Friday, November 28, 2008

गज़ल के रुक्न या खण्ड

हम जो बात कहने जा रहे हैं वह गज़ल के माहिरों तथा नौसिखियों को जिन्होने एक-आध या दस बीस गज़ल कही, नहीं लिख डाली हों ।जी हां गज़ल लिखी नहीं कही जाती है।माने जब तक दिल स्वयं ही कुछ कहने को राजी न हो ,गज़ल लिखी जा सकती है, कही नही जा सकती ।
तो गज़ल को खुद-ब-खुद निर्झर की तरह आने दें जबरदस्ती न करें।
यह गज़ल कहने का पहला नियम है ।
२- जब कोई भाव मन में आता है पहली पंक्ती के रूप में, उसे कागज पर लिख लें।
अब उसे गज़ल के छंदों मे से ,किस वज़्न बह्र [बहर] पर लिखा जा सकता है इसका निर्ण्य करें।
वज़्न क्या हैं
गज़ल को ख्ण्डों [रुक्नों-रूक्न एक वचन है जैसे खण्ड,उर्दू में रुक्न का बहुवचन अराकान होता है,लेकिन हम सारा विवरण हिन्दी भाषा व देवनागरी लिपि में लिख रहे हैं अतः हिन्दी व्याकरण के अनुसार रूक्नो ही लिखेंगे ]
तो गज़ल छंद मे प्रयुक्त होने वाले खण्ड या रूक्न देखें

१फ़अल-इसका वज़्न या मात्रा गणना होगी १,२ या १ १ १ = ३ लेकिन यह तीन २ १ नहीं हो सकता ,क्यों आप इसे मगर को बोलकर देखें - म गर बोला जाता है ,न कि मग र इसी तरह फ़ अल भी फ़अ ल नहीं बोला जाता बस अगर यह बात समझ जायें तो बहुत शंकाओं का समाधान होता चलेगा
१ फ़अल १_ २ या १११[ तीन लघु या एक लघु व एक गुरु ] म ग र या बता अब एक और बात याद रखें कि जिस अक्षर के नीचे - यह चिन्ह हो वह लघु ही रहेगा

१ फ़अल _ २
२-या फ़ऊ-११[ तीन लघु या एक लघु व एक गुरु ]
३-फ़ऊल _ _
४- फ़ऊलुन _ या _

५-फ़ा २ = गुरु


६-फ़ाइलात २ _ २ _ [ गुरु लघु गुरु लघु ]

७-फ़ाइलातुन २ _२ १ १ या २ १_ २ २ [गुरु लघु गुरु लघु लघु या गुरु लघु गुरु गुरु]यानिपहले
गुरु[फ़ा] के बाद लघु अनिवार्य है लेकिन दूसरे गुरु ला के बाद दो लघु या एक गुरु आ सकते हैं।



९-फ़ाइलुन २ _ ११ या गुरु लघु लघु लघु २ _ २ गुरु लघु गुरु
१०-फ़इलुन __ या _ _

११-फ़इलात _ _ २ _ यानि इसमे सारे लघु केवल लघु अवस्था में प्रयोग करने होंगे

१२- फ़इ्लातुन __ २ १ १ या __२ २

१३- फ़ेल २ _
१४-फ़ेलान-२ २ _

१५ फ़ेलुन २ ११ या २ २
१६- मफ़ _ या _

१७-- मफ़ऊलात _ या २ २ २

१८-मफ़ऊलातुन या
१९- मफ़ऊलुन- ११ २ ११ या फ़ा,फ़ा,फ़ा, २ २ २

२०-मफ़ाइलतुन _ २ _१_ १ १ या _ २ _ १
२१-मफ़ाइलातुन_ _ या _ _

२२-मफ़ाइलुन _ २ _ ११ या _ २ _

२३-मफ़ाईल _ २ २ _

२४-मफ़ाईलुन _ २ २ १ १ या १_ २ २ २
२५-मफ़ाईलान- २ २ २ १
२६-मुतफ़ाइलुन १_ १_ २ १_ ११ या १_ १_ २१_ २

२७-मुतफ़इलुन १_ १_ १_ १_ १ १ या १_ १_ १_ १_ २ यानि पहले चारों लघु अनिवार्य होंगे इस खण्ड या रुक्न में
२८- मुसतफ़ इलुन-१ १ १ १ १ १, २ २
२९- मुसतफ़ इ लान- १ १ १ १

