादमी पत्रिका हरिगंधा का अगला अंक ग़ज़ल पर आधारित होगा आप अपनी सशक्त ग़ज़ल बहर को जांच कर भेजें \ 
पता    -डाक्टर श्याम सखा श्याम निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी प्लाट नo16,सेक्टर 14 पंचकुला हरियाणा


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Tuesday, August 30, 2011

तू आर हो जा या पार हो जा -gazal by shyamskha shyam


30

तू आर हो जा या पार हो जा
पर इक तरफ मेरे यार हो जा

या तो सिमट कर रह मेरे दिल में
या फैल इतना, संसार हो जा   

जो जुल्म बढ़ जाये हद से ज्यादा
तजकर अहिंसा हथियार हो जा

गुल था शरारत करने लगा जब
तितली ने कोसा जा खार हो जा

सूखा है मौसम, सूखी हूँ मै भी
अब प्यार की तू रसधार हो जा

गर थी तुझे धन की कामना तो
किसने कहा था फनकार हो जा

राधा भी तेरी, मीरा भी तेरी
तू ‘श्याम’ मेरा इस बार हो जा



 मुस्तफ़इलुन,फा ,मु्स्तफ़इलुन फा



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Monday, August 22, 2011

मीरा -श्याम -जन्म अष्टमी पर विशेष


राह मिल्यो वो छैल छबीलो


जब तैं प्रीत श्याम सौं कीनी
तब तैं मीरां भई बांवरी,प्रेम रंग रस भीनी 
तन इकतारा,मन मृदंग पै,ध्यान ताल धर दीनी
 
अघ औगुण सब भये पराये भांग श्याम की पीनी
 
राह मिल्यो वो छैल-छ्बीलो,पकड़ कलाई लीनी
 
मोंसो कहत री मस्त गुजरिया तू तो कला प्रवीनी

लगन लगी नन्दलाल तौं सांची हम कह दीनी 
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी
 
सिमरत श्याम नाम थी सोई,जगी तैं नई नवीनी
 
जब तैं प्रीत श्याम तैं कीनी



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Monday, August 15, 2011

वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता- gazal shyam skha

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नकाब ओढ़कर महज नकाब जिंदगी हुई
यूँ आपसे मिली कि बस खराब जिंदगी हुई

मुझे निकाल क्या दिया जनाब ने खयाल से
पड़ी हो जैसे शैल्फ पर किताब जिंदगी हुई

लगा यूँ सालने कभी अँधेरे का जो डर उसे
समूची जल उठी कि आफताब जिंदगी हुई

गुनाह में थी साथ वो तेरे सखी रही सदा
नकार तूने क्या दिया सवाब जिंदगी हुई

वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता
जो कल तलक थी आम, क्यों नवाब जिंदगी हुई

हकीकतों से क्या हुई मेरी थी दुश्मनी भला
खुदी को भूलकर फ़कत थी ख्वाब जिंदगी हुई

तेरे खयाल में रही छुई-मुई वो गुम सदा
भुला दिया यूँ तुमने तो अजाब जिन्दगी हुई

फुहार क्या मिली तुम्हारे नेह की भला हमें
रही न खार दोस्तो गुलाब जिन्दगी हुई

खुमारी आपकी चढ़ी कहूँ भला क्या ‘श्याम’ जी
बचाई मैंने खूब पर शराब जिंदगी हुई

बही में वक्त की लिखा गया क्या नाम ‘श्याम’ का
गजल रही न गीत ही कि ख्वाब जिंदगी हुई



मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन [४.२.१९९३]


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Tuesday, August 9, 2011

futkar she`r---देखकर तेरा बदन फ़नकार आइने हुये

laxmi menon model said she has done nude photograph for calenders, so that she may enjoy looking them when she is 60 years ओल्ड

