हम जो बात कहने जा रहे हैं वह गज़ल के माहिरों तथा नौसिखियों को जिन्होने एक-आध या दस बीस गज़ल कही, नहीं लिख डाली हों ।जी हां गज़ल लिखी नहीं कही जाती है।माने जब तक दिल स्वयं ही कुछ कहने को राजी न हो ,गज़ल लिखी जा सकती है, कही नही जा सकती ।
तो गज़ल को खुद-ब-खुद निर्झर की तरह आने दें जबरदस्ती न करें।
यह गज़ल कहने का पहला नियम है ।
२- जब कोई भाव मन में आता है पहली पंक्ती के रूप में, उसे कागज पर लिख लें।
अब उसे गज़ल के छंदों मे से ,किस वज़्न बह्र [बहर] पर लिखा जा सकता है इसका निर्ण्य करें।
वज़्न क्या हैं
गज़ल को ख्ण्डों [रुक्नों-रूक्न एक वचन है जैसे खण्ड,उर्दू में रुक्न का बहुवचन अराकान होता है,लेकिन हम सारा विवरण हिन्दी भाषा व देवनागरी लिपि में लिख रहे हैं अतः हिन्दी व्याकरण के अनुसार रूक्नो ही लिखेंगे ]
तो गज़ल छंद मे प्रयुक्त होने वाले खण्ड या रूक्न देखें
१फ़अल-इसका वज़्न या मात्रा गणना होगी १,२ या १ १ १ = ३ लेकिन यह तीन २ १ नहीं हो सकता ,क्यों आप इसे मगर को बोलकर देखें - म गर बोला जाता है ,न कि मग र इसी तरह फ़ अल भी फ़अ ल नहीं बोला जाता बस अगर यह बात समझ जायें तो बहुत शंकाओं का समाधान होता चलेगा
१ फ़अल १_ २ या १११[ तीन लघु या एक लघु व एक गुरु ] म ग र या बता अब एक और बात याद रखें कि जिस अक्षर के नीचे - यह चिन्ह हो वह लघु ही रहेगा
१ फ़अल १_ २
२-या फ़ऊ-१११[ तीन लघु या एक लघु व एक गुरु ]
३-फ़ऊल १_ २ १_
४- फ़ऊलुन १_ २ १ १ या १_ २ २
५-फ़ा २ = गुरु
६-फ़ाइलात २ १_ २ १_ [ गुरु लघु गुरु लघु ]
७-फ़ाइलातुन २ १_२ १ १ या २ १_ २ २ [गुरु लघु गुरु लघु लघु या गुरु लघु गुरु गुरु]यानिपहले
गुरु[फ़ा] के बाद लघु अनिवार्य है लेकिन दूसरे गुरु ला के बाद दो लघु या एक गुरु आ सकते हैं।
९-फ़ाइलुन २ १_ ११ या गुरु लघु लघु लघु २ १_ २ गुरु लघु गुरु
१०-फ़इलुन १_१_ १ १ या १_ १_ २
११-फ़इलात १_ १_ २ १_ यानि इसमे सारे लघु केवल लघु अवस्था में प्रयोग करने होंगे
१२- फ़इ्लातुन १_१_ २ १ १ या १_१_२ २
१३- फ़ेल २ १_
१४-फ़ेलान-२ २ १_
१५ फ़ेलुन २ ११ या २ २
१६- मफ़ ऊ ल १ १ २ १_ या २ २ १_
१७-- मफ़ऊलात १ १ २ २ १_ या २ २ २ १
१८-मफ़ऊलातुन १ १ २ २ १ १ या २ २ २ २
१९- मफ़ऊलुन- ११ २ ११ या फ़ा,फ़ा,फ़ा, २ २ २
२०-मफ़ाइलतुन १_ २ १_१_ १ १ या १_ २ १_ १ २
२१-मफ़ाइलातुन१_ २ १_ २ १ १ या १_ २ १_ २ २
२२-मफ़ाइलुन १_ २ १_ ११ या १_ २ १_ २
२३-मफ़ाईल १_ २ २ १_
२४-मफ़ाईलुन १_ २ २ १ १ या १_ २ २ २
२५-मफ़ाईलान- १ २ २ २ १
२६-मुतफ़ाइलुन १_ १_ २ १_ ११ या १_ १_ २१_ २
२७-मुतफ़इलुन १_ १_ १_ १_ १ १ या १_ १_ १_ १_ २ यानि पहले चारों लघु अनिवार्य होंगे इस खण्ड या रुक्न में
२८- मुसतफ़ इलुन-१ १ १ १ १ १ १, २ २ १ २
