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हाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
चुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां
जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूँ तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिटिठयां
वक्त की मुटठी में बनकर जब महाजन आयीं ये
तोलती थीं ये कभी ज्यादा, कभी कम चिटिठयां
चाहता है दिल कभी जब उसको सहलाये कोई
खोलती हैं जख्म तब बस खामखा ये चिटिठयां
जब भी तनहाई का आलम यारो गहराता गया
आस-पास अपने लगीं तब डोलने ये चिटि~ठयां
आप हमको भूलने लगते हंै जब भी ‘श्याम’ जी
यादों के सन्दूक तब-तब खोलतीं ये चिटिठयां
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
हाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
चुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां
जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूँ तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिटिठयां
वक्त की मुटठी में बनकर जब महाजन आयीं ये
तोलती थीं ये कभी ज्यादा, कभी कम चिटिठयां
चाहता है दिल कभी जब उसको सहलाये कोई
खोलती हैं जख्म तब बस खामखा ये चिटिठयां
जब भी तनहाई का आलम यारो गहराता गया
आस-पास अपने लगीं तब डोलने ये चिटि~ठयां
आप हमको भूलने लगते हंै जब भी ‘श्याम’ जी
यादों के सन्दूक तब-तब खोलतीं ये चिटिठयां
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
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