फूलों की बस्ती से दो पल चुरा लें हम
भँवंरों की मस्ती से दो पल चुरा लें हम
तारे चन्दा चलते हैं जिसके इशारे पर
आज उसकी हस्ती से दो पल चुरा लें हम
खिलवत तो महंगी है अबके बरस यारो
इस भीड़ की मस्ती से दो पल चुरा लें हम
माँगे से मौत यहाँ कब है भला मिलती
क्यों न जबरदस्ती से दो पल चुरा लें हम
डूबें मौजों में ‘श्याम’ ऐसी कहाँ किस्मत
बल खाती कश्ती से दो पल चुरा लें हम
फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,मफ़ाएलुन
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/