२९- मुसतफ़ इ लान- १ १ १ १ १ २ १
दोस्तो ! यह कतई जरूरी नहीं कि आप इन में उलझें ।यह इस लिये लिखा कि आप इन को पढ़ भर लें और चाहें तो आगे जाकर काम आये ।डरने की जरूरत नहीं है, अधिकांश गज़लकार इनमें से कुछ इने -गुने रुक्न प्रयोग कर बहुत अच्छी गज़ल कहते हैं ।
कल इन रुक्नो [ खण्डो ] को जोड़कर बहर या छंद की बात करेंगे ।
गज़ल में प्रयोग होने वाली सभी बहरे [ छ्न्द ] इन्ही ऊपर लिखित खण्डों [ रुक्नों ] के मेल या तालमेल से बनती हैं।
२- १_ यहां _ इस चिह्न या लाल रंग के लघु का अर्थ है की इस जगह लघु का होना अनिवार्य है, लघु चाहे अपने स्वभाविक रूप मे हो या गज़ल नियमानुसार गुरु की मात्रा गिराकर बने दीर्घमात्रा- आ,ई,ए ऐ,ओ, औ,।
३- दो लघु- ११ को गुरू २, या एक गुरू को दो लघु में परिवर्तित किया ज सकता है, लेकिन केवल वहीं जहां उपरोक्त खन्डो मे १_ लघु के साथ यह चिह्न न हो। जैसे मुतफ़ाइलुन में १_ १_ २ १_ ११ पहले दो लघु ,लघु ही रखने होंगे तथा गुरू के बाद वाला लघु भी अनिवार्य लघु होग ,लेकि अन्तिम दो लघु के स्थान पर एक गुरू प्रयोग किया ज सकता है।बह्र की बात करते हुए इसका उदाहरण दिया जायेगा।
४- केवल तेरा,मेरा,तेरी,मेरी,कोई की मध्य दीर्घ मात्रा गिरा कर ति,मि,कु किया जा सकत है।
५ इसी तरह इन्हे,इन्ही,इन्हों,उन्हों तुम्हें,तुम्ही को फ़ऊ १ २, पर गिना जाता है। तुम्हारा,तुम्हारी ,तुम्हारे फ़ऊलुन १२११ य १२२ पर गिने जाते हैं
अब हम सीधे-सीधे छंदो-बहरों की बात आरम्भ करते हैं
मानोशी जी की गज़ल पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर चला आया
ReplyDeleteपहला पाठ रोचक रहा है...
श्याम जी आपका शुक्रगुजार हूँ..इन सलाहों पर। यहाँ वर्ना इस ब्लौग जगत में तो बस वाह-वाही की ही परंपरा है। आपका दिल से शुक्रगुजार हूं। कृपया यूं ही हौसला बढ़ाते रहें।
ReplyDeleteऔर ये सबक आगे तो बढ़ाइये....
इतने सारे बहर हैं, देखते हैं के अपनी गज़ल लिखते वक्त कितने याद रहते हैं
ReplyDeleteअभी तक तो गज़ल लिखता ही आया हूँ
गज़ल कहना सुन कर तो ऐसा लगता है, के कोई बन्दा spontaneous गज़ल को create कर दे। जो कि मुझे असम्भव सा प्रतीत होता है
गज़ल कहने के लिये वक्त तो चाहिये ही होता है। हां वो बात अलग है, की इन्सानी मस्तिश्क की कोई पराकाष्ठा नहीं है, Practice से आप कुछ भी कर सकते हैं
किधर से होता हुआ यहाँ तक पहुँचा ये तो याद नहीं, मगर यहाँ आ कर बड़ा अच्छा लगा। कोई ग़ज़ल समझने कहने वाला मिला। आता रहूँगा। आभार, अच्छी ग़ज़लों के साथ लोगों को ग़ज़ल पर एजूकेट भी करने के लिए।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी1 धन्यवाद्1
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