दोस्तो ! यह कतई जरूरी नहीं कि आप इन में उलझें ।यह इस लिये लिखा कि आप इन को पढ़ भर लें और चाहें तो आगे जाकर काम आये ।डरने की जरूरत नहीं है, अधिकांश गज़लकार इनमें से कुछ इने -गुने रुक्न प्रयोग कर बहुत अच्छी गज़ल कहते हैं ।

कल इन रुक्नो [ खण्डो ] को जोड़कर बहर या छंद की बात करेंगे ।
गज़ल में प्रयोग होने वाली सभी बहरे [ छ्न्द ] इन्ही ऊपर लिखित खण्डों [ रुक्नों ] के मेल या तालमेल से बनती हैं।
२- १_ यहां _ इस चिह्न या लाल रंग के लघु का अर्थ है की इस जगह लघु का होना अनिवार्य है, लघु चाहे अपने स्वभाविक रूप मे हो या गज़ल नियमानुसार गुरु की मात्रा गिराकर बने दीर्घमात्रा- आ,ई,ए ऐ,ओ, औ,।
३- दो लघु- ११ को गुरू २, या एक गुरू को दो लघु में परिवर्तित किया ज सकता है, लेकिन केवल वहीं जहां उपरोक्त खन्डो मे १_ लघु के साथ यह चिह्न न हो। जैसे मुतफ़ाइलुन में १_ १_ २ १_ ११ पहले दो लघु ,लघु ही रखने होंगे तथा गुरू के बाद वाला लघु भी अनिवार्य लघु होग ,लेकि अन्तिम दो लघु के स्थान पर एक गुरू प्रयोग किया ज सकता है।बह्र की बात करते हुए इसका उदाहरण दिया जायेगा।
४- केवल तेरा,मेरा,तेरी,मेरी,कोई की मध्य दीर्घ मात्रा गिरा कर ति,मि,कु किया जा सकत है।
५ इसी तरह इन्हे,इन्ही,इन्हों,उन्हों तुम्हें,तुम्ही को फ़ऊ १ २, पर गिना जाता है। तुम्हारा,तुम्हारी ,तुम्हारे फ़ऊलुन १२११ य १२२ पर गिने जाते हैं
अब हम सीधे-सीधे छंदो-बहरों की बात आरम्भ करते हैं

गज़ल बनाम गज़लकार

दोस्तो !
यह सर्वविदित तथ्य है कि कविता का जन्म संसार की सभी भाषाओं में छंद के रूप में हुआ तथा छान्दसिक कविता ने न केवल कविता को अपितु हर भाषा एवं संस्कृति को समृद्ध क्या और संस्कृतियों के इतिहास को भी सहेज-समेट कर रखा है।
पिछले कुछ बरसों से मुक्तछंद बनाम छंदमुक्त कविता ने श्रोता तथा पाठकों को कविता से इतना विमुख कर दिया था कि कविता की मृत्यु की घोषणा होने लगी थी ।
श्रोता,पाठकों को ही नहीं अपितु कविता तथा कवियों को भी नवजीवन देने का श्रेय निःसन्देह गज़ल को जाता है।आज हर भाषा में गज़ल लिखी जा रही है,सुनी-पढी जा रही है।
इसके पीछे एक कारण जहां इसका गेय होना है, वहीं गज़ल के हर शे’र में अलग बात कहने की सुविधा है और यह केवल सुविधा ही नहीं गज़ल का आवश्यक अंग भी है ।
एक और जहां गज़ल सर्वसाधारण की चहेती बन रही है ,वहीं गज़ल व उर्दू भाषा के तथाकथित पैरोकार या स्वयंभू ठेकेदार गज़ल को दुरूह बनाने में जुटे हैं और नवगज़लकारों को अरबी-फ़ारसी शब्दों के जाल में उलझाकर भटका रहे हैं।
यह ब्लाग गज़ल-प्रेमियों को न केवल एक मंच देने ,बल्कि गज़ल की बारिकियों को सरल सहज ढंग से समझाने का प्रयास भर है। आप सभी का इस पर स्वागत है ।
हम शुरूआत गज़ल के प्रारूप से करेंगे।