Tuesday, December 3, 2013

मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर- gazal by shyamskha shyam

मेरे गम का क्या सबब है क्या तुम्हे मालूम है
दर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम है

मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर
सादगी उसकी गज़ब है क्या तुम्हे मालूम है

इश्क है गहरा समन्दर पार जाता है वही
डूबने का जिसको ढ़ब है क्या तुम्हे मालूम है

जानता हूं सुध कयामत के दिवस लोगे  मेरी
पर जरूरत आज अब है क्या तुम्हें मालूम है।

सायबानो में रकीबों के तेरा हो जिक्र जब
जान जाती मेरी तब है क्या तुम्हे मालूम है

तुम जमाने से छुपा लोगे सखा अपने गुनाह
देखता रहता है वो सब है क्या तुम्हे मालूम है

मीरा राधा गोपियां उद्धव सुदामा गर बनो
श्याम मिलता यार तब है क्या मालूम है
 

मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/