 देख मुझको थे कभी फ़नकार आइने हुये


उम्र  मेरी  क्या ढ़ली मक्कार आइने हुये



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Wednesday, July 27, 2011

रखेंगे बन्द ,लोग अपनी जुबान कब तक--gazal

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रहेंगे हम, घर में अपने ही मेहमान कब तक
रखेंगे यूं  बन्द ,लोग अपनी जुबान कब तक

फ़रेब  छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक

चलीं हैं कैसी ये नफ़रतों की हवायें यारो
बचे रहेंगे ये प्यार के यूं मचान कब तक

हैं कर्ज सारे जहान का लेके बैठे हाकिम
चुकाएगा होरी,यार इनका लगान कब तक

इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक

रही है आ विश्व-भ्रर से कितनी यहां पे पूंजी
मगर रहेंगे लुटे-पिटे हम किसान कब तक

रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक

दुकान खोले कफ़न की बैठा है ‘श्याम’ तो अब
भला रखेगा ‘वो’ बन्द अपने मसान कब तक



मफ़ाइलुन,फ़ाइलातु मुसतफ़इलुन फ़ऊलुन [बहरे मुन्सरह का एक भेद ]








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Friday, July 22, 2011

मत बोल आधा सच---gazal shyam skha shyam










27

खुद से तू मत बोल आधा सच
झूठ में मत तू घोल आधा सच

मच जायेगा शोर जगत में
ऐसे मत तू खोल आधा सच

बनिया है न तू है सौदागर
फिर भी रहा क्यों तोल आधा सच

झूठों का दबदबा न छाये
यूँ तो न कर तू गोल आधा सच

बोल युधिष्ठिर भान्ति न कुछ तू
देगा खोल तू पोल  आधा सच

माना है इतिहास अधूरा
क्या है नहीं भूगोल आधा सच

फ़ेलु.फ़ऊल फ़ऊल फ़ऊलुन, [,०६,05








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Friday, July 15, 2011

फ़ुटकर शे‘र ---बेवफ़ा मैं नहीं- श्याम सखा श्याम



 सच कहूं   दोस्तों      बेवफ़ा मैं नहीं
 सच कहूं, सच कभी बोलता मैं नहीं




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Tuesday, July 5, 2011

दिल में ग़म की किताब रखता है --- gazal shyam skha shyam


26
                                                            लिख के सबका हिसाब रखता है
                                                           दिल में ग़म की किताब रखता है 


                                                            क्या बिगाड़ेगा कोई उसका, वो
                                                            खुद को खानाखराब रखता है

                                                            आग आँखों में और मुट्ठी में
                                                         वो सदा इन्किलाब रखता है

                                                      जो है देखें जमाने की सीरत
                                                     खुद को वो कामयाब रखता है

                                                  उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
                                                    मुटठी में माहताब रखता है

                                                   बाट खुशियों की जोहता है तू
                                               दिल में क्यों फिर अजाब रखता है

                                                 आइने से न कर लड़ाई ,कि वो
                                             कब किसी का हिजाब रखता है

                                              ‘श्याम’ से गुफ़्तगू करोगे क्या
                                              वो सभी का जवाब रखता है

                                            श्याम’ चितचोर है नचनिया  है
                                              कैसे-कैसे खिताब रखता है




 फाइलातुन ,मफाइलुन ,फेलुन



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Friday, July 1, 2011

ग़म हुआ जवान था----- gazal shyam skha shyam


25 
               गूंगे का बयान था
              तीर था कमान था

                प्यार का उफान था
               ग़म हुआ जवान था

               छोड़ते ही घर, लगा
              अपना तो जहान था

              पीड़ की वो हाट थी
              प्यार का मचान था

              बाप था ढलान पर
             सुत हुआ जवान था

            घर बिका किसान का
            शेष पर लगान था

फ़ाइलुन,मफ़ाइलुन   ..२००६


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Monday, June 27, 2011

छंद मन व तन में सकारात्मक संवाद करवाता है---श्याम सखा श्याम



                                            छंद  आनन्द का प्रतीक होता है।.
                                                           छंद का उल्लेख सबसे पहले वेदों में हुआ है। छंद से जुड़कर साधारण बातें  में गति व यति का आर्विभाव होने लगता है।
                      गति व यति से रस उत्पन्न होता है। यह रस ही आनन्द कहलाता है।
               संसार भर की सभी भाषाएं छंद में ही जीवित रह पाईं हैं- जैसे इजराइल के देश बनने से पहले हिब्रु भाषा ,दुनिया भर में बिखरे यहुदियों की प्राथना भजनो में ही बची थी। 
          आज देवभाषा संस्कृत भी उसी ओर जा रही है। कुछ दिनो बाद यह केवल वेद उपनिषदों, पौराणिक श्लोकों में ही बच पाएगी

                                         छंद, भाषा, संस्कृति, कविता या सभ्यता जितना ही पुराना है।

                                          छंद है क्या?
              आइये!  देखें \

     भारतीय  समय गिनने की प्रकिर्या को समझने का प्रयास करने से छंद को समझने में सहायक होगा।

   दस दीर्घमात्रिक शब्द बोलने पर जितना समय लगता है==== १ सासं या प्राण कहलाता है

                                  ६ प्राण=== १ पल

                                 ६० पल === १ घड़ी

                                ६० घड़ी==== १ दिन

                               २.५ घड़ी====== १ घंटा  === ९०० सांस या प्राण

                                 १ मिनट== १५ सांस

                    छ्ंद के उच्चारण से सांस की गति एक तान हो जाती है। 

                   मन स्थिर हो जाता है एवम्‌ ध्यान की क्षमता पा जाता है।

                    ध्यान से चेतना में नवांतर हो हो जाता है और फ़िर मस्तिष्क का अणु-अणु जीवंत हो उठता है।

                                             छंद  जब अन्तर्मन से उठता है तो जीवन अर्थवान होने लगता है।

                                       इस प्रकार छंद की पुनरावृति [ जाप ]नये अर्थ का वाहक बनकर प्रगट होती है।


                                    छंद की पुनरावृति से मानव की नकारात्मकता, सकारात्मकता में बदलने लगती है।

                                      इस अवस्था को ही समाधि कहा जाता है। 
    
                                  शरीर में प्राण व मन ही निर्णय करने वाले होते हैं।

                                जब मन गलत निर्णय लेता है तो प्राण [ सांस ] की गति बढ जाती है,

                               गुस्से व झूठ बोलते वक्त- [यही तथ्य लाई-डिक्टेटिंग मशीन का आधार है] 

                                 छंद के उपयोग से ही शरीर में सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है- जो मन को नवान्तर या समाधि की अवस्था में ले जाता है

                                   लिपिबद्ध छंद ही मन्त्र कहलाता है। मन्त्र का शाब्दिक अर्थ है-- मन की बात

                                         छंद मन व तन में सकारात्मक संवाद करवाता है

                                            छंद [ मन्त्र ] के सस्वर उच्चारण से वातावरण में ऊर्जा उत्पन्न होकर वायुमंडल में फ़ैलती है।, जिससे तरंगे उत्पन्न होकर आसपास को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लेती हैं। ऐसा अनुभव सभी को, किसी संगीत के महफ़िल या भजन संध्या पर अकसर हुआ होगा।

                         छंदो के जाप से उत्पन्न ध्वनि ऊर्जा व तरंगे साफ़ अनुभव की जा सकती हैं। इस अनुभव की सतत अनूभूति ही समाधि की अवस्था कहलाती है।

     य़ही नही  इस अवस्था प्राप्त व्यक्ति के समीप भी इस ऊर्जा को अनुभव किया जा सकता है।

                 इसी वजह से संसार के सभी धर्मों में जाप का प्रचलन हुआ है








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